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Tuesday, December 3, 2024
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कैलास मानसरोवर : साक्षात महादेव के दर्शन

@Vishal_G_Ajmera. बचपन में पढ़ते और सुनते थे कि भगवान ‘ऊपर’ रहते हैं। थोड़े बड़े हुए तो पता लगा कि महादेव शिव कैलास पर निवास करते हैं। सोचता था कि शायद कैलाश कहीं आसमान में होगा, जहां भगवान शिव रहते हैं और देवता उनसे मिलने जाते हैं। जैसे-जैसे बड़ा होता गया शिव के प्रति आसक्ति बढ़ती गयी। फिर समझा कि कैलास आसमान में नहीं धरती पर ही है तो कैलास दर्शन की इच्छा हुई जो धीरे-धीरे और बलवती होती गयी। फिर इस इच्छा को पूर्ण करने की बात भगवान शिव से प्रार्थना में शामिल हो गयी। देखते ही देखते जीवन के 55 बसंत पार हो गये।

आया महादेव का बुलावा

यह जून 2019 आ गया। बड़े भईया श्री अजय शर्मा और भाभीजी श्रीमती सत्या शर्मा और बड़े भाई समान मित्र के.के. शर्मा जी से चर्चा हुई तो कैलाश से भगवान का बुलावा आ गया और कार्यक्रम बन गया। एक ट्रैवल एजेन्सी से बात की, उसने सारा पैकेज बताया। सभी के टिकट आदि कराये, साथ ही टैक्सी और होटल आदि में सारी बुकिंग एडवान्स में करा दीं, जिससे यात्रा सुगमता से हो सके। भइया-भाभी अमेरिका से भारत आये, के.के. शर्मा जी दिल्ली से बरेली और हम बरेली से उनके साथ चल दिये बाबा भोलेनाथ के दर्शन को। त्रिवेणी एक्सप्रेस से लखनऊ पहुंच गये। यह लगभग 250 किलोमीटर का सफर यात्रा के काल्पनिक रोमांच और तैयारियों की चर्चा के बीच गुजर गया। लखनऊ से रुपैडिहा होते हुए नेपाल के नेपाल गंज का करीब 200 किलोमीटर का सफर बस से लगभग 5 घण्टे में पूरा हो गया। भाई साहब और भाभी जी, वहां दिल्ली से हवाई मार्ग से पहले ही पहुंच चुके थे।

यहां हम सब एकत्र हुए और ट्रैवल एजेन्सी के बुक कराये होटल में अपने कमरों में पहुंच गये। करीब 10-12 घण्टों की यात्रा की थकान तो थी लेकिन बाबा महादेव कैलास के दर्शन के विचार मात्र के रोमांच ने आंखों से नींद उड़ा दी थी। खैर वहां भोजन विश्राम किया कि अगले दिन सुबह प्लेन से कैलाश की ओर उड़ान जो भरनी थी।

नया सूरज, नयी आस, नया सफर

अगले दिन का सूरज नयी ऊर्जा, नयी आस और नवोत्साह लेकर आया और हम होटल से निकल पड़े नेपालगंज एयरपोर्ट की ओर। टैक्सी ने निर्धारित समय पर हमें एयरपोर्ट पर छोड़ दिया। वहां चारों ओर पहाड़ों के बीच बड़े से मैदान पर 15 सीटर हवाई जहाज में हम सब बैठ गये। जैसे ही प्लेन ने उड़ान भरी, मन में कैलाश दर्शन की इच्छा को भी पंख लग गये। इस प्लेन ने हमें लगभग 6000 फिट की ऊंचाई पर हिमालय पर्वत श्रंखला के बीच सिम्मीकोट पहुंचा दिया। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की बादलों से ढकी चोटियों से भी ऊपर उड़ना एक अलग रोमांच था। 45 मिनट की इस रोमांचक यात्रा ने ईश्वर की बनायी प्रकृति की अलौकिक और दिव्य कृतियों का साक्षात अनुभव करा दिया।

@sanatanyatra

इस प्लेन यानि हवाई जहाज ने हमें सिम्मीकोट में हवाईपट्टी पर ही बने हेलीपैड पर छोड़ा। यहां से तत्काल ही हम हेलीकॉप्टर से हिल्सा के लिए उड़ान भरने लगे। यह यात्रा और भी अधिक रोमांचक थी, क्योंकि प्लेन के मुकाबले हेलीकॉप्टर की गति कम थी, सो अनुभव और रोमांच और बढ़ गया। हालांकि कई जगह भय भी लगा लेकिन जब जीवन नैया ईश्वर को सौंप दी हो तो डर के आगे जीत होती है। मेरे साथियों ने अनेक स्थानों पर भय के कारण आंखें बंद कर लीं लेकिन हमारी आंखों में तो महादेव और उनकी बनायी सृष्टि को निहारने का सपना था। सब कुछ नेत्रों में कैद कर लेने को आतुर। हमने कैमरा निकाला और आंखों से जो दिखा उसे कैमरे में कैद करते चले।

