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Friday, September 20, 2024

#एकादशी_व्रत उद्यापन की विस्तृत विधि

@sanatanyatra:एकादशी का व्रत एक तप है तो उद्यापन उसकी पूर्णता है। उद्यापन वर्ष में एक बार किया जाता है इसके अंग हैं- व्रत, पूजन, जागरण, हवन, दान, ब्राह्मण भोजन, पारण। समय व जानकारी के अभाव में कम लोग ही पूर्ण विधि-विधान के साथ उद्यापन कर पाते हैं। प्रत्येक व्रत के उद्यापन की अलग-अलग शास्त्रसम्मत विधि होती है। इसी क्रम में शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशियों का उद्यापन करने की विस्तृत शास्त्रोक्त विधि आपके समक्ष प्रस्तुत है।

वर्ष भर के 24 एकादशी व्रत किसी ने कर लिये हों तो वो उसके लिए उद्यापन करे। जिसने एकादशी व्रत अभी नहीं शुरु किये लेकिन आगे से शुरुआत करनी है तो वह भी पहले ही एकादशी उद्यापन कर सकते हैं और उस उद्यापन के बाद 24 एकादशी व्रत रख ले। कुछ लोग साल भर केवल कृष्ण पक्ष के 12 एकादशी व्रत लेकर उनका ही उद्यापन करते हैं तो कुछ लोग साल भर के 12 शुक्ल एकादशी व्रत लेकर उनका ही उद्यापन भी करते हैं ।

अतः जैसी इच्छा हो वैसे करे लेकिन उद्यापन अवश्य ही करे तभी व्रत को पूर्णता मिलती है। कृष्ण पक्ष वाले व्रतों का उद्यापन कृष्ण पक्ष की एकादशी – द्वादशी को करे, शुक्ल पक्ष वाले व्रतों का उद्यापन शुक्ल पक्ष की एकादशी – द्वादशी को करे। दोनों पक्ष के 24 एकादशी व्रतों का उद्यापन किसी भी पक्ष की एकादशी को कर सकते हैं (लेकिन चौमासे में एकादशी उद्यापन नहीं करना है)।

शास्त्रों के अनुसार एकादशी उद्यापन दो दिन का कार्यक्रम होता है पहले दिन एकादशी को व्रत के साथ पूजा होती है तथा द्वादशी को हवन करके 24 या12 ब्राह्मणों को दान देकर भोजन करवाया जाता है।

प्राचीन महाभारत काल में इस एकादशी उद्यापन की विधि के बारे में पूछते हुए अर्जुन बोले, “हे कृपानिधि ! एकादशी व्रत का उद्यापन कैसा होना चाहिये और उसकी क्या विधि है? उसको आप कृपा करके मुझे उपदेश दें।” तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- “हे पांडवश्रेष्ठ ! उद्यापन के बिना, कष्ट से किये हुए व्रत भी निष्फल हैं। सो तुम्हें उसकी विधि बताता हूं। देवताओं के प्रबोध समय में ही एकादशी का उद्यापन करे। विशेष कर मार्गशीर्ष के महीने, माघ माह में या भीम तिथि (माघ शुक्ल एकादशी) के दिन उद्यापन करना चाहिये |” भगवान के उपरोक्त कथन से तात्पर्य है कि चातुर्मास (आषाढ़ शुक्ला एकादशी से लेकर कार्तिक कृष्ण एकादशी) में एकादशी उद्यापन नहीं करे।

एकादशी उद्यापन की पूजा सामग्री

तुलसीदल (मंजरी), तुलसीपत्र, फूल, दूब, गंगाजल (अथवा सामान्य पवित्र पानी), पंचामृत, आचमन पात्र + आचमनी, कलश, शंख / अर्घ्य, भगवान के लिए कपड़ा जनेऊ – फूलमाला- रुद्राक्षमाला, कलश के लिए सवा मीटर काला- सफेद वस्त्र, कटोरे -5 (1 कलश के लिए, गणेश-मातृका-दुर्गा-क्षेत्रपाल के लिए4), लक्ष्मीजी व विष्णुजी की मूर्ति, गणेशजी दुर्गाजी की मूर्ति अथवा पूगीफल ले लें, चंदन पाउडर, रोली (कुमकुम), चावल, धूप-अगरबत्ती, फल व दक्षिणा (गणेशजी, 16मातृका, वेदी, कलश, विष्णुजी 5 के लिए), पान के 2 पत्ते, लौंग-इलायची सुपारी (पूगीफल), रुई- बत्तियां, घी की बत्ती, दिया (मुख्य और आरती के लिए), माचिस, कपूर, दक्षिणा- आचार्य के लिए। आचार्य को देने के लिए धोती/अंगोछा। क्षेत्रपाल के लिए – गुड / उड़द-लौंग । 16 मातृका,गणेशजी को नैवेद्य लगाने के लिए – मोदक, बताशे, इलायची-दाना ।

