#होयसलेश्वर : ऐसा मन्दिर जो 90 साल बनने के बाद भी रहा अधूरा
@sanatanyatra: होयसलेश्वर मन्दिर को बेलूर और सोमनाथपुरा के चेन्नाकेशव मन्दिरों के साथ होयसल के पवित्र समूहों के हिस्से के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूचि में शामिल किया गया है।बारहवीं सदी के होयसलेश्वर मन्दिर (Hoysaleshwara Temple) को हेलीबीडु मन्दिर भी कहा जाता है और यह भगवान शिव को समर्पित है।
इसका निर्माण होयसल साम्राज्य के अधिपति महाराजा विष्णुवर्धन ने तालिकाड की लड़ाई में चोलों पर अपनी विजय का उत्सव मनाने के लिए किया था। उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार, एक बड़ी मानव निर्मित झील के तट पर इसका निर्माण 1121 ईसवी के आसपास शुरू हुआ और लगभग 90 वर्षों तक जारी रहा लेकिन कभी पूरा नहीं हुआ। फिर भी, अपने अधूरे स्वरूप में भी यह मन्दिर होयसल वास्तुकला का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है।
चौदहवीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली सल्तनत की फौज ने हेलीबीडु को दो बार लूटा और नगर के साथ ही इस मन्दिर को भी काफी क्षतिपहुंचाई। कन्नड़ भाषा के हेलीबीडु शब्द का अर्थ है “पुराना घर” या “पुराना खण्डहर”। इस नगर का प्राचीन नाम “द्वारसमुद्र” है। सम्भवत: पास में एक विशाल जल स्रोत होने के कारण इसे यह नाम मिला होगा। बेलुरु के संग जुड़वा नगर कही जाने वाली यह जगह तीन शताब्दियों तक (11वीं शताब्दी के मध्य से 14वीं शताब्दी के मध्य तक) होयसल राजवंश का गढ़ थी।
होयसलेश्वर मन्दिर की वास्तुकला (Architecture of Hoysaleshwara Temple)
सोपस्टोन से बनाया गया यह मन्दिर शैव परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है। इसके बावजूद इसमें वैष्णववाद और शक्तिवाद परम्परा के कई विषयों के साथ-साथ जैन धर्म की छवियां भी शामिल हैं। होयसलेश्वर एक जुड़वां मन्दिर है। इन जुड़वां मन्दिरों में दो गर्भगृह हैं और दोनों में शिव लिंग है। एक गर्भगृह “होयसलेश्वर” शिव (राजा) को और दूसरा “शामेतलेश्वर” शिव (रानीशांतला) को समर्पित है। दोनों का आकार बराबर है। प्रत्येक गर्भगृह वर्गाकार है जिसके पूर्व में एक दर्शन द्वार है। इसके परिसर में दो नन्दी मन्दिर हैं जहां बैठे प्रत्येक नन्दी का मुख सम्बन्धित शिव लिंग की ओर है।
मन्दिर में सूर्य देवता के लिए एक छोटा गर्भगृह भी बनाया गया है। एक समय इसमें अधिरचना टावर थे जो अब नहीं हैं और मन्दिर सपाट दिखता है। मन्दिर का मुख पूर्व की ओर है, हालांकि वर्तमान में इसमें उत्तर की ओर से प्रवेश किया जाता है। मुख्य मन्दिर और नन्दी मन्दिर दोनों एक वर्गाकार योजना पर आधारित हैं। यह अपनी मूर्तियों औरजटिल नक्काशीके साथ-साथ अपने इतिहास के लिए जाना जाता है।
मन्दिर की दीवारों और स्तम्भों पर उत्कीर्ण कलाकृति 12वीं शताब्दी के दक्षिण भारतीय जन-जीवन और संस्कृति को दर्शाती हैं। इसके अलावा रामायण, महाभारत और विभिन्न पुराणों के पात्रों को भी उत्कीर्ण किया गया है। यहां की एक दीवार पर उकेरी गयी कैलास पर्वत सिर पर उठाए लंकापति रावण की मूर्ति मूर्तिशिल्प का अनुपम उदाहरण मानी जाती है। इसमें कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर और देवी पार्वती विराजमान हैं। मन्दिर की बाहरी दीवारों पर हिन्दू महाकाव्यों का सचित्र वर्णन और इनको दर्शाती 340 बड़ी आकृतियां हैं। इनमें कई कलाकृतियां क्षतिग्रस्त लेकिन काफी हद तक बरकरार हैं। खास बात यह कि यहां दक्षिण भारतीय लिपियों के अलावा उत्तर भारतीय लिपियों के भी शिलालेख मिलते हैं।
