पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी महाराज कलयुग के दानवीर कर्ण
सनातन धर्म ही सर्वोपरि :श्री रामचंद्र डोंगरेजी महाराज संपूर्ण भारत वर्ष में एक हिंदू संत, धार्मिक वक्ता, उपदेशक दार्शनिकऔर एक ऐसे भागवताचार्य के रूप में विख्यात थे जो कथा के लिए एक रुपया भी नहीं लेते थे। मात्र तुलसी पत्र लेते थे।जहाँ भी वे भागवत कथा कहते थे, उसमें जो भी दान दक्षिणा चढ़ावा आता था, उसे उसी शहर या गाँव में गरीबों के कल्याणार्थ दान कर देते थे।
इन्दोर मध्य प्रदेश में इनका जन्म हुआ तथा वडोदरा गुजरात में बडे हुए।डोंगरेजी महाराज एक प्रखर वक्ता और भागवत कथाकार थे।उनकी माता का नाम कमला ताई और पिता का नाम केशवभाई डोंगरे था।डोंगरेजी महाराज ने अहमदाबाद में सन्यास आश्रम और काशी में अभ्यास कर के थोडे समय में कर्मकाण्ड का व्यवसाय किया। उसके बाद सर्व प्रथम सरयू मंदिर अहमदाबाद में भागवत कथा का वाचन किया।उनकी वाणी से श्रोता भाव विभोर हो जाते है।डोंगरेजी महाराज को शुकदेव तुल्य कहा जाता है, क्योंकि उनका जीवन शुकदेवजी जैसा निस्वार्थपूर्ण था।उनका प्रण था कि कभी कथा कि दक्षिणा नहीं लेनी।
जिस जगह कथा होती थी लाखों रुपये उसी नगर के किसी सामाजिक कार्य,धर्म व्यवस्था, जनसेवा के लिए दान कर दिया करते थे। उनके अन्तिम प्रवचन में गोरखपुर में कैंसर अस्पताल के लिये एक करोड़ रुपये उनके चौपाटी पर जमा हुए थे।स्वंय कुछ नहीं लिया|
डोंगरे जी महाराज की शादी :
एक ऐसे कथावाचक जिनके पास पत्नी के अस्थि विसर्जन तक के लिए पैसे नहीं थे …तब मंगलसूत्र बेचने की बात की थी।
डोंगरे जी महाराज की शादी हुई थी। प्रथम-रात के समय उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कहा था-‘देवी मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ 108 भागवत कथा का पारायण करें, उसके बाद यदि आपकी इच्छा होगी तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश करेंगे’।
इसके बाद जहाँ -जहाँ डोंगरे जी महाराज भागवत कथा करने जाते, उनकी पत्नी भी साथ जाती।108 भागवत पूर्ण होने में करीब सात वर्ष बीत गए।तब डोंगरे जी महाराज पत्नी से बोले-‘ अब अगर आपकी आज्ञा हो तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश कर संतान उत्पन्न करें’।
इस पर उनकी पत्नी ने कहा,’आपके श्रीमुख से 108 भागवत श्रवण करने के बाद मैंने गोपाल को ही अपना पुत्र मान लिया है,इसलिए अब हमें संतान उत्पन्न करने की कोई आवश्यकता नहीं है’।धन्य हैं ऐसे पति-पत्नी, धन्य है उनकी भक्ति और उनका कृष्ण प्रेम।
डोंगरे जी महाराज की पत्नी आबू में रहती थीं और डोंगरे जी महाराज देश दुनिया में भागवत रस बरसाते थे।
पत्नी की मृत्यु के पांच दिन पश्चात उन्हें इसका पता चला।वे अस्थि विसर्जन करने गए, उनके साथ मुंबई के बहुत बड़े सेठ थे- रतिभाई पटेल जी |
उन्होंने बाद में बताया कि डोंगरे जी महाराज ने उनसे कहा था ‘कि रति भाई मेरे पास तो कुछ है नहीं और अस्थि विसर्जन में कुछ तो लगेगा। क्या करें’ ?फिर महाराज आगे बोले थे, ‘ऐसा करो, पत्नी का मंगलसूत्र और कर्णफूल- पड़ा होगा उसे बेचकर जो मिलेगा उसे अस्थि विसर्जन क्रिया में लगा देते हैं’।
सेठ रतिभाईपटेल ने रोते हुए बताया था….
जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते थे, वह महापुरुष कह रहा था किपत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे नहीं हैं।
हम उसी समय मर क्यों न गए l
फूट फूट कर रोने के अलावा मेरे मुँह से एक शब्द नहीं निकल रहा था।
ब्रम्हलीन प.पु.रामचंद्र डोंगरेजी महाराज : दिनांक 9.11.1991 के दिन गुरुवार समय 9.37 पर अंतिम सांस लेकर ब्रम्हलीन हुए।उनकी इच्छानुसार उनके नश्वर शरीर को वडोदरा के पास मालसर में नर्बदामैया के प्रवाह में जल समाधि देकर प्रवाहित किया।
सनातन धर्म ही सर्वोपरि है ऐसे संत और महात्मा आप को केवल सनातन संस्कृति में मिलते हमारे देश में बहुत सी बातें हैं जो हम सभी तक पहुंच नहीं पाई मैं कोशिश करता रहता हूं कि हमारे देश की संस्कृति को हम सभी जाने।
जय श्री राधे कृष्णा ऐसे महान विरक्त महात्मा संत के चरणों में कोटि-कोटि नमन भी कम है ।।
1 comment
अशोक कुमार शरमा January 12, 2024
अद्भुत