Tranding
Friday, September 20, 2024
#Madmaheshwar_Temple,#मद्महेश्वर,भगवान शिव की नाभि का पूजन,#Panch Kedar, #बूढ़ा_मदमहेश्वर, #मदमहेश्वर #महमहेश्वर_मन्दिर#Budha Madmaheshwar, #Budha Madmaheshwar Temple,

#मद्महेश्वर_मंदिर : यहां होता है भगवान शिव की नाभि का पूजन

प्रकाश नौटियाल

@sanatanyatra:उत्तराखण्ड के चार धामों बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के बारे में तो सभी ने सुना होगा पर यहां एक ऐसा धाम भी है जहां भगवान शिव की नाभि की पूजा होती है। खूबसूरत वादियों के बीच स्थित इस धाम को मद्महेश्वर (Mahamaheshwar) के नाम से जाना जाता है। इसका केदारनाथ से गहरा नाता है। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु इस मन्दिर में सच्चे मन से ध्यान लगाता है, उसे शिव के परम धाम में स्थान मिलता है। रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ ब्लॉक में समुद्र की सतह से 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर मन्दिर (Mahamaheshwar Temple) के बारे में हमने केवल सुना था, दर्शन का सौभाग्य अब तक नहीं मिला था। यहां की यात्रा की योजना एकाएक ही बनी।

मद्महेश्वर क्षेत्र हिमालय के बिल्कुल पास है और यहां सर्दी के मौसम में हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड पड़ती है। मई से अक्टूबर के बीच यहां की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय है। मन्दिर नवम्बर से अप्रैल के बीच बन्द रहता है।

बूढ़े मद्महेश्वर : यहीं पर एक छोटी-सी कुटिया में बूढ़े मद्महेश्वर (Budha Madmaheshwar) विराजमान हैं। सामने एक तालाब था जिसमें पड़ता मन्दिर का प्रतिबिम्ब मन मोह रहा था। तीर्थयात्रियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी क्योंकि कुछ ही समय पश्चात सूर्य भगवान उदित होने वाले थे। श्रद्धालु इस अद्भुत दृश्य को देखने का अवसर चूकना नहीं चाहते थे। चारों तरफ लगे देवदार और भोजपत्र के वृक्ष ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो सिपाही की भांति मन्दिर की रक्षा कर रहे हों। हिमाच्छादित चोटी के पीछे से उदित होते हुए सूर्यदेव ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे अंगूठी में हीरा जड़ा हो। श्रद्धालु इस दृश्य को अपने-अपने कैमरों में कैद कर रहे थे। हमने भी इस दृश्य को देखकर वृद्ध मद्महेश्वर को प्रणाम किया।

इसलिए कहा जाता है पंचकेदार (That is why it is called Panchkedar)

मद्महेश्वर मन्दिर (Mahamaheshwar Temple) को “मदमाहेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है| इस मन्दिर में पूजा करने के बाद केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर धाम की यात्रा की जाती है| इस मन्दिर को पाण्डवों द्वारा निर्मित माना जाता है। यह भी माना जाता है कि भीम ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए इस मन्दिर का निर्माण किया था। मन्दिर के प्रांगण में स्थित “मध्य” (“बैल का पेट” या “नाभि”) को भगवान शिव का दिव्य रूप माना जाता है। काले पत्थर से बना नाभि के आकार का शिव-लिंगम पवित्र स्थान में स्थित है। दो अन्य छोटे तीर्थ हैं, पहला शिव-पार्वती का है जबकि दूसरा अर्धनारीश्वर को समर्पित है। मुख्य मन्दिर के दाहिनी ओर एक छोटा मन्दिर है जिसके गर्भगृह में संगमरमर से बनी देवी सरस्वती की मूर्ति है। इस मन्दिर की रजत मूर्तियों को सर्दियों में उखीमठ में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। मन्दिर परिसर के पानी को अत्यधिक पवित्र और इसकी कुछ बूंदों को स्नान के लिए पर्याप्त माना जाता है। यहां पुजारी दक्षिण भारत के होते हैं। यह महत्वपूर्ण पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है जिसे पंचस्थली (पांच जगह) सिद्धान्त के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।

