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Friday, September 20, 2024
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यहाँ के राजा हैं प्रभु श्री राम

बुन्देलखण्ड की धरती पर सुरम्य प्रकृति की गोद में बसे ओरछा की मनोहारी छवि देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है। इसकी स्थापना राजा रुद्र प्रताप सिंह द्वारा अपने राज्य की राजधानी के रूप में सन् 1501 के बाद किसी समय करायी गयी थी। स्थापत्य कला एवं शिल्प की दृष्टि से ओरछा को बुन्देलखण्ड का सबसे कला सम्पन्न धार्मिक स्थल माना गया है। यहां के मन्दिर हिन्दू स्थापत्य कला की श्रेष्ठतम् कृतियां हैं। हर साल देश-विदेश से लाखों की संख्या में यहां आने वाले पर्यटक इस धार्मिक स्थली की छवि को अपनी आंखों में बसा कर ले जाते हैं, जो उनके मन-मस्तिष्क पर हमेशा अपना प्रभाव बनाए रखती है ।

ओरछा की पावन एवं महिमामयी भूमि पर आकर प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य का अवलोकन कर जो शीतलता एवं शान्ति पर्यटकों को मिलती है, वह बिजली से जगमगाती वातानुकूलित अट्टालिकाओं में नहीं मिल सकती। ओरछा के आकर्षक सघन वनों के मध्य बुन्देलखण्ड की गंगा कहलाने वाली बेतवा (वेत्रवती) नदी का शांत प्रवाह असीम शान्ति प्रदान करता है। बेतवा में जिस जगह जामनी एवं घरारी नदियां आकर मिलती हैं, वहां प्रयाग के त्रिवेणी संगम-सा दृश्य बन जाता है। यहीं से बेतवा विशाल रूप धारण कर लेती है ।

विशेष अवसरों पर विशाल मेलों का आयोजन

यहां पर प्रतिवर्ष रामनवमी, सावन तीज एवं मकर संक्रान्ति पर लगने वाले विशाल मेलों में धर्मप्राण जनसमूह उमड़ पड़ता है। प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल दो से आषाढ़ शुक्ल चार तक भव्य रथयात्रा निकाली जाती है जिसमें हजारों श्राद्धालु एवं पर्यटक भाग लेते हैं। विशाल सिंहासन पर भगवान श्रीराम की मनोहारी झांकी देखते ही बनती है।

ऐतिहासिक स्थलों की है अद्भुत गरिमा

ओरछा की ऐतिहासिक और धार्मिक महिमामण्डित भूमि अपनी छाती में कितने रहस्य छिपाये हुए है, कोई नहीं कह सकता। यहां के मन्दिरों की अनूठी आभा है। ऐतिहासिक स्थलों की अद्भुत गरिमा है। गहन वनों से आच्छादित यह क्षेत्र तपस्वियों एवं साधुओं की साधना स्थली रहा है। यहां के रणबांकुरे बुन्देला राजाओं की वीरगाथा यहां के प्राचीन महल मूक भाषा में आज भी सुनाते प्रतीत होते हैं।

मन्दिरों की है अनूठी आभा

ओरछा में कई प्राचीन मन्दिर है जो तत्कालीन स्थापत्य कला एवं नैपुण्य के प्रतीक हैं। ओरछा के राम राजा मन्दिर का निर्माण महाराजा भारती चन्द्र ने करवाया था। वस्तुतः यह पूर्व में एक महल था किन्तु आज इसमें भगवान श्री राम राजा विराजमान हैं। प्राचीन भारत की आकर्षक वास्तुकला को समेटे हुए यह मन्दिर अपनी अलग महिमामय एवं धार्मिक कहानी सुनाता प्रतीत होता है। धर्मभीरुओं के हृदय में इस मन्दिर के प्रति असीम श्रद्धा है और वे राम राजा के चरणों में नतमस्तक होकर अपने जीवन को सार्थक मानते हैं ।  

रामभक्त थीं महारानी गणेश कुंवरि 

राम राजा मन्दिर के प्रति धर्मप्राण जनता के इतने अधिक श्रद्धाभाव के पार्श्व में एक बड़ी रोचक जनश्रुति है। ओरछा नरेश मधुकर शाह भगवान कृष्ण के उपासक थे जबकि उनकी महारानी गणेश कुंवरि रामभक्त थीं। एक बार दोनों में धार्मिक विवाद छिड़ गया। अन्त में यह निर्णय हुआ कि जो भी अपने इष्ट देव को संसार के समक्ष साक्षात रूप में प्रकट कर देगा, वही अपनी उपासना में विजयी समझा जायेगा। इसके बाद मधुकर शाह भगवान कृष्ण की पावन भूमि वृन्दावन को प्रस्थान कर गए जबकि महारानी गणेश कुंवरि भगवान राम की उपासना कर उन्हें अपने साथ लाने के उद्देश्य से अवधपुरी चलीं गयीं। महारानी को काशी विश्वनाथ का वरदान प्राप्त था। अतः उनकी विजय हुई। एक माह की कठिन तपस्या के उपरान्त भगवान राम ने उन्हें साक्षात दर्शन दिये। रानी गणेश कुंवरि भगवान राम का प्रतिमायुक्त स्वर्णजड़ित सिंहासन लेकर साधुओं के समूह सहित पैदल ही ओरछा के लिए चल पड़ीं। इधर मधुकर शाह को श्री राम राजा ने स्वप्न दिया कि “मैं ओरछा आ रहा हूं, अतः मेरे लिए मन्दिर का निर्माण कराया जाये।“ इस पर मधुकर शाह ने चतुर्भुज मन्दिर का निर्माण शुरू करा दिया।

