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Thursday, November 21, 2024
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देवालय / May 20, 2024

ककनमठ : मध्य प्रदेश का “अजूबा मन्दिर”

सनातनयात्रा: सिंधिया राजवंश के गौरव के प्रतीक ग्वालियर में तीन दिन गुजारने के बाद हमारा अगला गन्तव्य था राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य। यह एक संरक्षित क्षेत्र है जो गम्भीर रूप से विलुप्तप्राय घड़ियाल, लालमुकुट कछुआ और विलुप्तप्राय गंगा सूंस के संरक्षण- संवर्द्धन के लिए बनाया गया है। ग्वालियर से इसकी दूरी करीब 105 किलोमीटर है। होटल से ही यहां के लिए टैक्सी बुक कराते समय रिसेप्शन पर मिले एकभद्र पुरुष ने सलाह दी कि हमें अभयारण्य के मार्ग पर पड़ने वाले ककनमठ मन्दिर को अवश्य देखना चाहिए जो मुरैना जिले के सिहोनिया कस्बे में है।

बरेथा और नोनेरा होते हुए हम सिहोनिया पहुंचे तो प्रातः के दस बजे रहे थे। करीब 59 किलोमीटर की दूरी हमने सवा घण्टे में तय की। सिहोनिया से काफी पहले से ही एक मन्दिर का शिखर दिखना लगा। टैक्सी चालक ने बताया कि यही ककनमठ मन्दिर है। यह अब खण्डहरावस्था में है और मूल मन्दिर परिसर का केवल एक भाग ही बचा है। देवाधिदेव शिव को समर्पित इस मन्दिर का निर्माण गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा कीर्तिराज (1015-1035) ने करवाया था। कहा जाता है कि उनकी पत्नी ककनावती शिव की बड़ी भक्त थीं, इसलिएइस मन्दिर का नाम उनके नाम रखा गया कनकमठ।

एक शिलालेख में कहा गया है कि कीर्तिराज ने सिहापनिया (आधुनिक सिहोनिया) में देवी पार्वती के पति भगवान (शिव) को समर्पित एक असाधारण मन्दिर बनवाया। इसका निर्माण 1015 से 1035 के बीच हुआ था। एक लोककथा के अनुसार, मन्दिर का नाम काकनावती या काकनाडे के नाम पर “काकनमध” रखा गया जो सूरजपाल की रानी थीं। हालांकि इस कथा की ऐतिहासिकता संदिग्ध है। एक संभावना यह भी है कि मन्दिर का नाम कनक (सोना) और मठ (मन्दिर) से लिया गया है।

मूल रूप से इस स्थान पर एक मन्दिर परिसर था जिसमें एक केन्द्रीय मन्दिर चार सहायक मन्दिरों से घिरा हुआ था। अब केवल केन्द्रीय मन्दिर के खण्डहर बचे हैं, बाहरी दीवारें, बालकनियां और शिखर का एक हिस्सा गिर गया है। यह क्षति संभवतः भूकम्प के दौरान हुई होगी। 1393-94 सीई के एक संस्कृत भाषा के स्तम्भ शिलालेख में दुर्गाप्रसाद द्वारा महादेव मन्दिर (ककनमठ) का नवीनीकरण कराने का उल्लेख है। 1440-41 सीई के एक स्तम्भ शिलालेख में डुंगारा (ग्वालियर के एक तोमर शासक) के शासनकाल के दौरान देखना नामक तीर्थयात्री की यात्रा की जानकारी है। इसमें कहा गया है कि देखना काकनथा का पुत्र और नलपुरागढ़ा का निवासी था।

भूतों से जुड़ी जनश्रुति कुछ लोग यह भी मानते हैं कि भगवान शिव के आदेशानुसार भूतों ने रातों-रात इस मन्दिर का निर्माण किया था। सुबह जब गांव की किसी महिला ने आटा पीसने के लिए चक्की चलाई तो उसकी आवाज सुनकर भूत वहां से भाग गये  और मन्दिर का काम अधूरा रह गया। यह मन्दिर आपको अधूरा ही नजर आएगा। इसको देखकर ऐसा लगता है कि जैसे यह अभी गिरने ही वाला है लेकिन इसके बाद भी हजारों वर्षों से वैसा ही खड़ा है। आंधी-तूफान आने पर भी मन्दिर का कोई भी हिस्सा हिलता-डुलता नहीं है। लोकमत है कि जिस दिन इस मन्दिर के सामने से नाई जाति के नौ काने दूल्हे एक साथ निकलेंगे, उस दिन यह खुद ब खुद गायब हो जाएगा।