मद्महेश्वर मन्दिर (Mahamaheshwar Temple) को भगवान शिव के पंचकेदार में से एक माना जाता है। पंचकेदारों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। शिव पुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात पाण्डव अपने पापों से मुक्ति चाहते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उनको सलाह दी थी कि वे भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त करें। इस पर पाण्डव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी गये। गोत्र हत्या के दोषी पाण्डवों से भगवान शिव नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। इसलिए वे गुप्तकाशी में छुप गये। पाण्डव उन्हें खोजते हुए गुप्तकाशी भी पहुंच गये तो शिवजी ने बैल का रूप धारण कर लिया। पाण्डवों ने उन्हें पहचान लिया और उनका पीछा करने लगे। बैल ने अपनी गति बढ़ानी चाही तो भीम उसको पकड़ने दौड़े। यह देख शिव रूपी बैल ने स्वयं को धरती में छुपाना चाहा। ज्यों ही बैल का अग्र भाग धरती में समाया, भीम ने उसकी पूंछ पकड़ ली। इस पर बैल के पीछे का भाग पिण्ड के रूप में केदारनाथ में विद्यामान हो गया। बैल का अगला भाग सुदूर हिमालय में जिस स्थान पर जमीन से बाहर निकला, वह अब काठमाण्डू कहलाता है और भगवान शिव वहां पशुपतिनाथ के रूप में विराजमान हैं। बैल का शेष भाग यानी पांव तुंगनाथ में, नाभी या मध्य भाग मद्महेश्वर में, मुख रुद्रनाथ में और जटाएं कल्पेश्वर में निकलीं। पशुपतिनाथ नेपाल में हैं जबकि बाकी उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में जिन्हें पंच केदार कहा जाता है। पंच केदार मन्दिरों का निर्माण उत्तर-भारतीय हिमालयी मन्दिर वास्तुकला के अनुसार किया गया है। इनमें केदारनाथ, तुंगनाथ और मद्महेश्वर मन्दिर समान दिखते हैं। मद्महेश्वर मन्दिर उच्च हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं में चौखम्बा (शाब्दिक अर्थ चार स्तम्भ या चोटियां), नीलकंठ और केदारनाथ की बर्फीली चोटियों से घिरी एक हरीभरी घाटी में है।

ऐसे पहुंचें मदमहेश्वर (How to reach Madmaheshwar)

वायुमार्ग : निकटतम एयरबेस देहरादून का जॉली ग्रान्ट हवाईअड्डा मद्महेश्वर से करीब 244 किलोमीटर दूर स्थित है।

रेल मार्ग : गौण्डार (मद्महेश्वर) गांव का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेशऊखीमठ से 181 किमी दूर है। ऋषिकेश से बस या टैक्सी लेकर उखीमठ पहुंचने के बाद वहां से मन्दिर के लिए ट्रैकिंग शुरू कर सकते हैं।

सड़क मार्ग : उत्तराखण्ड परिवहन निगम के साथ ही निजी बस सेवाएं भी मद्महेश्वर को आसपास के शहरों से जोड़ती हैं। दिल्ली के आनन्द विहार अन्तरराज्यीय बस टर्मिनल से बस पकड़ कर हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए उखीमठ पहुंच सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हमारी टीम

संस्थापक-सम्पादक : विशाल गुप्ता
प्रबन्ध सम्पादक : अनुवन्दना माहेश्वरी
सलाहकार सम्पादक : गजेन्द्र त्रिपाठी
ज्वाइंट एडिटर : आलोक शंखधर
RNI Title Code : UPBIL05206

error: Content is protected !!