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Friday, September 20, 2024
#Stanumalayan Temple, #Suchindram Sri Stanumalayan Swamy Temple

#Suchindram_Temple: जहाँ सती अनुसूया ने त्रिदेव को बनाया नवज़ात शिशु

 @SANATANYATRAनेटवर्क:सुचिन्द्रम शहर का स्तानुमलायन मन्दिर न केवल वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है बल्कि यह ताजमहल से भी ज्यादा सुन्दर संरचना है। कस्बानुमा बस्ती से काफी पहले भव्य मन्दिर की विराटता और शिल्प-सौन्दर्य मुग्ध करने वाली हैं। स्तानुमलायन मन्दिर #Stanumalayan_Temple जिसे दुनिया सुचिन्द्रम श्री स्तानुमलायन स्वामी मन्दिर #Suchindram_Sri_Stanumalayan_Swamy_Temple के नाम से जानती है।

तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में स्थित सुचिन्द्रम मन्दिर (Suchindram Temple) त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) को समर्पित हैं। इसमें “स्तानु” भगवान शिव को, “मल” भगवान विष्णु को और “आयन” भगवान ब्रह्मा को रेखांकित करता है। इस सात मंजिला मन्दिरकी दीवारों पर की गयी महीन नक्काशी और उसकी कलात्मकता चमत्कृत कर देती है। प्रत्येक नक्काशी दुनिया के सभी अजूबों को हराने के लिए पर्याप्त है। इस विशाल मन्दिर में अनुमानतः एक लाख नक्काशियां हैं और प्रत्येक अपने आप में अद्वितीय है।

सुचिन्द्रम मन्दिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं (Mythological stories related to Suchindram Temple)

इस धर्मस्थल से तीन पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं और इन सभी के प्रति हिन्दुओं में अगाध आस्था है।

सती अनुसूया ने त्रिदेव को बनाया नवज़ात शिशु : इस स्थल को लेकर पहली व सबसे महत्वपूर्ण कथा माता अनुसूया से जुड़ी है। पौराणिक काल में इस स्थान पर ज्ञान अरण्य नामक सघन वन था। इसी अरण्य में महर्षि अत्री अपनी पत्नी अनुसूया के साथ रहते थे। अनुसूया महान पतिव्रता थीं। उन्हें एक ऐसी शक्ति प्राप्त थी जिससे वह किसी भी व्यक्ति का रूप परिवर्तित कर सकती थीं।त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेशकी पत्नियों को जब उनकी इस शक्ति के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने उनसे देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने को कहा। उस समय अत्री ऋषिहिमालय पर तप करने गये हुए थे। ब्रह्मा, विष्णु और महेश जब साधुवेश में उनके आश्रम पहुंचे तो अनुसूया स्नान कर रही थीं। तीनों ने उनसे उसी रूप में आकर भिक्षा देने को कहा। जहां साधुओं को भिक्षा दिए बिना लौटाना अधर्म था, वहीं ऐसी अवस्था में परपुरुषों के सामने आने पर पतिव्रत धर्म भंग होता। देवी अनुसूया को तो दोनों धर्मों का निर्वाह करना था। तब उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर तीनों साधुओं को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और उसी अवस्था में आकर भिक्षा प्रदान की।जब त्रिमूर्ति के शिशु रूप में परिवर्तित होने की जानकारी उनकी पत्नियों को हुई तो वे व्याकुल हो गयीं। उन्होंने आश्रम में आकर देवी अनुसूया से क्षमा मांगी। इस पर उन्होंने त्रिदेव को अपने प्रभाव से मुक्त कर दिया लेकिन प्रतीक रूप में अपने आश्रम में रहने को कहा। त्रिदेव ने उसी समय यहां अपने प्रतीक की स्थापना कीजिसके आधार पर ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर शिव हैं। त्रिदेव के आशीर्वाद से देवी अनुसूया को तीन मुख वाले पुत्र की प्राप्ति हुई जिन्हेंदत्तात्रेयभगवान कहा जाता है।

