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Friday, September 20, 2024
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#चेन्नाकेशव_मन्दिर_बेलुरु: होयसल वास्तुकला का रत्न

@sanatanyatra:बेलुरु कर्नाटक के हासन जिले में जिला मुख्यालय से करीब 38 किलोमीटर दूर है और अपने प्राचीन मन्दिरों, वास्तुकला और प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जाना जाता है। हमारी टैक्सी सवेरे साढ़े छह बजे हेलीबीडु के सरकारी गेस्टहाउस से रवाना हुई। करीब 17 किलोमीटर के इस सफर के दौरान हमने एक जगह थट्टे इडली का नाश्ता किया और साढ़े सात बजे के करीब बेलुरु पहुंच गये।

बेलुरु में यागाची नदी के तट पर स्थित है चेन्नाकेशव मन्दिर (Chennakesava Temple Beluru)। इसे केशव मन्दिर और विजयनारायण मन्दिर भी कहा जाता है। इस मन्दिर व जुड़वां शहर हेलीबीडु ने ही बेलुरु को अन्तरराष्ट्रीय पहचान दी है। होयसल स्थापत्यकला का चरमोत्कर्ष देखना हो तो इन जुड़वां शहरों का यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

होयसल वंश के राजा विष्णुवर्धन ने 1116 ईसवी में चोलों पर अपनी जीत के उपलक्ष्य में चेन्नाकेशव मन्दिर (Chennakesava Temple Beluru) का निर्माण करवाया था। माना जाता है कि तारे के आकार के इस मन्दिर को बनने में लगभग 103 साल लगे थे। यह स्थापत्य एवं मूर्तिकला की दृष्टि से भारत के सर्वोत्तम मन्दिरों में से एक है। इस्लामिक आक्रान्ताओं ने इसे कई बार क्षतिग्रस्त किया और लूटा लेकिन हिन्दू राजाओं ने बार-बार इसका जीर्णोद्धार करवाया।

चेन्नाकेशव मन्दिर बेलुरु का इतिहास (History of Chennakesava Temple Beluru)

बेलुरु को पहले बेलापुरी के नाम से जाना जाता था। दिल्ली के सुल्तानों द्वारा होयसल राजवंश की राजधानी द्वारसमुद्र (हेलीबीडु) को लूटने और नष्ट करने के बाद इसे होयसलों की राजधानी के रूप में चुना गया था। होयसल शासक कला और वास्तुकला के अद्भुत संरक्षक थे और उन्होंने अपने करीब 300 वर्ष के शासनकाल के दौरान कई विशाल और अद्भुत मन्दिरों का निर्माण कराया। इन मन्दिरों ने बेलुरुको एक पवित्र और पूजनीय स्थान के रूप में मान्यता दी और इसे “पृथ्वी का आधुनिक वैकुंठ)” कहा जाने लगा।

चेन्नाकेशव मन्दिर बेलुरु की वास्तुकला (Architecture of Chennakesava Temple Beluru)

होयसल मन्दिरों की पहचान एक सामान्य सितारा-डिजाइन की गयी स्थलीय योजना द्वारा की जाती है और ये आमतौर पर एक मंच या जगती पर स्थित होते हैं। ये कॉम्पैक्ट, स्क्वाट संरचनाएं हैं और दक्षिण भारत के अन्य मन्दिरों की तुलना में अधिक अलंकृत हैं। होयसल नरेश वास्तुकला, संगीत और नृत्य के संरक्षक माने जाते थे। इसका प्रभाव इनके द्वारा बनावाए गये मन्दिरों पर भी देखने को मिलता है जिनमें जटिल नक्काशी वाली संगीत और नृत्य पर आधारित मूर्तियां देखने को मिलती हैं।

चेन्नाकेशव मन्दिर (Chennakesava Temple Beluru) का निर्माण करीब 200 किलोमीटर दूर तुमकुर में पाये जाने वाले सोपस्टोन (स्टीटाइट) से किय़ा गया है। इस पत्थर को तराशना काफी आसान है, हालांकि, पर्यावरण के सम्पर्क में आने पर यह लोहे जैसी फिटनेस प्राप्त कर लेता है। मन्दिर की चमक–दमक बनाए रखने के लिए इस पत्थर को केमिकल वॉश से उपचारित किया जाता है और 10 साल में एक बार मोम की पॉलिश की जाती है। चेन्नाकेशव समेत कुछ और मन्दिरों की वजह से बेलूर को दक्षिण भारतीय वास्तुकला के रत्नों में से एक माना जाता है। ये मन्दिर वास्तुकला और संस्कृति के समृद्ध केन्द्र होने के साथ ही सनातम धर्मावलम्बियों के पूजनीय स्थान हैं।

