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Friday, September 20, 2024

प्रश्न : जब भगवान श्रीकृष्ण ने माखन चुराकर खाया.. उनको परमसुख मिला..जबकि उन्हीं के परम् मित्र.. सुदामा ने उनके 2 मुट्ठी चने क्या खा लिए..तो उनकी दुर्दशा क्यों हुई

@sanatanyare:प्रश्न : जब भगवान श्रीकृष्ण ने ना जाने कितनी गोपियों का माखन चुराकर खाया.. उनको परमसुख मिला..
जबकि उन्हीं के परम् मित्र.. सुदामा ने उनके 2 मुट्ठी चने क्या खा लिए..तो उनकी व उनके परिवार की गरीबी से इतनी दुर्दशा क्यों हुई

सभी लोग भाव को समझें..
उत्तर : यही सब कथा वाचकों ने जो भ्रम जाल फैलाया है और अपनी तरफ से कथा में अपनी बुद्धि के अनुसार addition deletion करके सिद्धांतों का मटियामेट कर देते हैं और अन्य धर्म वालों को हंसने के लिए बाध्य करते हैं !पहले तो यह बिलकुल स्पष्ट हो जाना चाहिए कि सुदामा की दरिद्रता दो मुट्ठी भर चने मात्र खा लेने से नहीं थी !जब उन्होंने उनके चने खाए भी नहीं थे , तभी बचपन से ही वह दरिद्र थे ! कोई बहुत बड़े धन्ना सेठ नहीं थे !

अरे भगवान् को इतना नीच और दुष्ट प्रकृति का बना दिया कि वह मात्र दो मुट्ठी चने खाने पर किसी को जीवन भर त्रास देंगे !! वह भी अपने परम मित्र का !!

कितना घटिया सोचते हैं यह कथा वाचक भगवान् की भगवत्ता को लेकर के ! अरे इतने नीचे गिर जायेंगे कि दो मुट्ठी चने से वह किसी को जीवन भर की आर्थिक यंत्रणा देंगे !! वह भी उसके साथ साथ पत्नी और बच्चों को भी !! वाह रे सोचने का स्टाइल !
इतना घटिया भगवान नहीं हैं !अरे उन्होंने तो अपने बाल सखाओं के मुक्के खाए हैं पीठ पर ।

अब दूसरा सिद्धांत सुनिए ! यह बात कई बार बता चुका हूँ कि कर्म के अलावा भगवान् कोई भी फल नहीं दे सकते ! न ही किसी को अपनी ओर से अमीर बना सकते हैं और न ही गरीब !

कुल मिलाकर यह ध्यान रहे कि भगवान कुछ नहीं करते वरते ! जो करता है , वह उनका कानून और नियम करता है ! उन्होंने तो बस सृष्टि के सञ्चालन के लिए कुछ नियम इत्यादि बना दिए हैं जिन्हें प्रकृति संचालित करती है ! उसमें भगवान् भी दखलंदाजी नहीं करते हैं !

ऐसा कभी नहीं होगा कि जो पाप करेगा या भगवन को गालियाँ देगा , उसे तुरंत भगवान् मार देंगे या उसको गरीब बना देंगे ! न ही ऐसा होगा कि जो भगवान को भजता है या उससे प्रेम करता है उसे मालामाल बना देंगे या या उसकी आयु बढा देंगे !
जो कुछ भी होगा , उसके कर्मों के अनुसार होगा ! कर्मफल उसे मिलकर रहेगा चाहे लाख भगवान् को गालियाँ दो या भगवान की बधाई करो !

भगवान् कोई साधारण नेता नहीं है या सांसारिक आदमी नहीं है जिसकी लल्लो चप्पो करो तो खुश और बुराई करो तो वह दुश्मन बन जाएगा !

भगवान् भगवदीय सत्ता है !
अगर ऐसा होता तो पश्चिम के सभी लोग गरीब और दरिद्र होते , क्योंकि वहाँ 80% जनता भगवान् को नहीं मानती ! आपने स्वयं देखा होगा कि बड़े से बड़ा गुंडा मवाली भी बढ़ता चला जाता है और बड़े से बड़ा भक्त भी दरिद्र और दुखों के पहाड़ से बोझिल रहता है !