देवराज इन्द्र का गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त होना : देवराज इन्द्र ने गौतम ऋषि की धर्मपत्नी अहिल्या के साथ छल से दुराचार किया। इसकी जानकारी होने पर ऋषि ने इन्द्र कोनपुंसक हो जाने का श्राप दे दिया। इस शाप से मुक्ति पाने के लिए देवराज इन्द्र ने यहीं पर घोर तपस्या और उष्ण घृत से स्नान कर स्वयं को पापमुक्त किया। इसके पश्चात अ‌र्धरात्रि को पूजा आरम्भ की और पूजा के सम्पन्न होने पर पवित्र होकर देवलोक को प्रस्थान किया। तब से इस स्थान का नाम सुचिन्द्रम पड़ गया।

माता सती का अंग गिरने पर शक्तिपीठ बनना  : अपने पति भगवान शिव के अपमान से कुपित होकर देवी सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा कराये जा रहे यज्ञ के कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे दुखी होकर भगवान शिव उनके मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर दसों दिशाओं में घूमने लगे। यह देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए जो पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे। इसी दौरान माता के दांत सुचिन्द्रम मन्दिर के पास गिरे थे। तब से यह 51 शक्तिपीठों में भी सम्मिलित हो गया।

सुचिन्द्रम मन्दिर का इतिहास और संरचना (History and structure of Suchindram Temple)

इस क्षेत्र में पांड्य और चेरा शासकों के साथ-साथ प्रारम्भिक और मध्यकालीन चोलों की अवधि के कई शिलालेख मिले हैं। इस मन्दिर की मुख्य संरचना 9वीं शताब्दी में चोल राजवंश के दौरान बनाई गयी थीजबकि बाद के विस्तारों का श्रेय थिरुमलाई नायक और त्रावणकोर के महाराजाओं को दिया जाता है। मन्दिर का रखरखाव और प्रशासन धर्मपुरम अधनम द्वारा किया जाता है।17वीं शताब्दी मेंपुनर्निर्माण कर इसे पहले से अधिक विशाल रूप देने के साथ ही सुसज्जित किया गया। इसका 134 फीट ऊंचा सप्तसोपान गोपुरम अद्भुत है जिस पर आकर्षक मूर्तियां उकेरी गयी हैं। परिसर में करीब तीस पूजा स्थल है। इनमें से एक स्थान पर भगवान विष्णु की अष्टधातु की प्रतिमा विराजमान है। प्रवेश द्वार के दायीं ओर सीता-राम की प्रतिमा है जिसके पास ही बजरंगबली हनुमान की एक विशाल प्रतिमा है। 6.7 मीटर ऊंची इस प्रतिमा को ग्रेनाइट के एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया है। मान्यता है कि हनुमान जी ने माता सीता को अशोक वाटिका में इसी रूप में दर्शन दिए थे और उन्हेंभगवान राम की मुद्रिका दिखाई। इसके पास ही गणेश मन्दिर है जिसके सामने नवग्रह मण्डप है। इस मण्डप में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं।

अलंगर मण्डप में चार संगीतमय स्तम्भ हैं जो एक ही चट्टान से बने हैं लेकिन इनसे मृदंग, सितार, जलतरंग और तम्बूरे की अलग-अलग ध्वनि गुंजित होती है। पहले पूजा-अर्चना के समय इन्हीं स्तम्भों से संगीत उत्पन्न किया जाता था। इन चार मुख्य स्तम्भों के अलावा यहां1,035 ऐसे स्तम्भ हैं जिनसे विभिन्न प्रकार की ध्वनियां निकलती हैं। इस कक्ष को नृत्य मण्डप या नृत्य कक्ष के नाम से जाना जाता है।नटराज मण्डप भी दर्शनीय है। यहां भगवान शिव के वाहन नन्दी की एक विशाल मूर्ति है जिसकी ऊंचाई 13 फीट और लम्बाई 21 फीट है। यह भारत में मौजूद नन्दी की विशालतल प्रतिमाओं में से एक है। मन्दिरके निकट ही एक सरोवर है जिसके मध्य में एक छोटा-सा मण्डप है।

