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Friday, September 20, 2024
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तीर्थ / May 27, 2023

जीण माता की अमर कथा

जीणमाता मंदिर जयपुर SANATANYATRA:कलयुग में शक्ति का अवतार माता दुर्गा को समर्पित प्राचीन जीणमाता मंदिर जयपुर से लगभग 115 किलोमीटर दूर सीकर ज़िले (Sikar District) के सुरम्य अरावली पहाड़ियों (रेवासा पहाडियों) में स्थित है।ये पवित्र धाम चारों तरफ़ से ऊँची ऊँची पहाडियों से घिरा हुआ है। बरसात या सावन के महीने में इन पहाडियों का अनुपम सौंदर्य अलग ही छटा बिखेरता है।

जीण माता शेखावटी के यादव, राजपूत, पंडित, जांगिड, अग्रवाल, मीणा, चौहानों की कुल देवी हैं। जीणमाता को माँ जगदम्बा तथा माँ जयंती के नाम से भी जाना जाता हैं।यह शक्ति पीठ अत्यंत ही प्राचीन हैं। जिसका निर्माणकार्य बड़ा सुंदर और सुद्रढ़ है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिको व वाममार्गियों की मूर्तियाँ लगी है जिससे यह प्रतीत होता हैं कि उनकी यह साधना स्थली रही है।
मंदिर के देवायतन का द्वार सभा मंडप में पश्चिम की और है और यहाँ जीण माँ भगवती की अष्टभुजी आदमकद मूर्ति प्रतिष्ठापित है। सभा मंडप पहाड़ के नीचे मंदिर में ही एक और मंदिर है जिसे गुफा कहा जाता है जहाँ जगदेव पंवार का पीतल का सिर और कंकाली माता की मूर्ति है। मंदिर के पश्चिम में महात्मा का तप स्थान है जो धुणा के नाम से प्रसिद्ध है। जीण माता मंदिर के पहाड़ की श्रंखला में ही रेवासा व प्रसिद्ध हर्षनाथ पर्वत है।

जीण माता की अमर कथा

प्राचीन काल में राजस्थान में घांघू नाम की विरासत को राजा घांघू सिंह ने वि० सं० 150 के लगभग बसाया था। जो अब चूरू ज़िले के पास है। घांघू सिंह प्रजापालक व दयालु थे। परन्तु वे निःसन्तान के कारण उदास रहते थे। एक दिन राजा शिकार के लिए घूमते हुए अरावली पर्वतमाला के घने जंगलों के मध्य पहुंच गए। वहां पर राजा को कुछ दूरी पर एक मन्दिर दिखाई पड़ा। वो स्थान जयन्ती महाभागा सिद्ध पीठ था।राजा ने वहाँ पर एक पवित्र जल के कुण्ड के पास एक साधू को तपस्या करते हुए देखा। वहाँ पर कई प्रकार के झाड झंझाड उगे हुए थे। राजा ने उस जगह को अच्छी तरह साफ़ किया और तपस्या में लीन महात्मा जी की सेवा करने लगे।

एक दिन महात्मा जी तपस्या से ध्यान मुक्त हुए। उन्होंने देखा की वहाँ अच्छी सफाई की हुई है और एक व्यक्ति शिवलिंग धोने में व्यस्त है। राजा भी उठकर आए और साधू के चरणों में प्रणाम कर अपना परिचय दिया। महात्मा ने राजा की सेवा से खुश होकर उन्हें एक पुत्र और पुत्री प्राप्ति का वरदान दिया।जीण माता का अवतार राजस्थान के चुरू ज़िले के घांघू गांव के अधिपति एक चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था।

जीण माँ जगदम्बा की बहुत बड़ी भक्त थी। वह माँ जगदम्बा की सच्चे ह्रदय से भक्ति करती थी। जीण के भाई हर्ष का सुंदर स्त्री आभलदे के साथ विवाह हुआ।लेकिन दुर्भाग्यवश हर्ष के पिता उसी समय बीमार हुए। और मरते समय उन्होंने हर्ष से कहा की “तुम्हारी बहन जीण तुम्हारी जिम्मेदारी है”.
घांघूराव के मरने के बाद उनकी पत्नी क्षय रोग से पीड़ित हो गई। माता-पिता की मृत्यु के बाद हर्ष की पत्नी ने जीण को परेशान करना शुरू कर दिया। लेकिन जीण ने कभी भी यह बात अपने भाई हर्ष को नहीं बताई। एक दिन जीण घर छोड़कर चली गई। यह बात सुनकर हर्ष उसे ढूंढने के लिए निकल पड़ा।

हर्ष को जीण रास्ते में मिल गई। और घर छोड़ने का कारण पूछा तब जीण ने भाभी द्वारा दी जा रही पीड़ा के बारे में बताया। उसने भाई से कहा मैं भगवान सूर्य नारायण की प्रतिज्ञा लेकर घर से निकली हूँ और घर वापिस नहीं लौट सकती हूँ।
उसने भाई हर्ष से कहा की वह अब माँ जगदम्बा की शरण में जाएगी। यह सुनकर हर्ष को अपना वचन याद आया। जो उसने अपने माता-पिता को दिया था,कि वह जीण का ख्याल रखेगा।

देवताओं ने जीण को उसी स्थान पर जाने के लिए बाध्य कर दिया जिस स्थान पर राजा को संतान प्राप्ति का वरदान मिला था क्योंकि जयन्ती शक्ति पीठ ही जीण की कुल देवी थी। जीण ने घर से निकलने के बाद पीछे मुड़कर ही नहीं देखा और अरावली पर्वतमाला के इस पहाड़ के एक शिखर जिसे “काजल शिखर” के नाम से जाना जाता है पहुँच कर तपस्या करने लगी।

जीण के दृढ निश्चय से प्रेरित हो हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और घर नहीं लौटा और उन्हें ज्ञान हुआ कि इस धरती पर अवतार लेने का उद्देश्य अब पूरा करना है। अन्त में दृढ़ संकल्प के साथ जीण ने जयन्ती माता के मन्दिर में पहुँचकर काजल शिखर पर बैठकर भगवती आदि शक्ति की आराधना की। हर्ष भी वहां से कुछ दूर जाकर दूसरे पहाड़ की चोटी पर भैरव की साधना में तल्लीन हो गया। दोनों भाई बहन नि :स्वार्थ भक्ति करने लगे। जीण माता के ओरण में तप करती और हर्ष भैरव मंदिर में तप करता था। काफी वर्षो हो जाने के बाद एक दिन माता जयंती भाई बहन के तप को देखकर प्रकट हुई।तब माता ने भाई बहन को वरदान मांग ने को कहा तब जीण ने कहा की “मैं आपके स्वरूप में विलीन होना चाहती हूँ”

तब से जीण जयंतीमाता के स्वरूप में विलीन हो गई और भाई हर्ष भैरव के स्वरूप में समाकर विलीन हो गया।तब से आज दिन तक माँ जगदम्बा को जीण माता से जाना जाता हैं। तब से आज तक वहा काफी चमत्कार हुए हैं। लोगो के रोग और दुख दूर हुए हैं।

॥ आदि शक्ति श्री जीण भवानी की जय॥

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