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Friday, September 20, 2024
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#ShaniJayanti2024: मनुष्यों को कर्मों के हिसाब से फल देते हैं शनिदेव, कृपा पाने को करें ये उपाय

शनि जयंती (ज्येष्ठ अमावस्या, 6 जून 2024) @SanatanYatra. हिन्दू पंचांग के अनुसार शनि देव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को हुआ था। शनि देव माता छाया और भगवान सूर्य के पुत्र हैं। शनिदेव को न्याय का देवता और कर्मफल प्रदाता माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या 6 जून 2024 गुरुवार को है। इसलिए शनि जयंती (SaniJayanti2024) 6 जून, गुरुवार को मनायी जाएगी। ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 05 जून की शाम को 07 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 6 जून को शाम 06 बजकर 07 मिनट पर होगी। इस कारण शनि जयंती 6 जून को ही मनाई जाएगी।

मत्स्य पुराण में कहा गया है कि शनिदेव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसा है और वे कौवे पर सवार हैं। उनके एक हाथ में धनुष-बाण है और एक हाथ वर मुद्रा में रहता है। शनिदेव (Shanidev) का विकराल रूप अत्यन्त भयावह है। वह पापियों के लिए हमेशा ही संहारक हैं।

हिंदू धर्म में शनिदेव (Shanidev) का स्थान

हिंदू धर्म में शनिदेव (Shanidev) का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। ज्योतिषशास्त्र में उनको न्याय के देवता कहा गया है। वह एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा प्रेम के कारण नहीं बल्कि भय के कारण की जाती है। इसका एक कारण यह भी है कि शनिदेव (Shanidev) को न्यायाधीश की उपाधि प्राप्त है। मान्यता है कि शनिदेव जातकों को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। जिन जातकों का आचरण और कर्म अच्छे होते हैं, उन पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है और जो व्यक्ति बुरे कर्मों में लिप्त रहते हैं, उन पर शनिदेव का प्रकोप बरसता है।

शनि ग्रह के सम्बन्ध में अनेक भ्रान्तियां है जिनके चलते उन्हें क्रूर, मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। हालांकि शनि उतने अशुभ और मारक नहीं हैं जितना उन्हें माना जाता है। इसलिए वह शत्रु नहीं, मित्र हैं। मोक्ष को देने वाला एकमात्र ग्रह शनि ही है। सत्य तो यह ही है कि शनिदेव प्रकृति में संतुलन बनाते करते हैं और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करते हैं। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्हीं को दण्डित या प्रताड़ितकरते हैं।

वैदूर्य कांति रमल:प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:।

अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवादः।।

(शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है तो उस समय प्रजा के लिए शुभ फल देता है, यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि-महात्मा कहते हैं।)

शनिदेव (Shanidev) का जन्म

पौराणिक अख्यानों के अनुसार, शनिदेव (Shanidev) का जन्म सूर्य भगवान की पत्नी संध्या की छाय़ा के गर्भ से हुआ था। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे, उस समय वह भगवान शिव की भक्ति में इतनी लीन रहती थीं कि अपने खाने-पीने तक सुध नहीं रहती थी जिसका प्रभाव उनके गर्भस्थ पुत्र शनि पर पड़ा और उनका वर्ण श्याम हो गया। यह भी किंवदंती है कि जब भगवान सूर्य अपनी पत्नी छाया के पास पहुंचे तो उनके प्रकाश को सहन न कर पाने की वजह से छाया ने आपनी आंखें बन कर लीं। इसी वजह से शनिदेव का रंग श्याम अर्थात काला पड़ गया। बहरहाल, महातेजस्वी भगवान सूर्य शनिदेव के श्याम वर्ण को देखकर अत्यन्त क्षुब्घ हुए। उन्होंने अपनी पत्नी छाया पर लांछन लगाया और शनि को अपना पुत्र मानने से इन्कार कर दिया। इसी बात को लेकर शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव पर क्रोधित हो गए।

शनिदेव (Shanidev) ने आगे चलकर भगवान शंकर की घोर तपस्या की। उनकी भक्ति को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। शनिदेव ने वरदान के रूप में मांगा कि वह चाहते हैं कि उनकी पूजा उनके पिता सूर्यदेव से अधिक हो जिससे सूर्यदेव का अपने प्रकाश का अहंकार टूट जाए। भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया कि नव ग्रहों में तुम्हारा स्थान अत्यन्त श्रेष्ठ होगा और तुम पृथ्वी लोक पर न्यायाधीश के रूप में लोगों को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करोगे। इसलिए आज भी भगवान शनि को न्यायाधीश के रूप में पूजा जाता है और सभी ग्रहों में उनका स्थान बहुत ऊंचा है।