त्रिलिंगम : यहां का लिंगम न केवल महादेव शिव बल्कि भगवान विष्णु और ब्रह्मा को भी समर्पित है, इसीलिए इसे त्रिलिंगम कहा जाता है। त्रिदेव को समर्पित यह प्रतिमा इस मन्दिर की मुख्य मूर्ति है। इसे त्रिमूर्ति भी कहा जाता है।

कोनायाडी वृक्ष : यह करीब दो हजार वर्ष पुराना एक विशाल वृक्ष है जिसका तना अन्दर से खोखला है। इसे स्थानीय भाषा (तमिल) में कोनायाडी वृक्ष कहा जाता है। चमकदार पत्तियों वाले इस वृक्ष के खोखले भाग में ही त्रिमूर्ति स्थापित है।

शिवमहासदाशिवम :

यहां भगवान शिव की एक अति-प्राचीन मूर्ति है जिसके 25 मुख, 75 आंखेंऔर50  भुजाएं हैं। भगवान शिव के इस रूप को महासदाशिवम नाम दिया गया है। यह मूर्ति शिल्पकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

सुचिन्द्रम मन्दिर में दर्शन का समय (Suchindram Temple Darshan Timings)

मन्दिर में छह दैनिक अनुष्ठान होते हैं। यह सुबह 04:30 बजे खुल जाता है और भक्तगण11:30 बजे तक दर्शन-पूजन कर सकते हैं। इसके पश्चात यह सायंकाल 05:00 बजे से रात्रि08:30 तक खुला रहता है।

सुचिन्द्रम मन्दिर में मन्दिर में क्या पहनें (What to wear in the temple at Suchindram Temple)

मन्दिर में प्रवेश करने के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों का भारतीय परिधान में होना अनिवार्य हैं। यदि आप विदेशी या छोटे कपड़े पहनकर मन्दिर में जाना चाहते हैं तो अनुमति नहीं मिलेगी। मन्दिर के अन्दर किसी भी प्रकार का बैग या अन्य कोई सामान ले जाने की भी अनुमति नहीं हैं। यह सब सामान आपको बाहर जमा करवाना होगा।

मुख्य आयोजन

यहां सनातन धर्म से सम्बन्धित लगभग सभी त्यौहार मनाये जाते हैं। शिवरात्रिऔर नवरात्र पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। हालांकि दो प्रमुख त्यौहार इस मन्दिर का प्रमुख आकर्षण हैं-सुचन्द्रम मर्गली और दस दिवसीय रथयात्रा उत्सव (कार महोत्सव)। तप्पम के नाम से जाना जाने वाला एक और त्यौहार हर साल अप्रैल और मई के बीच मनाया जाता है।

सुचिन्द्रम मन्दिर के आस-पास के अन्य तीर्थनगर

कोइल (तीन किलोमीटर)

तिरुबट्टार (आदिकेशव) मन्दिर

नियाटेकरा का श्रीकृष्ण मन्दिर

कुमार कोइल का कुमार कार्तिक मन्दिर

कन्याकुमारी

ऐसे पहुंचें सुचिन्द्रम मन्दिर (How to reach Suchindram Temple)

वायु मार्ग :निकटतम हवाईअड्डा तिरुवनन्तपुरम इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 79 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग :निकटतम रेल हेड दक्षिण रेलवे के तिरुवनन्तपुरम-कन्याकुमारी खण्ड पर स्थित नागरकोइल स्टेशन यहां से करीब चार किलोमीटर पड़ता है। कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन यहां से लगभग 13 किमी है।

सड़क मार्ग :सुचिन्द्रम मन्दिर कन्याकुमारी से लगभग 11 किलोमीटर और नागरकोइल शहर से करीबसातकिमी दूर है। थिरुनेलवेली, कन्याकुमारी और तिरुवनन्तपुरम से यहां के लिए बस, टैक्सी और कैब मिलती हैं।

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