हालांकि, इस मन्दिर को भूतों ने बनाया था, इससे जुड़ा भी कोई सटीक प्रमाण नहीं हैं। सच्चाई चाहे जो भी हो लेकिन यह अधूरा मन्दिर अपने आप में बेहद ही अनोखा है। इसे मध्यप्रदेश का “आजूबा मन्दिर” भी कहा जाता है।

राष्ट्रीय महत्व का स्मारक

इस मन्दिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हालांकि उसने यह भी कहा है कि वह किसी भी तरह से इस मन्दिर को दुरुस्त नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा प्रयास करने पर पूरा मन्दिर नष्ट हो सकता है।  मन्दिर के गर्भगृह में कोई भी आधिकारिक पुजारी अथवा महन्त नियुक्त नहीं है। मंदिर में कार्यरत सभी व्यक्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियमित कर्मचारी हैं।

वास्तुकला

इस मन्दिर का निर्माण उत्तर भारतीय शैली (नागर शैली) पर किया गया है। पत्थरों से बनी यह विशाल संरचना एक अलंकृत पीठा (आधार) पर खड़ी है और शिखर तक इसकी ऊंचाई करीब 30 मीटर है। इसमें एक गर्भगृह, एक बरोठा और दो सभागार (गुढ़ा मण्डप और मुख मण्डप) शामिल हैं। गर्भगृह का द्वार गंगा एवं यमुना देवियों और द्वारपाल से घिरा हुआ था। गर्भगृह में तीन अनुप्रस्थ पथों वाला एक प्रदक्षिणा पथ है। गूढ़ मण्डप में पार्श्व अनुप्रस्थ भाग और स्तम्भों के चार समूह हैं और प्रत्येक क्लस्टर में चार स्तम्भ हैं। वेस्टिबुल में एक पंक्ति में चार स्तम्भ हैं जो गूढ़ मण्डप के चार समूहों के साथ संरेखित हैं। मन्दिर के प्रवेश द्वार की सीढ़ियों पर सिंह की दो बड़ी मूर्तियां थीं  जो बाद में ग्वालियर के पुरातत्व संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर स्थापित कर दी गयीं। कई अन्य मूर्तियां भी ग्वालियर ले जाई जा चुकी हैं।

सबसे खास बात यह है की ककनमठ मन्दिर के निर्माण में किसी भी तरह के मसाले, सीमेंट या गारे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। मन्दिर को देखने पर लगता है कि सभी पत्थर एक के ऊपर एक रखे गये हैं। इसके साथ ही कभी-कभी यह भी लगता है कि ये पत्थर एकाएक भरभरा कर गिर न पड़ें।

कब जायें

ककनमठ मन्दिर चम्बल के बीहड़ क्षेत्र में स्थित है जहां मध्य मार्च से जून के आखीर तक परेशान कर देने वाली गर्मी पड़ती है। जुलाई, अगस्त और सितम्बर में यहां मध्यम से तेज बारिश होती है। यहां जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मध्य मार्च के बीच का है। मन्दिर प्रतिदिन प्रातः छह बजे से सायंकाल आठ बजे तक खुला रहता है।

ऐसे पहुंचें

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा ग्वालियर का राजमाता विजया राजे सिन्धिया एयर टर्मिनलन यहां से करीब 49 किलोमीटर पड़ता है। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलुरु, श्रीनगर, सूरत, बागडोगरा, गोरखपुर आदि से यहां के लिए उड़ानें हैं।

रेल मार्ग : निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन मुरैना यहां से करीब 32 किलोमीटर दूर है। भोपाल, ग्वालियर, दिल्ली, चेन्नई, आगरा, मुम्बई, बरेली, एर्नाकुलम, नासिक आदि से यहां के लिए ट्रेन मिलती हैं। एक और बड़ा रेलवे स्टेशन ग्वालियर जंक्शन यहां से मात्र 59 किलोमीटर पड़ता है।

सड़क मार्ग : मुरैना मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों के साथ अच्छे सड़क नेटवर्क से जुड़ा है। यदि आप अपने वाहन से जा रहे हैं तो ग्वालियर शहर से ककनमठ मन्दिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका ग्वालियर-गोहद-मुरैना मार्ग से जाना है।

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