Vaikuntha Chaturdashi 2024: बैकुंठ चतुर्दशी पर करें ये काम, मिलता है बैकुंठ धाम में स्थान
@SanatanYatra. भगवान विष्णु और भगवान शिव की मिलन के महापर्व हरि हर मिलन बैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त आराधना के लिए प्रसिद्ध है। इस पर्व का खास महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाला माना गया है। #SanatanYatra
सतयुग में नारदजी देवताओं और मनुष्यों दोनों के ही बीच माध्यम का कार्य करते थे। वह चराचर जगत अर्थात पृथ्वी पर आकर मनुष्यों और सभी प्राणियों का हाल लेते और कैलाश, बैकुंठ लोक और ब्रह्मलोक जाकर चराचर जगत के निवासियों की मुक्ति और प्रसन्नता से जुड़े सवालों का हल प्राप्त करते। फिर अलग-अलग माध्यमों से वह संदेश मनुष्यों तक भी पहुँचाते थे। इसी क्रम में एक बार नारदजी बैकुंठ लोक में भगवान विष्णु के पास पहुँचे और उनसे प्राणियों की मुक्ति का सरल उपाय पूछा।
तब भगवान विष्णु नारदजी से कहते हैं, जो भी प्राणी मन-वचन और कर्म से पवित्र रहते हुए, बैकुंठ एकादशी पर पवित्र नदियों के जल में स्नान कर भगवान शिव के साथ मेरी पूजा करता है, वह मेरा प्रिय भक्त होता है और उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।
“बैकुंठ चतुर्दशी पूजन विधि”
इस दिन नदी, सरोवर में स्नान के बाद नदी या तालाब के किनारे 14 दीपक जलाएँ। इसके बाद भगवान विष्णु और शिव की आराधना करें। यदि संभव को तो शिव और विष्णुजी को कमल पुष्प अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
घर में पूजा करते समय गंगाजल से मंदिर में छींटे देकर घी का दीपक जलाएँ। फिर रोली से भगवान विष्णु का तिलक करें और अक्षत अर्पित करें। साथ ही शिवजी पर चंदन का तिलक लगाएँ। मिष्ठान और भोग अर्पित करें। फिर श्रीहरि विष्णु और शिवजी की पूजा, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और आरती करें।
शाम के समय दोबारा स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहने और दीपक जलाकर बहते जल में प्रवाहित कर दें। इसे दीपदान कहते हैं। दीपदान करना यदि संभव न हो तो मंदिर में दीपक जलाएँ। बुजुर्गों को उपहार देनें और जरूरतमंदों की मदद करने से लाभ मिलता है।
“जय जय श्री हरि”