मत्स्य पुराण में कहा गया है कि शनिदेव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसा है और वे कौवे पर सवार हैं। उनके एक हाथ में धनुष-बाण है और एक हाथ वर मुद्रा में रहता है। शनिदेव (Shanidev) का विकराल रूप अत्यन्त भयावह है। वह पापियों के लिए हमेशा ही संहारक हैं।

शनि ग्रह का खगोलीय विवरण (Astronomical description of Saturn)

नवग्रहों के कक्ष क्रम में शनि सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर अट्ठासी करोड, इकसठ लाख मील दूर हैं। पृथ्वी से शनि की दूरी इकहत्तर करोड, इकत्तीस लाख, तियालीस हजार मील है। शनि ग्रह का व्यास पचहत्तर हजार एक सौ मील है और यह छह मील प्रति सेकेण्ड की गति से 21.5 वर्ष में अपनी कक्षा में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है।शनि ग्रह के धरातल का तापमान 240 फारेनहाइट है।शनि के चारों ओर सात वलय हैं। शनि के 15 चन्द्रमा हैं और प्रत्येक का व्यास पृथ्वी से काफ़ी अधिक है।

ज्योतिषशास्त्र में शनि (Saturn in astrology)

फलित ज्योतिष के शास्त्रों में शनि को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है, जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर, छाया-पुत्र आदि। शनिदेव की गणना अशुभ ग्रहों में होती है और वह नौ ग्रहों में सातवें स्थान पर आते हैं। शनि के नक्षत्र हैं- पुष्य, अनुराधा, और उत्तरा भाद्रपद। वह एक राशि में 30 महीने तक निवास करते हैं और मकर एवं कुंभ राशि के स्वामी ग्रह हैं। उनकी उच्च राशि तुला है। तुला राशि में 20 अंश पर शनि परमोच्च हैं और मेष राशि के 29 अंश पर परमनीच।नीलम शनिदेव का रत्न है। शनि के पास सातवीं के साथ ही तीसरी और दसवीं दृष्टि भी है। कहा जाता है कि ये दृष्टि जिस ग्रह, भाव या व्यक्ति पर पड़ती हैं, उन्हें ना-ना प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। इन दृष्टियों से अलग-अलग ग्रह पर भी असर पड़ता है। लेकिन, कुछ स्थिति में शनि की दृष्टि अत्यन्त लाभकारी साबित होती है और व्यक्ति को इससे लाभ मिलते हैं। शनि ग्रह सूर्य, चन्द्र और मंगल का शत्रु तथा बुध और शुक्र का मित्र हैं तथा गुरु को सम मानता है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार, कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि जब भी अपनी राशियों और अपनी उच्च राशि पर दृष्टि डालते हैं तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही शनि पर अगर गुरु की दृष्टि हो तो उनका बुरा प्रभाव कम हो जाता है। ऐसे में इनका किसी भी भाव पर दृष्टि डालना ज्यादा बुरा नहीं होता। अगर शनि की दृष्टि छठे भाव पर हो तो शत्रुओं का नाश होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है। इसका कारण यह है कि छठा भाव शत्रु और रोगों का कहा जाता है और शनि जिस भी भाव पर दृष्टि डालते हैं उस भाव से जुड़े परिणामों पर असर डालते हैं। ऐसे में शनि की क्रूर दृष्टि भी शुभ बन जाती है। शनि कुंडली में अगर कुंभ राशि में विराजमान हो तो इसकी दृष्टि का प्रभाव काफी हद तक शुभ माना जाता है। कुंभ राशि में विराजमान शनि व्यक्ति को सफलता दिलाने वाले माना जाता हैं।

इन स्थितियों में शनि की दृष्टि अशुभ : शनिदेव (Shanidev) को उनकी पत्नी का श्राप है कि वे जिस किसी पर भी अपनी दृष्टि डालेंगे, उसका जीवन समस्याओं से घिर जाएगा। इसलिए ज्यादातर स्थितियों में शनि की दृष्टि का बुरा प्रभाव देखने को मिलता है। कुंडली में अगर शनिदेव नीच राशि में विराजमान हों तो उनकी दृष्टि का बुरा प्रभाव देखने को मिलता है। ऐसी स्थिति में जिन भी भावों पर शनि की दृष्टि पड़ती है, उन भावों से जुड़े बुरे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। कुंडली में शनि पर शत्रु ग्रहों जैसे सूर्य, चंद्र, मंगल आदि की दृष्टि होने पर भी शनि की दृष्टि बुरे प्रभाव दे सकती है।अगर किसी की कुंडली में शनि अकारक या मारक हैं तो इनकी दृष्टि से परेशानियां पैदा हो सकती हैं।