चेन्नाकेशव मन्दिर (Chennakesava Temple Beluru) परिसर का प्रवेश द्वार (गोपुरम) सात मंजिला है जो काफी दूर से दिखायी देता है।178 फुट लम्बे और 156 फुट चौड़े इस मन्दिर में 48 बड़े स्तम्भ हैं जिन पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां उकेरी गयी हैं। परकोटे में तीन प्रवेशद्वार हैंजिन पर सुन्दर मूर्तिकारी है। इनमें हाथी, पौराणिक जीव-जन्तुओं, स्त्रियों, मालाओं आदि का चित्रण किया गया है।मन्दिर में 80 से अधिक मदनिका मूर्तियां (नृत्य,शिकार आदि करते हुए) हैं। नवरंगा के अविश्वसनीय रूप से उत्कीर्ण स्तम्भों पर चारमदनिका मूर्तियां (नृत्य मुद्रा) होयसला कारीगरी का उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती हैं। गर्भगृह की टेढ़ी-मेढ़ी दीवारें प्रकाश के कारण दिन में अलग-अलग समय में विष्णु के 24 रूपों की आकृतियों बनाती हैं।

कप्पे चेन्निगरया, सौम्यनायकी, अण्डाल व कुछ अन्य वैष्णव मन्दिर मुख्य मन्दिर के चारों ओर बनाए गये हैं। बेलूर में एक समाधि भी है जिसे 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कन्नड़ कवि राघवंका की समाधि माना जाता है।

चेन्नाकेशव मन्दिर (Chennakesava Temple Beluru) का निर्माण शिमोगा जिले के कल्याण चालुक्य कला के केन्द्र बल्लीगनवे के दो प्रसिद्ध कारीगरों दासोजा और उनके पुत्र चवना की देखरेख और निर्देशन में किया गया था।

भगवान विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा : पश्चिम की ओर का मण्डप गर्भगृह या आन्तरिक गर्भगृह की ओर जाता है। इसमें तीन फीट ऊंचे आसन पर भगवान विष्णु की चतुर्भुज मुद्रा में प्रभामण्डल के साथ भव्य रूप से अलंकृत छह फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है। भगवान के ऊपर वाले दोनों हाथों में चक्र और शंख हैं जबकि नीचे वाले दो हाथों में क्रमशः कमल और गदा। प्रभामण्डल में भगवान विष्णु के 10 अवतारों या रूपों की चक्रीय नक्काशी है। इस मूर्ति के पास भगवान विष्णुकी पत्नियों-श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां हैं। आन्तरिक गर्भगृह का प्रवेश द्वार मकर तोरण और फिलाग्री कार्यों से अलंकृत है। प्रवेश द्वार के शीर्ष पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की आकृति है। दरवाजे के दोनों ओर दो द्वारपाल जय और विजय हैं।

देवी सरस्वती की अद्भुत प्रतिमा : सरस्वती देवी की प्रतिमाएं आमतौर पर बैठकर वीणा बजाने की मुद्रा में होती हैं पर यहां उनकी प्रतिमा नृत्य मुद्रा में है। इस मूर्ति की विशिष्ट कलाकी अभिव्यंजना इसकी गुरुत्वाकर्षण रेखा की अनोखी रचना में है। यदि मूर्ति के सिर पर पानी डाला जाए तो वह नासिका से नीचे होकर वाम पार्श्व से होता हुआ खुली वाम हथेली पर आकर गिरता है और वहां से दाहिने पांव के नृत्य मुद्रा में स्थित तलवे (जो गुरुत्वाकर्षण रेखा का आधार है) पर से होता हुआ बाएं पांव पर गिरता है।

वास्तव में इन कलाकृतियों के निर्माण में होयसलामूर्तिकारी का चरमोत्कर्ष दिखता है जिसके कारण ये प्रतिमाएं संसार की सर्वश्रेष्ठ शिल्पकृतियों की सूची में शामिल की जाती हैं। 1433  ईसवी में भारत आये  ईरानके यात्री अब्दुल रज्जा ने इस मन्दिर के बारे में लिखा था, “मैं इसके शिल्प का वर्णन करते हुए डरता था कि कहीं मेरे प्रशंसात्मक कथन को लोग अतिशयोक्ति न समझ लें।”