वेदी के लिए

साफ मिट्टी/बालू, सर्वतोभद्र व अष्टदल कमल बनाने के लिए अबीर आदि रंग या फिर रोली आटे-तिल-चावल-हल्दी से बनाए । दालों से भी सर्वतोभद्र बन सकता है- मलका-लाल, उड़द काला, मूंग-हरा, चावल-सफेद, पीली-दाल ।

24 नैवेद्य

1. मोदक, 2. गुड़, 3. चूर्ण- आटे या सूजी चीनी को घी में भून कर बना प्रसाद, 4. घृत-गुड़ मिले आटे की पूरी बनाए, 5. मण्डक = रोटी (चाहे तो घी दूध चीनी में आटा गूंथकर मीठी रोटियाँ बनाए), 6. सोहालिका / सोहालक खाँडयुक्त अशोकवर्तिका= फेनी बनाएं या दूध की सेवईं बना लें, 7 मक्खन 8. बेर या बेल फल या फिर सेब, 9. सत्तू- भुना वाला चना चीनी के साथ पीसकर रखें, 10. बड़े-भीगे हुए उड़द पीसकर हल्दी, धनिया, आजवायन, नमक डालकर तलकर गोल पकौड़े जैसे बना लें, 11. खीर, 12. दूध, 13. शालि (उबला चावल, बासमती हो तो उत्तम) 14. दही-चावल, 15.इंडरीक = इडली = सूजी, दही, चुटकी भर सोडा, एक चम्मच तेल और नमक डालकर घोल तैयार कर लें इस इडली घोल को 20 मिनट तक ढककर रख दें। इडली स्टैण्ड हो ठीक है वर्ना एक बडा बर्तन गैस पर रख लें, उसमें थोड़ा पानी लें उसमें दो कटोरी रखें, उसके उपर छोटी प्लेट रखें और उसके उपर छोटी कटोरियों में इडली का घोल भरकर रख दें। बर्तन को अच्छी से ढककर 8-10 मिनट भाप में पकने दें फिर ये इडलियाँ भगवान को भोग लगाए।

16. बिना घी की आटे की पूरियां तल लें 17. अपूप (पुए) = सूजी, आटे में चीनी, गुड़, घी, दही अच्छी से मिलाकर तलकर छोटी-छोटी गोल मीठी पकौड़ियां सी बना लें, 18. गुड़ के लड्डू, 19. शर्करा सहित तिलपिष्ट = साफ तिल चीनी के साथ पीसकर थोड़ा भूनकर कटोरी में रख दें,

20. कर्णवेष्ट = आटा चीनी दूध घी मिलाकर गूंथ लें इसकी लोई बनाकर रोटी की तरह बेल लें फिर चाकू से पतली सी पट्टियां काट लें, हर एक पट्टी को अंगुली की सहायता से कान के कुंडल जैसी गोल बना लें इन गोल आकृतियों को तलकर नैवेद्य के लिए रख लें,

21.शालिपिष्ट= चावल (बासमती हो तो उत्तम) के आटे को घी में भूनकर चीनी मिलाकर प्रसाद बना ले,

22. केला, 23. घृतयुक्त मुद्गपिष्ट : मिक्सी में मूँग दाल का आटा बना ले या फिर मूंग भिगोकर पीसकर, उसमें घी और चीनी डालकर पका ले, 24. गुड़ मिला उबला चावल(भात) द्वादशी के लिए हवन के लिए: घी (अधिक घी न हो तो घी के समाप्त होने के बाद तिल के तेल से भी हवन पूर्ण किया जा सकता है), खीर (आहुति में इसका प्रचुर मात्रा में प्रयोग होना है, आहुतियाँ गिनकर हिसाब से बना ले अन्यथा तिल-जौं आदि हवन सामग्री से ही हवन कर ले, लेकिन स्विष्टकृत हवन में खीर ही प्रयोग होगी), कुल कितनी आहुति देनी हैं हिसाब लगा ले, अगर घी/ खीर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है तो तिल (काले व सफेद) + जौं (तिल से कम मात्रा में) + चावल (जौं से कम) + “हवन सामग्री” का पैकेट।

