Gyanvapi Case: खत्म होगी नन्दी की प्रतीक्षा!
गजेन्द्र त्रिपाठी @sanatanyatra
नन्दीदेव की सदियों की प्रतीक्षा पूर्ण होने की घड़ी करीब आ गयी लगती है। ज्ञानवापी मस्जिद पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) की सर्वेक्षण रिपोर्ट सामने आने के कुछ ही दिन बाद व्यास तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने का अदालती अधिकार मिलना तो ऐसे ही शुभ संकेत दे रहा है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नन्दी या नन्दिदेव कैलास के द्वारपाल होने के साथ ही भगवान शिव के नृषभ (नर-ऋषभ) वाहन हैं। पुराणों के ही अनुसार वे शिव के अवतार भी हैं जिन्हें शिव मन्दिरों में प्रतिष्ठित किया जाता है। संस्कृत में नन्दी का अर्थ प्रसन्नता या आनन्द है। नन्दी को शक्ति, संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है।
औरंगजेब ने दिया मंदिर तोड़ने का आदेश
18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। यह फरमान कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित “मासीदे आलमगिरी” में इस ध्वंस का वर्णन है। इसके अनुसार दो सितंबर 1669 में औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गयी थी। उज्बेक लुटेरे ज़हीरुद्दीन मोहम्मद बाबर द्वार स्थापित मुगल साम्राज्य के छठे शासक (1658 से 1707) अबुल मुजफ्फर मुहिउद्दीन मोहम्मद यानी औरंगजेब के आदेश पर हुए इस ध्वंस के बाद 1680 के दशक में उसी जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ। इतिहासकार ऑड्रे ट्रश्के ने लिखा है कि मंदिर तोड़ने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद में उसके अवशेषों का इस्तेमाल किया गया।
रानी अहिल्या बाई ने कराया पुनर्निर्माण
1750 में जयपुर के महाराजा ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए भूमि खरीदने के उद्देश्य से स्थल के आसपास की भूमि का सर्वेक्षण कराया जो विफल रहा। सन् 1752 से सन् 1780 तक मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हार राव होल्कर ने मन्दिर की मुक्ति के प्रयास किए। वर्ष 1777 में इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का प्रण लिया और अगले तीन साल में मंदिर बनकर तैयार हो गया। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र भेंट किया, ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मण्डप बनवाया और नेपाल नरेश ने नन्दी की विशाल प्रतिमा स्थापित करवाई जिसका मुंह ध्वस्त किए गये मन्दिर की ओर है। नन्दी महाराज आज भी उसी मुद्रा में बैठे हुए ज्ञानवापी परिसर के मुक्त होने और उसमें भोलेनाथ के लिंग रूप में विराजने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गयी मस्जिद पर कब्जा कर लिया क्योंकि यह सम्पूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मण्डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसम्बर 1810 को वाराणसी के तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी (डीएम) वाटसन ने वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल को पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था लेकिन ऐसा हो न सका और नन्दी महाराज का इन्तजार और बढ़ गया।
Gyanvapi-एएसआई सर्वे की रिपोर्ट
वाराणसी की अदालत ने यह पता लगाने के लिए ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण का आदेश दिया कि “क्या मस्जिद एक हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर बनाई गई थी”। जिला एवं सत्र न्यायाधीश डॉ अजय कृष्ण विश्वेश ने एएसआई को निर्देश दिया कि वह “संबंधित संपत्ति यानी निपटान भूखंड संख्या 9130 (ज्ञानवापी मस्जिद) पर वैज्ञानिक जांच/सर्वेक्षण/खुदाई करें”। यह सर्वेक्षण वजूखाना क्षेत्र को बाहर करने के लिए था जिसे उच्चतम न्यायालय के आदेश पर सील कर दिया गया था।
ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक से हुए सर्वे की अदालत को सौंपी गया रिपोर्ट में एएसआई ने कहा है कि ढांचे यानी मस्जिद के पहले यहां एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। सर्वे रिपोर्ट में मंदिर होने के अनेक प्रमाण मिलने की बात कही गयी है। बताया गया है कि 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिरों के हैं। हिंदू मंदिर के स्तंभों को थोड़ा-बहुत बदलकर नये ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया। एसएसआई के अनुसार, सर्वे से पता चलता है कि ज्ञानवापी मस्जिद साफ तौर पर किसी मंदिर का बचा हुआ हिस्सा है। एएसआई ने कहा है, “यह कहा जा सकता है कि यहां पर एक बड़ा भव्य हिन्दू मंदिर था, अभी के ढांचे के पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। वर्तमान जो ढांचा है उसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े हिंदू मंदिर का हिस्सा है।”
सर्वे रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मस्जिद के अंदर एक पत्थर पर लिखा गया था कि इस मस्जिद का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब के काल में 1676 से 1677 के बीच हुआ। पत्थर पर यह भी खुदा था कि मस्जिद के सहन (आंगन) की मरम्मत 1792-1793 के बीच हुई। हालांकि अब इस पत्थर से मस्जिद निर्माण की तारीख और दूसरी चीजें खुरचकर मिटा दी गयी हैं।
एएसआई ने सर्वे के दौरान सफाई, लेबलिंग, वर्गीकरण, नाजुक खराब वस्तुओं आदि का परीक्षण किया था। इसके लिए ज्ञानवापी परिसर में ही एक प्रयोगशाला स्थापित गयी जिससे धातुओं सहित अन्य सामग्रियों की जांच में मदद मिली। पुरातत्वविदों, पुरातात्विक रसायनज्ञों, पुरालेखविदों, सर्वेक्षणकर्ताओं, फोटोग्राफरों और अन्य तकनीकी कर्मचारियों की एक टीम ने वैज्ञानिक जांच और दस्तावेज़ीकरण किया।
इस सर्वे में परिसर में छह तहखाने खुले पाए गये। यहां एएसआई की टीम भी पहुंची थी। चार और तहखानों की पुष्टि हुई है। सर्वे रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि दक्षिण में जो तहखाने हैं, उनमें हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीक चिन्ह मिले हैं। उत्तर में भी एक तहखाना मौजूद है जो दिखाई नहीं दे रहा है। चबूतरे के नीचे प्लेटफार्म क्षेत्र में तहखानों की छत है जिसका ऊपरी हिस्सा खुला है मगर नीचे की परत मलबे से भरी है। जांच में पाया गया कि मलबा भरकर इसे बंद किया गया है। मंच के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में कई खोखले या आंशिक रूप से भरे हुए तीन मीटर चौड़े तहखाने हैं। इनमें नौ वर्गमीटर आकार के कमरे हैं जिनकी दीवारें एक मीटर चौड़ी हैं। दक्षिणी दीवार की ओर खुले स्थान हैं जिन्हें अब सील कर दिया गया है क्योंकि जीपीआर सिग्नलों में एक-दो मीटर चौड़े अलग-अलग पैच देखे गये हैं। तहखाने के उत्तर की ओर खुले कार्यात्मक दरवाजे हैं।
पूर्वी हिस्से में दो मीटर चौड़ाई के तीन से चार तहखाने हैं। पूर्वी दीवार की मोटाई अलग-अलग है। गलियारे क्षेत्र से सटे मंच के पश्चिमी किनारे पर तीन से चार मीटर चौड़े तहखाने की दो पंक्तियां देखी गयी हैं। तहखाने के भीतर छिपा हुआ कुआं दो मीटर चौड़ा है। दक्षिणी तरफ एक अतिरिक्त कुएं के निशान मिले हैं। रिपोर्ट में बताया गया है, “तहखाने की दीवारों की जीपीआर स्कैनिंग से छिपे हुए कुएं और गलियारे के अस्तित्व का भी पता चलता है। दक्षिणी तहखाने का दरवाजा एक दीवार से ढका हुआ है।”
सर्वेक्षण के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पत्थर की कुल 55 मूर्तियां मिलीं जिनमें 15 शिवलिंग, विष्णु की तीन मूर्तियां, गणेश की तीन और नंदी की दो मूर्तियां शामिल हैं। कृष्ण की दो और हनुमान की पांच मूर्तियां भी मिली हैं। सर्वेक्षण के दौरान कुल 113 धातु की वस्तुएं और 93 सिक्के (जिनमें ईस्ट इंडिया कंपनी के 40, क्वीन विक्टोरिया के 21 और बादशाह शाह आलम द्वितीय के तीन सिक्के शामिल हैं) पाए गये और उनका अध्ययन किया गया।
मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे मंदिर का गर्भगृह
एएसआई की सर्वेक्षण रिपोर्ट में ज्ञानवापी में वर्तमान ढांचे (मस्जिद) से पहले जिस हिंदू मंदिर होने का उल्लेख है, उसे नागर शैली का बताया गया है। रिपोर्ट में मंदिर के चार खंभों से ढांचे तक की परिकल्पना बताई गयी है। एएसआई ने मंदिर का नक्शा नहीं बनाया है लेकिन रिपोर्ट में मंदिर के प्रवेश, मण्डप और गर्भगृह का जिक्र है। जीपीआर सर्वे में मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे पन्नानुमा टूटी वस्तु मिली है। यह वह हिस्सा है जहां पूर्वी दीवार को बंद किया गया है। इसके आगे का हिस्सा प्राचीन मंदिर का गर्भगृह होने की संभावना जताई जा रही है।
ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का कहना है कि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से संकेत मिला है कि ज्ञानवापी मस्जिद वहां पहले से मौजूद एक पुराने मंदिर के अवशेषों पर बनाई गयी थी। एएसआई की 839 पन्नों वाली सर्वेक्षण रिपोर्ट की प्रतियां अदालत द्वारा संबंधित पक्षों को उपलब्ध करा दी गयी हैं। जैन के मुताबिक, “रिपोर्ट से स्पष्ट है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान एक भव्य हिंदू मंदिर को ध्वस्त किए जाने के बाद उसके अवशेषों पर बनाई गयी थी।”
Gyanvapi: पांच महिलाओं ने दायर किया था वाद
17 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, मंजू व्यास, सीता साहू और रेखा पाठक ने वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था। इसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति देने की मांग की थी। महिलाओं की याचिका पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का एडवोकेट सर्वे कराने का आदेश दिया था। अदालत के आदेश पर पिछले साल तीन दिन तक सर्वे हुआ था। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया था। दावा था कि मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग है। हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना था कि वह शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा है जो हर मस्जिद में होता है।
सत्र न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा Gyanvapi मामला
इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी। सत्र न्यायालय ने इसे सील करने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। सर्वोच्च न्यायालय ने मामला जिला जज को स्थानान्तरित कर इस वाद की पोषणीयता पर नियमित सुनवाई कर फैसला सुनाने का निर्देश दिया। मुस्लिम पक्ष की ओर से यह दलील दी गई थी कि उपासना स्थल कानून 1991 के परिप्रेक्ष्य में यह वाद पोषणीय नहीं है, इसलिए इस पर सुनवाई नहीं हो सकती। हालांकि, अदालत ने इसे सुनवाई योग्य माना था।
मई 2023 में पांच वादी महिलाओं में से चार ने एक प्रार्थना पत्र दायर किया जिसमें मांग की गयी थी कि ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित हिस्से को छोड़कर पूरे परिसर का एएसआई से सर्वे कराया जाए। इसी पर जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश ने अपना फैसला सुनाते हुए एएसआई सर्वे कराने का आदेश दिया था।
Gyanvapi : व्यास गुफा पूजा और राग-भोग का आदेश
ज्ञानवापी परिसर में स्थित व्यासजी के तहखाने में तीस साल बाद पूजा-पाठ शुरू होना भी यह संकेत देता है कि नन्दीदेव की प्रतीक्षा खत्म होने वाली है। दरअसल, वाराणसी के जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने बुधवार, 31 जनवरी 2024 को व्यास परिवार और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के पुजारी से तहखाने में स्थित पूजा और राग-भोग कराने का आदेश दिया। जिला न्यायाधीश ने रिसीवर जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह सेटलमेंट प्लॉट नम्बर 9130 स्थित भवन के दक्षिण में स्थित तहखाने में पुजारी से पूजा और राग-भोग कराएं। अदालत ने सात दिन में लोहे की बाड़ का उचित प्रबन्ध करने के भी निर्देश दिए।
व्यासजी का तहखाना जिलाधारी के सुपुर्द करने की मांग और दिसम्बर 1993 से पहले की तरह पूजा-पाठ की अनुमति के लिए बीते साल सितम्बर को शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास ने अदालत में वाद दायर किया था। मुस्लिम पक्ष ने उपासना स्थल कानून 1991 का हवाला देते हुए इस याचिका को खारिज करने की मांग की। शैलेन्द्र कुमार ने वाद में आशंका जताई थी कि तहखाने पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी जबरन कब्जा कर सकती है। जिला न्यायाधीश ने 17 जनवरी 2024 को जिलाधिकारी वाराणसी को व्यासजी के तहखाने का रिसीवर बनाया था। साल के आखिरी दिन पूजा-पाठ की अनुमति देकर दूसरी मांग भी मान ली।
अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट का दिया हवाला
