मां भगवती को इसलिए लेना पड़ा”भ्रामरी अवतार”
प्राचीन काल में एक अरुण नामक दैत्य था। उसने ब्रह्माजी का कठोर तप किया। ब्रह्माजी प्रसन्न हुए। अरुण ने ब्रह्माजी से वर मांगा, ‘युद्ध में मुझे नहीं मारा जा सके। न किसी अस्त्र-शस्त्र से मेरी मृत्यु हो, स्त्री-पुरुष के लिए मैं अवध्य रहूं और न ही दो व चार पैर वाला प्राणी मेरा वध कर सके। साथ ही मैं देवताओं पर विजय प्राप्त कर सकूं।’ ब्रह्माजी, तथास्तु कहकर चले गए।
वर पाने के बाद सबसे पहले अरुण दैत्य ने स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त किया। जब देवताओं के पास स्वर्ग नहीं रहा तो वे भगवान शिव के पास गए। उसी समय आकाशवाणी हुई कि, ‘सभी देवता मां दुर्गा की आराधना करें। केवल वह अरुण नाम के दैत्य का संहार कर सकती हैं।’
देवताओं ने आकाशवाणी के अनुरूप ही, मां दुर्गा का तप किया। देवी प्रसन्न हुईं और देवताओं के समक्ष उपस्थित हुईं। लेकिन देवता उनके रूप को देख हैरान थे। इस रूप में मां दुर्गा के 6 पैर थे। और वह एक विशेष प्रकार की भ्रमरों (मधुमक्खी) से घिरीं हुईं थीं।
भ्रमरों से घिरी होने के कारण देवताओं ने उन्हें भ्रामरी देवी कहकर संबोधित किया। देवताओं की समस्या सुन, देवी ने अपने आस-पास मौजूद भ्रामरों को दैत्य अरूण का अंत करने भेजा। सभी भ्रामर तेजी से दैत्य अरूण के पास गए और उससे चिपक गए। जिसके चलते उसकी मौत हो गई।