सनातन संस्कृति में नमस्कार का महत्व, जानिए, नमस्कार के प्रकार, लाभ और तरीका
विशाल गुप्ता ‘अजमेरा’ @sanatanyatra
किसी से मिलने पर, किसी के आने पर या किसी के पास जाने पर हम परस्पर अभिवादन करते हैं। यह अभिवादन प्रणाम या नमस्कार करके करते हैं। समय के परिवर्तन के साथ कोई हाथ मिलाता है तो कोई हाय-हैलो बोलकर तो कोई गुड मार्निंग, गुड ईवनिंग आदि कहकर करता है। कुछ धार्मिक लोग राम-राम, जय श्री श्याम, जय शिव या जय भोले की कहकर अभिवादन करते हैं। कुछ राधे-राधे और कुछ जय साई राम तो कुछ लोग जय भीम कहते हैं। वस्तुतः शब्द कोई हो लेकिन सभी परस्पर सम्मान दर्शाते हैं। इसके बावजूद नमस्कार करने का सही तरीका या यूं कहें कि नमस्कार शब्द वाचन का अपना ही महत्व है। नमस्कार सनातन संस्कृति में किसी भी मत, सम्प्रदाय के लोगों के बीच समान रूप से स्वीकार्य रहा है।
करें सिर्फ नमस्कार
नमस्कार करना सनातन संस्कृति में अभिवादन का धार्मिक तरीका है। नमस्कार, संस्कृत भाषा का शब्द है। संस्कृत से ही सभी भाषाओं का जन्म हुआ। ’नमः’ धातु से बना है ’नमस्कार’। नमः का अर्थ होता है नमन करना या झुकना। नमस्कार का अर्थ पैर छूना नहीं होता।
सनातन हिन्दू और भारतीय संस्कृति में मंदिर में भगवान के दर्शन या किसी बड़े सम्मानित व्यक्ति से मिलने पर हमारे हाथ स्वतः ही नमस्कार मुद्रा में जुड़ जाते हैं। शास्त्रों में नियम बताये गये हैं कि नमस्कार करते समय क्या करें और क्या न करें। आइये आपको नमस्कार के निमय बताते हैं।
नमस्कार के प्रकार
नमस्कार के मुख्यतः तीन प्रकार हैंः- सामान्य नमस्कार, पद नमस्कार और साष्टांग नमस्कार।
सामान्य नमस्कार : किसी व्यक्ति से मिलने पर सामान्यतः दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर नमस्कार या प्रणाम किया जाता है। हम प्रतिदिन किसी को और कोई हमें मिलता है तो परस्पर नमस्कार किया जाता है। इसे हम सामान्य नमस्कार कहते हैं।
पद नमस्कार : पद नमस्कार हम अपने माता-पिता, परिवार और कुटुम्ब के बुजुर्गों, आदि के चरण स्पर्श कर अर्थात पैर छूकर नमस्कार करते हैं। परिवार के अलावा अपने गुरु और आध्यात्मिक ज्ञान से संपन्न व्यक्ति को भी चरण स्पर्श करके नमस्कार निवेदित किया जाता है।
साष्टांग नमस्कार : साष्टांग नमस्कार सिर्फ मंदिर में अथवा आपको दीक्षित करने वाले गुरु के श्रीचरणों में ही किया जाता है। षड्रिपु, मन और बुद्धि, इन आठों अंगों से ईश्वर की शरण में जाना अर्थात साष्टांग नमन करना ही साष्टांग नमस्कार या साष्टांग प्रणाम कहा जाता है।
सामान्य नमस्कार :
- कभी भी एक हाथ से नमस्कार न करें और न ही गर्दन हिलाकर नमस्कार करें। नमस्कार दोनों हाथों को जोड़कर ही करें। इससे सामने वाले के मन में आपके प्रति अच्छी भावना का विकास होगा और आप में भी। यह मात्र औपचारिक अभिवादन नहीं, इसके कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं।
