#शिव_मंदिर : श्री बाबा पशुपतिनाथ मंदिर,कानपुर
@sanatanyatraश्री बाबा पशुपतिनाथ #शिव_मंदिर कानपुर सेन्ट्रल स्टेशन से लगभग 12 किमी दूर पश्चिम दिशा में रावतपुर स्टेशन होते हुए गुरूदेव चौराहा से चिड़ियाघर के मध्य केसा कालोनी चन्द्र विहार में यह मंदिर स्थित है।कानपुर नगर एवं ग्रामीण के प्राचीन पौराणिक एवं ऐतिहासिक शिव मंदिरों की श्रृंखला में “श्री बाबा पशुपतिनाथ मंदिर “का दर्शन करते हैं।
एक जनश्रुति है कि आज से काफी समय पूर्व गंगा जी में भयंकर बाढ़ आ गई थी। गंगा जी के दोनों तटों के खेत और गॉंव जलमग्न हो गये थे। इस बाढ़ में बहुत से पशु दूर दूर से बहकर आने लगे।बहुत से पशु सुरक्षा हेतु केसा कालोनी, चन्द्र विहार में भी विचरने लगे।
यहाँ के निवासियों ने आपदा ग्रस्त निरीह पशुओं को पेट भरने हेतु चारे आदि की सुव्यवस्था की। उन खुले पशुओं में एक सॉंड़ भी था। जो अत्यन्त सीधा एवं शान्त था , किन्तु उसका शरीर सौष्ठव बहुत सुंदर एवं सुडौल था. लोग उसे नन्दी “पशुपति “ का स्वरूप समझ कर “नन्दी “नाम से पुकारने लगे।
बाढ़ की समाप्ति के बाद सभी पशु चले गये। इस बेचारे नन्दी का न कोई स्वामी था, न ही वह, इस स्थान को छोड़कर जाना चाहता था।भोला भाला पशु यहीं रम गया।
समय व्यतीत होता गया। इस अबोध मूक पशु नन्दी ने अपने शान्त स्वभाव से सभी क्षेत्रवासियों को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। लोगों के स्नेह के कारण नन्दी अन्यत्र कहीं नहीं जाता था।काल की विचित्र गति के कारण सभी उसके चक्र में आते हैं। एक दिन किसी अज्ञात व्यक्ति ने घातक हथियार से आक्रमण कर गहरे घाव कर दिये।दया पात्र घायल नन्दी लहूलुहान होकर अपने प्राणों की रक्षा करते पीड़ा से अत्यंत पीड़ित हो श्री सॉंवलिया राय जी के घर के समीप असमर्थ होकर गिर गया।
श्री राय साहब जो एक धार्मिक व्यक्ति थे। नन्दी की दशा देखकर स्तब्ध रह गये। तुरन्त नन्दी की चोटों का उपचार प्रारम्भ हो गया। लोगों से भी जो सहयोग बन सका नन्दी की सेवा में किया , किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। मृत्यु ने नन्दी को स्पर्श किया।और उसके प्राण सदा सदा के लिए शरीर त्याग कर चले गये।वेदना जन्य नन्दी की मृत्यु के दृश्य देखकर श्री राय साहब का अन्तःकरण द्रवित हो उठा। उन्होंने क्षेत्र के गणमान्य नागरिकों को इस दुखद समाचार से अवगत कराया तथा परामर्श हेतु अपने निवास पर उपस्थित होने का आग्रह किया।
नन्दी की इस दुखद मृत्यु के समाचार से केसा कालोनी व आस-पास शोक की लहर दौड़ गई।नन्दी के अंतिम दर्शनार्थ स्नेही लोग उसके समीप आने लगे। यह समाचार पाकर केसा कालोनी के अधिकारी एवं कर्मचारी आदि उपस्थित हुए। घटना से दुखी लोगों ने निर्णय लिया कि नन्दी की मृत देह को इसी स्थान पर समाधिस्थ कर दिया जाय।
कुछ समझ पश्चात लोगों की सद्भावनाओं के फलस्वरूप इसी स्थान पर एक शिव मंदिर का निर्माण कराने का निश्चय किया गया।ओंकारेश्वर से शिवलिंग लाकर प्रतिष्ठित किया और इसका नामकरण “श्री पशुपतिनाथ मंदिर “ के नाम से किया गया।परम शिव भक्त श्री सॉंवलिया राय ने क्षेत्रीय नागरिकों के सहयोग से मंदिर कार्य को द्रुतगति प्रदान की और रिकार्ड बाइस दिनों के अन्दर यह कार्य हो गया।
अक्षय तृतीया “श्री परशुराम जयंती “ के शुभ अवसर पर प्राण- प्रतिष्ठा कर शिवलिंग की स्थापना की गई। इस बेला पर न केवल कानपुर महानगर व उत्तर प्रदेश वरन सम्पूर्ण भारतवर्ष से उच्च कोटि के विद्वान वेद मर्मज्ञ शास्त्र ज्ञाता एवं धर्मज्ञ उपस्थित हुए।तभी से इस तिथि को प्रतिवर्ष भगवान “पशुपतिनाथ “ का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है।