यह सब अपने अपने कर्मों का फल मात्र है ! इसमें भगवान भी कुछ नहीं करते ! जैसे ही यह फल भोग खत्म होता है वैसे ही विडंबना बनती है और सब उल्टा हो जाता है , राजा रंक बन जाता है और रंक राजा !
यह जो मुट्ठी भर चने खाने से सुदामा दरिद्र हुए , यह बात कथा वाचकों ने फैलाया है ! अच्छा उन कथा वाचकों से यह पुछा जाए कि ठीक है सुदामा ने भगवान के चने खाए, तो पृथ्वी पर या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर ऐसा कौन सा तत्व है जो उनका नहीं है ?? अरे सभी कुछ तो उन्हीं का है ! हम जो खा रहे हैं पी रहे हैं , यह सब उन्हीं का ही तो है ! और इतने दुष्ट हैं भगवान् कृष्ण कि दो मुट्ठी चने खाने पर इतना भीषण दंड !

अरे बाज आये ऐसे भगवान् से ! इनसे अच्छा तो डाकू , गुंडे मवाली होते हैं जो कम से कम चने खाने पर इतना बड़ा दंड तो नहीं देते !यह सब फ्रॉड बातें हैं ! सुदामा भगवान के मित्र ही नहीं , बहुत बड़े भक्त भी थे !

भगवान् कृष्ण तो अन्तर्यामी थे ! सुदामा जब गरीब थे भगवान तब भी जानते थे , लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया ! ऐसा नहीं था कि जब सुदामा भगवन के पास द्वारिका आये तभी उन्हें पता लगा कि “ ओह मेरा मित्र तो गरीब है “ न न बिलकुल नहीं वह तो सदा से अन्तर्यामी हैं ! जो द्रौपदी के चीर को वहीं से बैठे बैठे बढा सकता है , वह सुदामा की गरीबी नहीं मिटा सकता था या उन्हें पता नहीं था कि सुदामा मेरा परम मित्र गरीब है ???

यह सब कर्मों के फल के अनुसार है ! सुदामा की गरीबी जितने समय के लिए लिखी थी , उतने समय तक रही , भगवान की भी हिम्मत नहीं कि अपने बनाए क़ानून के विरुद्ध चले जाएँ ! जब उपयुक्त समय आया तो उसी “समय” या “प्रारब्ध” ने सुदामा की पत्नी के बुद्धि में घुस कर प्रेरणा कर सुदामा को बाध्य किया भगवान कृष्ण के पास जाने के लिए !
तब भगवन ने यह सारा खेल रचा !

यही भगवान् थे ! पांडवों की भरी सभा में इज्जत लुटी , पहले 12 वर्ष का वनवास , फिर 13 वर्ष का , फिर अज्ञातवास , द्युत क्रीडा में हारना , बंजर भूमि मिलना , फिर से वह भूमि छीन जाना , लाक्षागृह में जला देना , फिर वहाँ से वन वन भटकना , गांडीव धारी अर्जुन को वृहन्नला बनना , भीम को रसोइयाँ बनना , युद्धिष्ठिर का कंक बनना , द्रौपदी का दासी बनना , नकुल सहदेव का घोड़े और गायों का लीद और गोबर उठाना, सब सहना पडा ! क्या वह परम मित्र नहीं थे भगवान के ??? अरे परम मित्र तो दूर की बात सगे सम्बन्धी थे वह !

उन्हीं की स्त्री लक्ष्मी जी की अवतार रुक्मिणी के दोनों भाई मारे जाते हैं , सत्यभामा तक के भाई मार दिए जाते हैं , हत्या हो जाती है , वह अपने स्याले के लिए कुछ नहीं कर पाते !

लेकिन नहीं ! सब कर्मों के आधीन हैं !
दो मुट्ठी चने मात्र खा लेने पर भगवान् को दुष्ट , राक्षस , मवाली बोल देना यह सब कथावाचकों के निम्न बुद्धि का द्योतक है !
यह ध्यान रहे , भगवान शुद्ध तत्व है ! वह अमृत के समान है ! उससे किसी भी प्रकार का सम्बन्ध एकमात्र हित ही करेगा !
इसीलिए शुभ कर्म करते चलो ! कर्मों का ही फल मिलता है ! इसीलिए भगवन ने गीता में कहा कि अर्जुन तू कर्म कर , फल की इच्छा मत कर ! क्योंकि तेरे इच्छा करने से कुछ नहीं होने वाला ! जैसा क़ा

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