- नमस्कार करते समय मात्र 2 सेकंड के लिए नेत्रों को बंद कर देना चाहिए। इससे आंखें और मन ऊर्जि हो जाएंगे।
- नमस्कार करते समय हाथों में कोई वस्तु नहीं होनी चाहिए।
पाद नमस्कार :
- पाद नमस्कार अथवा चरण स्पर्श कर नमस्कार सदैव अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति को ही निवेदित करना चाहिए। अपने माता-पिता को प्रातः चरण स्पर्श करना चाहिए। साथ ही कुटुम्ब यानि परिवार के बड़ों को भी पाद नमस्कार करना चाहिए। क्योंकि ये आपका सदैव हित चाहेंगे और पैर छूने पर आपको आशीर्वाद ही देंगे।
- ऐसे किसी व्यक्ति के पैर नहीं छूना चाहिए जिसे आप अच्छी तरह जानते नहीं हों या फिर जो आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं है। इन दिनों चापलूसी या पद-लालसा के चलते राजनीतिज्ञों और अपने अधिकारियों के पैर छूने का चलन हो गया है, जो कि गलत है। यह भले ही आपको भौतिक तौर पर क्षणिक उपलब्धि प्रदान करता हो लेकिन आध्यात्मिक रूप से यह आपका पतन करता है।
साष्टांग नमस्कार : दंडवत प्रणाम
- मंदिर में नमस्कार करते समय या साष्टांग नमस्कार करते वक्त पैरों में चप्पल या जूते न हों।
- मंदिर में नमस्कार करते समय सिर ढंकना चाहिए।
- हाथों को जोड़ते समय अंगुलियां ढीली रखें। अंगुलियों के बीच अंतर न रखें। हाथों की अंगुलियों को अंगूठे से दूर रखें। हथेलियों को एक-दूसरे से कसकर न सटाएं, उनके बीच रिक्त बहुत थोड़ा स्थान छोड़ें।
- मंदिर में देवता को नमन करते समय सर्वप्रथम दोनों हथेलियों को छाती के समक्ष एक-दूसरे से जोड़ें। हाथ जोड़ने के उपरांत पीठ को आगे की ओर थोड़ा झुकाएं।
- फिर सिर को कुछ झुकाकर भ्रूमध्य (भौहों के मध्यभाग) को दोनों हाथों के अंगूठों से स्पर्श कर, मन को देवता के चरणों में एकाग्र करने का प्रयास करें।
- इसके बाद हाथ सीधे नीचे न लाकर, नम्रतापूर्वक छाती के मध्यभाग को कलाइयों से कुछ क्षण स्पर्श कर, फिर हाथ नीचे लाएं।
नमस्कार के लाभ :
अच्छी भावना और तरीके से किए गए नमस्कार का प्रथम लाभ यह है कि इससे मन में निर्मलता बढ़ती है। निर्मलता से मन में सकारात्मकता का विकास होता है। सद्भावना से नमस्कार करने पर दूसरे के मन में आपके प्रति शुभ भावना का प्रादुर्भाव होता है। जहां आपकी सद्भावना से दूसरा व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है वहीं उसके द्वारा किये गये प्रति नमस्कार या आशीर्वाद से आप स्वयं ऊर्जित होते हैं। आपका आभा मण्डल और अधिक प्रकाशवान हो जाता है।
किसी को भी नमस्कार करने का सबसे बड़ा लाभ ये कि आपका अहंकार स्वतः तिरोहित हो जाता है। उसका स्थान विनम्रता ले लेती है। इस तरह नस्कार का आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों ही तरह का लाभ मिलता है। मंदिर में नमस्कार करने से व्यक्ति के भीतर शरणागत और कृतज्ञता के भाव का विकास होता है। इससे मन और मस्तिष्क शांत होता है और शीघ्र ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।