कुशा (डाभ) :अमृत तत्व से युक्त हैं कुशा और केतु
Desk@sanatanyatra: अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है।जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है।यह पौधा पृथ्वी लोक का पौधा न होकर अंतरिक्ष से उत्पन्न माना गया है।
कुश की पवित्री पहनना जरूरी क्यों जरूरी है…
धार्मिक अनुष्ठानों में कुश (दर्भ) : नामक घास से निर्मित आसान बिछाया जाता है। पूजा पाठ आदि कर्मकांड करने से व्यक्ति के भीतर जमा आध्यात्मिक शक्ति पुंज का संचय कहीं लीक होकर अर्थ न हो जाए, अर्थात पृथ्वी में न समा जाए, उसके लिए कुश का आसन विद्युत कुचालक का कार्य करता हैं। इस आसन के कारण पार्थिव विद्युत प्रवाह पैरों के माध्यम से शक्ति को नष्ट नहीं होने देता है।
आध्यात्मिक शक्ति पुंज :कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है।सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश प्राप्त होता है।
दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूलवश हाथ भूमि पर लग जाए, तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा । इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए, तो इसका दुष्परिणाम हमारे मस्तिष्क और हृदय पर पडता है।
केतु शांति के लिए :केतु शांति विधानों में कुशा की मुद्रिका और कुशा की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं।रात्रि में जल में भिगो कर रखी कुशा के जल का प्रयोग कलश स्थापना में सभी पूजा में देवताओं के अभिषेक, प्राण प्रतिष्ठा, प्रायश्चित कर्म, दशविध स्नान आदि में किया जाता है।
केतु को अध्यात्म और मोक्ष का कारक माना गया है।देव पूजा में प्रयुक्त कुशा का पुन: उपयोग किया जा सकता है।देव पूजन, यज्ञ, हवन, यज्ञोपवीत, ग्रहशांति पूजन कार्यो में रुद्र कलश एवं वरुण कलश में जल भर कर सर्वप्रथम कुशा डालते हैं।कलश में कुशा डालने का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि कलश में भरा हुआ जल लंबे समय तक जीवाणु से मुक्त रहता है।
कुशा आसन की महत्ता: कुशा से बने आसन पर बैठ कर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्धि होती है।साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती।कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं।कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है।कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है।
सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण से पहले कुशा की पवित्री की महत्ता : कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है।कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है।सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण से पहले जल पात्रों व खाने पीने की पात्रों में कुशा यानी डाभ रखी जाती है।
श्राद्ध तर्पण बिना कुशा के सम्भव नहीं :श्राद्ध तर्पण बिना कुशा के सम्भव नहीं हैं ,कुशा से बनी अंगूठी पहनकर पूजा /तर्पण के समय पहनी जाती है,परन्तु पितृ एवं प्रेत कर्म में प्रयुक्त कुशा अपवित्र हो जाती है।
कुशा तोड़ के रखने का समय : भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को लायी गयी कुशा वर्ष भर तक पवित्र रहती है।कुश /कुशा एक घास है।इसके सिरे नुकीले होते हैं उखाडते समय सावधानी रखनी पडती है कि जड सहित उखडे और हाथ भी न कटे।” ऊँ हुम् फट ” मन्त्र का उच्चारण करते हुए उत्तराभिमुख होकर कुशा उखाडी जाती है।कुशा प्रत्येक दिन नई उखाडनी पडती है लेकिन कुशापटनी अमावास्या की तोडी कुशा पूरे महीने काम दे सकती है और भादों की अमावस्या के दिन की तोड़ी कुशा पूरे साल काम आती है। इसलिए लोग इसे तोड़ के रख लते हैं।
“नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते”
देवी भागवत 19/32 अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता।
उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है । आपको पता होगा कि कुश के ऊपर अमृत कलश रखा गया था । इसलिए इस पर अमृत का संयोग भी है ,रक्षा करने वाले नागों ने जब कलश चला गया कुश चाटने शुरू किये तब से उनकी जीभ फट रखी है। पूजा समय में यजमान अनामिका अंगुली में कुशा की नागमुद्रिका बना कर पहनते हैं।