गोबर व गोमूत्र, पानी, कपूर, रुई की बत्तियां, माचिस, फूल, कुश(या दूब), 4 पवित्र (2 कुश/दूर्वा को साथ बांधकर 1 पवित्र बनता है), समिधा के लिए छोटी सूखी पतली लकड़ियाँ(आम/पीपल आदि वृक्ष की लेकिन काँटेदार पेड़ की न हो), हवन कुंड (या ईंट लगाकर मिट्टी/रेत से वेदी बनाए) । प्रणीता पात्र और प्रापण पात्र ( न हों तो 2कटोरे ले) । स्रुक स्रुव ( न हों तो खीर होम करने के लिए चम्मच ले, घृत होम के लिए आम/पीपल की पत्ती लें)। तिलक के लिए रोली अक्षत। ब्रह्माजी के लिए दक्षिणा ।

आचार्य व ब्राह्मण को दान के लिए:

अन्न, वस्त्र (धोती, अंगोछा, टोपी का कपड़ा अंगूठी (छल्ले), जूते/चप्पल, दक्षिणा, आचार्य-पत्नी भी बुलाई हैं तो साड़ी-बिंदी आदि इच्छानुसार दें। आचार्य को या सबको फल, अन्न (साबुत दाल, चावल), मिठाई दे सकते हैं। पीतल/तांबे / मिट्टी से बने कलश व विष्णु मूर्ति के दान का भी महत्व है। इसके अलावा सबके लिए समय से भोजन तैयार करवा ले ।

भगवान ने कहा

“हे अर्जुन! अब उद्यापन की विधि को मैं कहता हूं। यदि सामर्थ्यवान मनुष्य श्रद्धा से हजार ‘स्वर्ण मुद्रा’ दान दे और असमर्थ व्यक्ति एक ‘कौड़ी’ भी यदि श्रद्धा से दान दे दे तो उन दोनों का फल एक समान ही है।” दान विधि में जितना बताया है यदि धनसम्पन्न व्यक्ति हो समर्थ हो तो दुगुना दान दे। लेकिन अशक्त मनुष्य यदि उससे आधा भी दान देता है तो वह दान का पूरा फल पाता है। स्वर्ण मुद्रा प्राचीन समय में प्रचलित थी इतना अधिक आज के समय में सम्भव नहीं। अब रुपया प्रचलन में है, अतः व्रती अपनी जैसी सामर्थ्य हो उस अनुसार रुपये का, उपयोगी वस्तुओं का दान करे। विधान के साथ हवन करने में असमर्थ हो तो उसके लिए भी अलग से पंडितजी को दक्षिणा दान दे देनी चाहिए।

एकादशी उद्यापन की शास्त्रोक्त विधि

दशमी तिथि को

दशमी तिथि के दिन एक समय भोजन करे। इस दिन मंदिर साफ करके पूजा की आवश्यक सामग्रियाँ खरीद लाए । आचार्य वरण के लिए दशमी तिथि की शाम को गुरु / पंडितजी के घर जाए निमंत्रण कह दे। रात्रि को दन्तधावन करके भगवान आगे नियम करे कि, (मैं एकादशी को निराहार रहकर द्वादशी को भोजन करूंगा। हे पुण्डरीकाक्ष भगवन्! मैं आपकी शरण में हूं) अब शयन करे।

कादशी तिथि को

हे पार्थ! एकादशी को प्रातःकाल सावधान मन से स्नान आदि करके पाखंडी और पतित नास्तिक लोगों से दूर रहे। संध्या करके नदी, तालाब आदि के शुद्ध जल में या घर पर ही शुद्ध जल में मन्त्र पूर्वक (भगवान का नाम स्मरण करते हुए) स्नान करके पितरों का तर्पण करे (पितरों के नाम से जलांजलि दे दे)| फिर पूजा की सारी सामग्री इकट्ठी कर ले, 24 नैवेद्य बना ले या बनवा ले।