समग्र रूप से मन्दिर परिसर एक जगती (शाब्दिक रूप सेसांसारिक मन्च) पर रखा गया है। इसकी बाहरी दीवारों के चारों ओर मन्च 15 फीट चौड़ा है जिसका उद्देश्य था कि आगन्तुक या श्रद्धालु गर्भगृह की परिक्रमा करते समय घड़ी की दिशा में चलें। इसे प्रदक्षिणा पथ भी कहा जाता है। छोटे मन्दिर भी मुख्य मन्दिर के समान ही जगती साझा करते हैंजो पत्थर की सीढ़ियों से जुड़े हुए हैं। मन्दिर परिसर के दक्षिण में गरुड़ स्तम्भ है जिसका ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है।
संग्रहालय : हेलीबीडु मन्दिर (Halebidu Temple) परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा बनाए गयेएक संग्रहालय में 12वीं और 13वीं शताब्दी की 1500 से अधिक मूर्तियां, सिक्के और शिलालेख हैं। यह संग्रहालय केवल सोमवार से शुक्रवार तकसुबह नौ से शाम पांच बजे तक खुला रहता है।
विदेशियों की नजर में होयसलेश्वर (Hoysaleshwar in the eyes of foreigners)
रिचर्ड ओकले उन शुरुआती फ़ोटोग्राफरों में से थे जिन्होंने 1850 के दशक में इस मन्दिर का दौरा किया था। उन्होंने इसे “सबसे भव्य” और उनके द्वारा देखे गए किसी भी दक्षिण भारतीय मन्दिर से “बहुत बेहतर” कहा था। 19वीं सदी के कला समीक्षक जेम्स फर्ग्यूसन ने इस मन्दिर के बारे में लिखा है, “यह मानव श्रम की एक अद्भुत प्रदर्शनी और गॉथिक कला की किसी भी चीज़ से बढ़कर है।”पर्सी ब्राउन ने इसे “होयसल वास्तुकला की सर्वोच्च उपलब्धि” और “भारतीय वास्तुकला का सर्वोच्च चरमोत्कर्ष” बताया है।
आसपास के अन्य मन्दिर
हेलीबीडु को होयसलेश्वर मन्दिर (Hoysaleshwara Temple) के अलावा केदारेश्वर मन्दिर समेत कई जैन मन्दिरों के लिए भी जाना जाता है। केदारेश्वर मन्दिर का निर्माण राजा वीर बल्लाला द्वितीय और रानी केतलादेवी ने करवाया था।
होयसलेश्वर मन्दिर कब जायें (When to visit Hoysaleshwara Temple)
इस क्षेत्र का हर मौसम मस्त है पर अक्टूबर से फरवरी का समय सबसे अच्छा माना जाता है। दिसम्बर में यहां हल्की सर्दी पड़ती है।होयसलेश्वर मन्दिर प्रातः 06:30 से रात्रि 09:00 बजे तक खुला रहता है।
ऐसे पहुंचें होयसलेश्वर मन्दिर (How to reach Hoysaleshwara Temple)
वायु मार्ग :निकटतम हवाईअड्डा मैसूर एयरपोर्ट हेलीबीडु से करीब 157 किलोमीटर पड़ता है। मैंगलोर (मंगलुरु) इण्टरनेशनल एयरपोर्ट हेलीबीडु से करीब 175 किलोमीटर दूर है।बंगलुरु के कैम्पागोडा इण्टरनेशनल एयरपोर्ट से यहां तक पहुंचने के लिए करीब 232 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
रेल मार्ग : हासन जंक्शन से यह मन्दिर करीब 39 किलोमीटर दूर है। बंगलुरु, मैसूर, दिल्ली, पुणे आदि से यहां के लिए ट्रेन मिलती हैं।
सड़क मार्ग : यह मन्दिर हासन शहर से करीब 32, बंगलुरु से 212 और मैसूर से लगभग 144 किलोमीटर दूर है। कर्नाटक के सभी प्रमुख शहरों से हासन के लिए सरकारी और निजी बस और टैक्सी मिलती हैं।