अभी चतुर्भुज मन्दिर का निर्माण कार्य चल ही रहा था कि महारानी गणेश कुंवरिओरछा पहुंच गयीं और उन्होंने भगवान कृष्ण को महल में ही आसीन करा दिया। हर्षातिरेक में उन्हें भगवान की कही यह बात विस्मृत हो गयी कि जिस भवन में एक बार बैठ जाऊंगा वहां से हटूंगा नहीं। मन्दिर के निर्माण के बाद लाख प्रयत्न करने पर भी भगवान राम राजा को उस महल से हटाया नहीं जा सका। कालान्तर में वह महल राम राजा मन्दिर के नाम से विख्यात हो गया। तदुपरान्त नवनिर्मित मन्दिर में भगवान चतुर्भुज की मूर्ति आसीन करायी गयी।

आज भी राम राजा मन्दिर को देखने पर सहज आभास हो जाता है कि यह मन्दिर न होकर कोई महल रहा होगा। ओरछा में राम भगवान नहीं बल्कि राज्य के राजा के रूप में पूजे जाते हैं और आज भी उन्हीं का शासन चलता है। राम राजा मन्दिर दुनिया के एकमात्र मन्दिर है जहां पुलिस आज भी सुबह और शाम सलामी देती है।

वास्तुकला का अद्भुत नमूना है चतुर्भुज मन्दिर

चतुर्भुज मन्दिर का निर्माण ओरछा नरेश मधुकर शाह ने 1503 ईस्वी में कराया था। इसको बनाने के लिए भूरे पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है और चूना आदि का प्रयोग बहुत कम हुआ है। यह मन्दिर तत्कालीन हिन्दू स्थापत्य कला एवं उन दिनों के निर्माताओं की अद्भुत प्रतिभा एवं अभिरुचि का प्रमाण है। मन्दिर के मुख्य द्वार पर पहुंचने के लिए पत्थर की अनगिनत सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मन्दिर के प्रांगण में गणपति, हनुमान, माता जगदम्बा आदि देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। अन्तर्भाग में दीवारों पर फूलदार नक्काशी एवं चित्रकारी है। सन् 1606 में महाराज अमरेश पन्ना ने इस मन्दिर पर सवा मन का स्वर्णपत्र युक्त कलश चढ़वाया था जो सन् 1970 में चोरी हो गया। काफी प्रयास के बावजूद आज तक इस कलश का कोई सुराग नहीं लग सका है। इस मन्दिर की वास्तुकला एवं शिल्प को देखकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

पेंटिंग के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है लक्ष्मी मन्दि

ओरछा में स्थित लक्ष्मी मंदिर का निर्माण 1618 ईस्वी में महाराज वीर सिंह ने कराया था। शिल्पियों की कलात्मक समग्रता को मुखरित करता हुआ यह मन्दिर भारत के उन गिने-चुने मन्दिरों में है जिन पर पुरातत्व विभाग को अत्यंत गर्व रहा है। यह मन्दिर अपनी भव्य स्थापत्य कला एवं लावण्यमय दीवारों पर उत्कीर्ण कला का तो अद्भुत प्रतीक है ही, अपनी पेंटिंग के लिए भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मन्दिर की अंदरूनी दीवारों पर रामलीला और कृष्णलीला की विभिन्न घटनाएं चित्रित हैं।

ओरछा के उल्लेखनीय दर्शनीय स्थल

इन मन्दिरों के अतिरिक्त भी ओरछा में कई उल्लेखनीय दर्शनीय स्थल हैं। जैसे जहांगीर महल, राजमहल, शीशमहल, दरबारी नृत्यांगना प्रवीनराय का भव्य भवन, सुन्दर भवन, आनन्द मण्डल, मालाबाग, फूलबाग, महर्षि तुंग का आश्रम, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लोकनायक जयप्रकाश नारायण की भस्म-अस्थियों का विसर्जन स्थल, कंचना घाट, सावन-भादो (वायु यंत्र) आदि।

कहां ठहरें

ओरछा में यात्रियों के ठहरने के लिए उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वार संचालित होटल, निजी होटल तथा कई लॉज एवं धर्मशालाएं हैं।

ऐसे पहुंचें ओर ओरछा

उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर झांसी के करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित ओरछा के लिए प्रचुर संख्या में टैक्सियां एवं बसें उपलब्ध रहती हैं। रेल से सफर करने वाले यात्रियों के लिए झांसी-मानिकपुर ब्रांच लाइन पर झांसी की ओर से ओरछा प्रथम स्टेशन है। ओरछा का निकटतम एयरपोर्ट खजुराहो है जो यहां से करीब 163 किलोमीटर की दूरी पर है। ग्वालियर एयरपोर्ट यहां से करीब 273 किमी है। इसलिए रेल यात्रा ही बेहतर विकल्प है। दिल्ली से वाया ग्लावियर ओरछा के लिए कई ट्रेन हैं। लखनऊ से वाया कानपुर-उरई भी कई ट्रेन चलती हैं।

डॉ. विभा खरे

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