अब गुरु/आचार्य/पंडित को बुलाए, सम्भव हो तो उनकी पत्नी सहित बुलाए । आचार्य शान्त, सर्वगुणसम्पन्न, सदाचारी, वेद-वेदांगों का जानने वाला हो। या फिर किसी पूजा पाठ के जानकार व्यक्ति या किसी योग्य धार्मिक व्यक्ति को पुरोहित आचार्य बनाकर पूजा स्थल पर बुला ले। आदरपूर्वक उन आचार्य का स्वागत करे पूजा स्थल पर सामने आसन देकर उन्हें बैठा दे एवं उनको प्रणाम करके नमस्कार करके प्रार्थना करे। व्रती आचार्य को तिलक करे, फूल चढ़ाए, उसे वस्त्र (धोती / अंगोछा) दान देकर कहे कि, (हे आचार्य, मेरा यह (हरिवासर से सम्बन्ध रखने वाला) व्रत जिस तरह संपूर्ण हो ऐसा उपाय कीजिये।)

सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करके संकल्प करे। हाथ में जल पुष्प तिल लेकर संस्कृत में नीचे लिखे अनुसार संकल्प पढ़ें, कोष्ठक में दिये विकल्प सम्वत्सर, माह, पक्ष आदि सावधानी से चुने। यदि 24 एकादशी व्रत कर लिये हों तो आचरितस्य बोले एकादशी व्रत रखना यदि अभी नहीं शुरु किया हो तो किये जाने वाले व्रत के लिए करिष्यमाणस्य बोले ।

संकल्प

ॐ गणपतिर्जयति || ॐ विष्णुर् – विष्णुर् विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलि-युगे कलि प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षे आर्य्यावर्तेक देशांतर्गत (* शहर का नाम *) स्थाने, (*संवत्सर का नाम *) नाम्नि संवत्सरे, (*उत्तरायण / दक्षिणायन *) अयने, (*ऋतु का नाम*) ऋतौ, महामांगल्यप्रद मासोत्तमे मासे ( हिन्दू मास का नाम *) मासे शुभ (*कृष्ण / शुक्ल*) पक्षे एकादश्यां तिथौ (*वार का नाम*) वासरे (*गोत्र का नाम *) गौत्रः (*व्रतीका नाम* शर्मा/ वर्मा/ गुप्तो दासो) अहं मया ( *व्रत रख दिए तो आचरितस्य बोले / व्रत उद्यापन के बाद रखने वाले हैं तो करिष्यमाणस्य *) (*शुक्ल / कृष्ण * ) एकादशी व्रतस्य साङ्गता-सिद्धयर्थम् तत्सम्पूर्ण फल-प्राप्तयर्थम् देश कलाद्यनुसारतो यथाज्ञानेन (शुक्ल-कृष्ण) एकादशी व्रतोद्यापन-महं करिष्ये तदङ्गत्वेन गणपतिपूजनं पुण्याहवाचनम् आचार्यंवरणंम् च करिष्ये ।

[एकादशी व्रतों की सिद्धि एवम् उसके संपूर्ण फल की प्राप्ति के लिए देश काल के अनुसार यथा ज्ञान एकादशी के व्रत उद्यापन को मैं आज करता हूं, व्रत का भंग न हो जाए इस कारण मैं गणपति पूजन, आचार्य वरण पूर्वक पुण्याहवाचन भी करूंगा या कराऊंगा” संकल्प के पीछे यह भाव छिपा है]

इसके बाद श्रीगणेश जी का पूजन करें

अपने सामने गणेश जी और दुर्गा जी की मूर्ति/चित्र रख दे जिसकी मूर्ति न हो तो मूर्ति की जगह कटोरे में सुपारी(पूगीफल) रखे, या स्वस्तिक बनाकर पूज सकते हैं। प्रतिष्ठित मूर्ति न हो तो प्रतिष्ठा के लिये हाथ में अक्षत पुष्प लेकर मन्त्र बोले –

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं

यज्ञं समिमं दधातु । विश्व देवास इह मादयंताम् ॐ प्रतिष्ठ ॥ गणपति देवस्य प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः चरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, श्री गणपति गौरीमावाहयामि, प्रतिष्ठापयामि पूजयामि नमः ।

हाथ में पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं दुर्गाजी का ध्यान करें गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ॥ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै प्रणताः स्मताम् ॥

श्रीगणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ध्यानार्थे पुष्पम् समर्पयामि । (श्रीगणेश व दुर्गा जी पर फूल चढ़ाकर नमस्कार करें)

गंध

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, गन्धम् समर्पयामि। (चन्दन का तिलक लगाएँ।)

अब हाथ में फूल लेकर बोले :