शनिदेव की कृपा पाने को करें ये उपायइन बातों का रखें ध्यान (Do these measures to get the blessings of Shanidev, keep these things in mind)

  • -शनि जयंती (Shani Jayanti) की शाम को शनि महाराज के वैदिक मंत्र “ऊँ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न: का कम से कम 108 बार जप करें। आप चाहें तो शनि नाम मंत्र, “ऊँ शं शनैश्चराय नम: का भी जप कर सकते हैं। मंत्र जप के अलावा भगवान राम के पिता महाराजा दशरथ द्वारा लिखे गए शनि स्तोत्र का 11 बार पाठ कर सकते हैं।
  • -शनि जयंती पर शनि मंदिर के अलावा हनुमान मंदिर में भी पूजा-आराधना जरूर करनी चाहिए।
  • -शनि जयंती (Shani Jayanti) के दिन पानी में कच्चा दूध और गुड़ मिलाकर पीपल के वृक्ष की जड़ में डालें। साथ ही पीपल की सात परिक्रमा करके उसका एक पत्ता अपने साथ घर ले आएं और पर्स में रखें।
  • -काले रंग का जूता किसी जरूरतमंद बुजुर्ग को दान दें। इससे दोहरा लाभ मिलेगा- गुरु की अनुकूलता से आय में वृद्धि होगी और शनिदेव के शुभ प्रभाव के चलते अचानक होने वाले अनावश्यक व्यय में कमी आएगी। ध्‍यान रखें कि दान करने वाली चीजें नयी होनी चाहिए। कभी भी प्रयोग की जा चुकी चीजें दान नहीं करनी देनी चाहिए। काले तिल का भी दान कर सकते हैं।
  • -सरसों का तेल, लकड़ी और काली उड़द का दान करने से शनिदेव प्रसन्‍न होते हैं। लेकिन, अगर आप भूल से भी शनि जयंती पर इन चीजों को खरीदकर घर लाते हैं तो आपको शनिदेव की बुरी नजर का सामना करना पड़ सकता है। आप चाहें तो घर में पहले से मौजूद इन चीजों का दान कर सकते हैं।
  • -शनि जयंती (Shani Jayanti) पर किसी मंदिर में शनिदेव के दर्शन करने जाएं तो एक बात का ध्‍यान रखें कि भूल से भी उनकी आंखों को न देखें। ऐसा करना शनिदेव का अपमान माना जाता है और वह नाराज हो जाते हैं।
  • -शनिदेव (Shanidev) को तामसिक प्रवृत्ति के लोगों और भोग-विलास की वस्‍तुओं से सख्‍त नफरत है। इस दिन मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। बेहतर होगा कि इस अगर आप काली उड़द की खिचड़ी बनाकर पूरे परिवार के साथ खाएं। इससे शनि की ग्रहदशा भी दूर होती है।
  • -इस दिन झूठ और अपशब्द बोलने से बचना चाहिए। इसके अलावा इस दिन गरीब और जरूरतमंदों को भला-बुरा भी नहीं बोलना चाहिए।
  • -शनि जयंती (Shani Jayanti) पर लोगों को नाखून और बाल भूलकर भी नहीं काटने चाहिए।

ढैय्या और साढ़ेसाती का प्रभाव कम करने का उपाय : शनि जयंती की रात को आठ बादाम और आठ ही काजल की डिब्बी एक काले वस्त्र में बांधकर शनि मंदिर के पास किसी स्‍थान पर छिपा कर रख दें। लाल किताब में बताया गया है कि इस तरह के उपाय से शनि देव प्रसन्न होकर ढैय्या और साढ़ेसाती से मुक्ति प्रदान करते हैं। इसके अलावा शनिवार के दिन काली गाय की सेवा करने से भी लाभ होता है। उसे रोटी खिलाएं और माथे पर सिंदूर का तिलक लगाएं।

इस बात का रखें ध्यान : जो व्‍यक्ति द्वार पर आए भिक्षुक को खाली हाथ लौटा देते हैं, उनसे शनिदेव बहुत नाराज होते हैं। ऐसे लोगों की कुंडली में शनिदेव अशुभ प्रभाव देने वाले हो जाते हैं। इसलिए आपके द्वार पर कोई भी ऐसा व्‍यक्ति आए तो उसे खाली हाथ लौटाने की बजाए कुछ दान अवश्‍य दें।

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