वादी शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास ने न्यायालय से 30 जुलाई 1996 की अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट का हवाला दिया। कमीशन ने रिपोर्ट में कहा था, “तहखाने के दक्षिणी द्वार पर वादी के ताले के अलावा प्रशासन का ताला लगा था। अधिवक्ता आयुक्त के सामने वादी ने चाबी से अपना ताला खोला पर प्रशासन का ताला खोलने का अनुमति न होने की वजह से अंदर नहीं जा सके।”
शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास ने वाद में कहा, “तहखाने में मूर्ती की पूजा होती थी। दिसम्बर 1993 के बाद पुजारी व्यासजी को उक्त प्रांगण के बैरिकेडिंग वाले क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इस कारण तहखाने में होने वाले राग-भोग संस्कार भी रुक गये।” वादी का कहना था कि पुजारी व्यासजी वंशानुगत आधार पर ब्रिटिश शासन में भी वहां थे और उन्होंने दिसम्बर 1993 तक पूजा-अर्चना की है। राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बगैर किसी विधिक अधिकार के तभी से पूजा रोक दी थी।
Gyanvapi सर्वे में आठ तकनीकों का इस्तेमाल
एएसआई सर्वे में आठ तरह की आधुनिक तकनीकों का सहारा लिया गया। इसमें डिफरेंशियल ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (डीजीपीएस), ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर), हैंडहेल्ड एक्सआरएफ, थर्मो हाइग्रोमीटर, जीपीएस मैप, टोटल स्टेशन सर्वेक्षण, एएमएस या एक्सेलेटर मास, स्पेक्ट्रोमेट्री, ल्यूनिनसेंस डेटिंग विधि के साथ ही नौ तरह के डिजिटल कैमरों का इस्तेमाल किया गया। एएसआई के सर्वे विशेषज्ञों में प्रो. आलोक त्रिपाठी के साथ डॉ. अजहर आलम हाशमी और डॉ. आफताब हुसैन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सर्वे टीम में देशभर से बुलाए गये करीब 175 विशेषज्ञ शामिल रहे।
एएसआई ने जिला जज की अदालत में जो रिपोर्ट सौंपी है, उसे चार अध्याय में बांटा गया है। पहले अध्याय में 155 पेज हैं जिनमें ज्ञानवापी की संरचना, वर्तमान ढांचा, खंभा-प्लास्टर, पश्चिमी दीवार, शिलालेख और भग्नावशेष का पूरा विवरण है। इसी अध्याय के अंत में आठ पेज में सर्वे के निष्कर्ष के रूप में बताया गया है कि मौके पर मिले साक्ष्यों, शिलालेख और वर्तमान ढांचे की व्यवस्था को देखकर पूरी तरह से स्पष्ट है कि प्राचीन हिंदू मंदिर के ऊपर मस्जिद का ढांचा तैयार किया गया है। 206 पेज के दूसरे अध्याय में वैज्ञानिक अध्ययन का उल्लेख है। 229 पेज के तीसरे अध्याय में सर्वे में साक्ष्य के रूप में एकत्र की गई एक-एक वस्तु, दीवारों एवं खंभों पर अंकित चिह्न और इनके माप का ब्यौरा और सर्वे में ली गयी तस्वीरों का विवरण है। 243 पेज के चौथे अध्याय में ज्ञानवापी परिसर में ली गयी तस्वीरों को चस्पा किया गया है।
Gyanvapi: 473 साल पुराना पूजा राग-भोग का इतिहास
ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यासजी के तहखाना प्रकरण को लेकर शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास ने न्यायालय में इस बात का दावा किया कि आदि विश्वेश्वर की पूजा का इतिहास 473 साल पुराना है। उनके द्वारा न्यायालय में जो दलील दी गयी उसके मुताबिक, ज्ञानवापी में शतानंद व्यास ने वर्ष 1551 में आदि विश्वेश्वर की पूजा शुरू की थी। इसके बाद व्यास परिवार की कई पीढ़ियों ने जिम्मेदारी निभाई और साल 1930 में इस परिवार के बैजनाथ व्यास ने पूजा-पाठ की जिम्मेदारी संभाली। फिर उनकी बेटी राजकुमारी उत्तराधिकारी बनीं जिनके चार बेटे हुए जिनमें से एक का नाम सोमनाथ व्यास था। शैलेंद्र कुमार इन्हीं सोमनाथ व्यास की बेटी ऊषा रानी के बेटे के रूप में तहखाने में पूजा का अधिकार मांग रहे थे।
शिव ने अपने त्रिशूल से बनाया ज्ञानवापी
वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। ज्ञानवापी का अर्थ होता है ज्ञान+वापी यानी ज्ञान का तालाब। इसी कुएं के नाम पर मन्दिर तोड़ कर बनायी गयी मस्जिद का नाम पड़ा। स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने लिंगाभिषेक के लिए स्वयं अपने त्रिशूल से यह कुआं बनाया था। कहते हैं कि इस कुएं का जल बहुत ही पवित्र है जिसे पीकर व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ज्ञानवापी का जल श्री काशी विश्वनाथ पर चढ़ाया जाता था।