ॐ सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो विघ्न नाशो गणाधिपः ।। धूम्रकेतुः गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।। विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा संग्रामे संकटेश्चैव विघ्नस्तस्य न जायते ।। ॐ सर्वमंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।। ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे, निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् । ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन | ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः । (फूल चढ़ाएँ।)

धूप: धूप दिखाएँ

ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, धूपं आघ्रापयामि।

दीप:

एक दीपक जलाएँ व निम्न मंत्र से दीप दिखाएँ : ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दीपं दर्शयामि ।

नैवेद्य

बताशे फल आदि नैवेद्य अर्पित करें :

शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च। आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ॥ (नैवेद्य निवेदित करें।)

अब आचमनी से जल छोड़ते हुए बोलें

वेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।

तांबूल

इलायची, लौंग, सुपारी युक्त पान अर्पित करें ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मुखवासार्थम् एलालवंग ताम्बूलं समर्पयामि ॥

इसके पश्चात हाथ जोड़कर श्री गणेशाम्बिका की प्रार्थना करें

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय

जगद्धिताय । नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥

लम्बोदर नमस्तुभ्यं नमस्ते मोदकप्रिय । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।

सर्वेश्वरी सर्वमाता शर्वाणी हरवल्लभा सर्वज्ञा सिद्धिदा सिद्धा भव्या भाव्या भयापहा नमो नमस्ते ॥ ‘अनया पूजया श्रीगणेशाम्बिका प्रीयन्ताम्’ कहकर जल छोड़ दें।

षोडश मातृका पूजन

एक कटोरे पर रोली से 16 बिंदु दे दे। अब निम्न मन्त्र पढ़ते हुए उन बिंदुओं पर अक्षत, जौ, गेहूँ चढ़ाते जाए:

“गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया, देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातरः ॥ धृति पुष्टि-स्तथा तुष्टि रात्मनः कुलदेवता गणेशे नाधिका होता वृद्धौ पूज्याश्च षोडशः । ॐ गणेश गौरी सहित षोडश मातृकाभ्यो नमः ॥ श्रीगणेश गौरी सहित षोडशमातृकाम् आवाहयामि, स्थापयामि।”

अब अक्षत लेकर बोले : ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य

बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंताम् ॐ प्रतिष्ठ ॥ अब अक्षत “षोडश

मातृका” पर छोड़ दे।

अब “ॐ गणेश गौरी सहित षोडश मातृकाभ्यो नमः

गंधम् समर्पयामि।” से षोडश मातृका पर आचमनी द्वारा चन्दन मिश्रित जल छिड़क दे

“ॐ गणेश गौरी सहित षोडश मातृकाभ्यो नमः धूपम् आघ्रापयामि ” बोलकर धूप जला दे “

ॐ गणेश गौरी सहित षोडश मातृकाभ्यो नमः दीपम् 11 दर्शयामि ” दीप दिखा दे

“ॐ आयुरारोग्यमैश्वर्यं ददध्वं मातरो मम । निर्विघ्नं सर्वकार्येषु कुरुष्वं सगणाधिपाः ॥ ॐ गणेश गौरी सहित षोडश मातृकाभ्यो नमः नैवेद्यम्-ऋतु फलं च निवेदयामि |” बताशे और फल का नैवेद्य रख दे

आचमन के लिए षोडश मातृका पर जल छिड़के “ॐ गणेश गौरी सहित षोडश मातृकाभ्यो नमः दक्षिणा समर्पयामि।” दक्षिणा चढ़ा दे फूल और अक्षत लेकर बोले “अनया पूजया श्री षोडश मातृका प्रीयताम् नमः” अक्षत उन 16 माताओं पर चढ़ा दे

क्षेत्रपाल पूजन

एक कटोरे पर चंदन से त्रिशूल की आकृति बनाकर “ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः, क्षेत्रपाल भैरवम् आवाहयामि पूजयामि नमः शुभम् कुरू” बोलकर अक्षत-पुष्प चढ़ा दें।

ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः, नैवेद्यम् निवेदयामि बोलकर गुड/उड़द-लौंग चढ़ा दे(पूजा के बाद इसे किसी पेड़ की जड़ में डाले) ।

अब हाथ जोड़कर पूजा की आज्ञा माँगते हुए बोलें

“तीक्ष्ण दंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहनोपम। भैरवाय नमस्तुभ्यम् अनुज्ञां दातु मर्हसि ॥” अब ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः बोलकर फूल चढ़ा दें।

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