कप्पे चेन्निगरया मन्दिर : कप्पे चेन्निगरया मन्दिर का वास्तुकला चेन्नाकेशव मन्दिर के समान है, हालांकि यह कम भव्य है। यह दोकोशिकाओं वाला मन्दिर मुख्य मन्दिर के दक्षिण में एक ऊंचे मंच पर  स्थित है। इसके गर्भगृह में चेन्नाकेशव की साढ़े छह फीट ऊंची मूर्ति के अलावा दीवारों और खम्भों पर कुछ कलाकृतियां उत्कीर्ण की गयी है।

भगवान चेन्नाकेशव की कथा (Story of Lord Chennakeshava)

ऐसा माना जाता है कि राजा विष्णुवर्धन को बाबा बुदान जंगल में अपने रात्रि प्रवास के दौरान स्वप्न में भगवान केशव के दर्शन हुए थे जिसके बाद उन्होंने बेलूर में चेन्नाकेशव मन्दिर का निर्माण करने का फैसला किया। हालांकि उन्होंने अनजाने में भगवान विष्णु को बाबा बुदान पहाड़ी पर रहने वाली उनकी पत्नी से अलग कर दिया। ऐसा माना जाता है कि भगवान अपनी पत्नी को सन्तुष्ट करने के लिए नियमित रूप से पहाड़ियों पर जाते हैं। इसलिए स्थानीय मोची समुदाय प्रतिदिन मन्दिर की वेदी पर सैण्डल की एक नयी जोड़ी प्रस्तुत करता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि भगवान को अर्पित करने के बाद सैण्डल गायब हो जाती हैं।

चेन्नाकेशव मन्दिर बेलुरु में समारोह (Ceremony at Chennakesava Temple Beluru)

वार्षिक रथोत्सव उगादी (कन्नडिगा) बेलुरु में मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार है। चैत्र मास में नववर्ष के 12 दिन बाद एक विशाल रथ में उत्सव मूर्ति को रख कर खींचा जाता है। यह उत्सव दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन मन्दिर के पूर्वी हिस्से को कवर किया गया जबकि दिन मन्दिर के अन्य हिस्सों को ढक दिया जाता है। वार्षिक उत्सव के दौरान मेला या जात्रे भी आयोजित किया जाता है।

चेन्नाकेशव मन्दिर बेलुरु में दर्शन का समय (Chennakeshava Temple Beluru Darshan Timings)

प्रातः 07:30 से अपराह्न 01:00 बजे तक

-अपराह्न 02:30 बजे से सायं 07:30 बजे तक

कब जायें चेन्नाकेशव मन्दिर बेलुरु (When to visit Chennakesava Temple Beluru)

बेलुरु साल में कभी भी जाया जा सकता है पर सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच माना जाता है। इस दौरान यहां का मौसम न तो ज्यादा सर्द होता है और ना ही ज्यादा गर्म।

चेन्नाकेशव मन्दिर बेलुरु के आसपास के आकर्षण (Attractions near Chennakeshava Temple Beluru)

वीरा नारायण मन्दिर, सौम्यनाकी मन्दिर, डोड्डागड्डवल्ली, रंगनायकी मन्दिर (अण्डाल तीर्थ),बेलवाडी, पुरातत्व संग्रहालय, एरमई जलप्रपात, वासुदेव सरोवर और यागाची बांध।

ऐसे पहुंचें चेन्नाकेशव मन्दिर बेलुरु (How to reach Chennakesava Temple Beluru)

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा मैंगलोर (मंगलुरु) इण्टरनेशनल एयरपोर्ट बेलुरु से करीब 160 किलोमीटर दूर है। हासन जिले में हीबेलुरु से 47 किलोमीटर दूर भुवनहल्ली में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट निर्माणाधीन है जिसके जल्द ही शुरू हो जाने की उम्मीद है।

रेल मार्ग : नजदीकी बड़ा रेलवे स्टेशन हासन जंक्शन बेलुरु से करीब 40 किलोमीटर दूर है। यहां के लिए बंगलुरु, मैसूर, हुबली, शिमोगा, कन्नूर मैंगलोर, दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई आदि से ट्रेन सेवा है।

सड़क मार्ग : हासन से बेलुरु के लिएनियमित बस सेवा है। इस रूट पर  टैक्सियां और कैब भी उपलब्ध हैं।

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