लगभग 8 से 10 फिर 12 हजार फुट की ऊंचाई, हिमालय की विशाल पर्वत श्रंखला की बर्फ से पूरी तरह ढकीं चांदी सी चमकती चोटियां, वहीं दो पर्वतों के बीच हजारों फुट गहरी खाईयां, पवर्तों से से झर-झर बहती दूधियां नदियां शब्दातीत अनुभूति हो रही थी।

मेढ़े के कटे सिर ने किया स्वागत

हेलीकॉप्टर ने हमें हिल्सा, जोकि नेपाल का एक अत्यंत मनोरम हिल स्टेशन है, में छोड़ा। पर्वतों और घाटियों के बीच बसा यह छोटा सा किन्तु अद्भुत स्थान है। चारों ओर हिमाच्छादित पर्वत चोटियां वृक्ष रहित चट्टानों के बीच स्थित एक गेस्ट हाउस में हमारे रुकने की व्यवस्था थी। वहीं हमने भोजन किया। इसके बाद तिब्बत-चीन की ओर ब
ढ़ना था, सो सारी कागजी औपचारिकताएं भी यहीं पूरी होनी थीं। यहां जब हेलीपैड से जब हम गेस्ट हाउस की ओर बढ़ रहे थे तो हमारा स्वागत किया एक बड़े से मेढ़े के कटे सिर ने। जीहां, यहां के लोग अपने घरों को बुरी नजर से बचाने के लिए मुख्य दरवाजे के ऊपर मरे हुए मेढ़े का बड़े-बड़े सींगों समेत कटा हुआ सिर लगाते हैं।

काली नदी और फ्रेण्डशिप ब्रिज

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भोजन और थोड़े विश्राम के बाद हिल्सा में बने चेकपोस्ट पर हमारे कागजात चेक हुए। पासपोर्ट पर नेपाल सरकार की मुहर लगायी गयी। यह वस्तुतः तिब्बत का बॉर्डर है। नेपाल और तिब्बत के बीच एक काली नदी बहती है। कई बार इसका रौद्र रूप भयभीत कर देता है, शायद इसीलिए इसे काली नदी कहते हैं। नेपाल और तिब्बत जोड़ता है इस काली नदी पर बना झूला पुल। इसे फ्रेण्डशिप ब्रिज के नाम से जाना जाता है। लोहे को पाइपों से बना यह 200 मीटर लम्बा पुल पार करना स्वयं में एक अनोखा और रोमांचक अनुभव है।

चीनी कारिंदे यानि आइसक्रीम शेक के बीच करेला जूस

पुल पार करने के बाद चीन (तिब्बत) की सीमा में दाखिल हुए। वहीं पास में ही बने चेकपोस्ट पर दोबारा चीन सरकार के अधिकारियों ने पासपोर्ट आदि का वेरिफिकेशन किया। यहां आकर अभी तक के मधुर और रोमांचक अनुभवों के बीच चीनी कर्मचारियां का व्यवहार ऐसा था कि मानो आईसक्रीम शेक के बीच किसी ने करेले का जूस पिला दिया हो। यहां हम कैलाश यात्रियों का सामान और पूछताछ का तरीका ऐसा हो कि हम भगवान के दर्शन को नहीं, कोई जासूस हों। कुछ लोगों के बैग से पूजन सामग्री, पानी और फल भी निकलवा दिये।

इस वेरिफिकेशन के बाद हमें चीन के टूरिस्ट गाइड के हवाले कर दिया गया। उससे बातचीत में पता चला कि चीनी अधिकारी दलाई लामा या उनके भक्तों से अति सर्तक रहते हैं। चूंकि चीनी और अंग्रेजी के अलावा यहां अन्य भाषा नहीं जानते तो कुछ भी किसी अन्य भाषा में लिखे मैटर को अत्यन्त सकर्तता से जांच करते हैं। खैर यह सब जानकर भी एक अलग सी अनुभूति हुई कि एक साधु से इतना डर, ऐसी सतर्कता।

हाइट एटिट्यूड सिकनेस

ये गाइड हमें टैक्सी से टकलाकोट ले गयी, इस बीच उससे हुई बातचीत और उनके सौम्य व्यवहार से पूर्व में मन में घुली कड़वाहट कुछ कम हुई। टकला कोट, एक छोटा सा तिब्बती कस्बा है। यहां चारों ओर पहाड़ियां और होटल हैं। यहां हम करीब 11 बजे पहुंचे और हिमालया होटल में ठहरे।

यहां टकलाकोट में हाईट एटिट्यूड सिकनेस होने लगती है यानि भूख कम लगना, ऑक्सीजन की कमी से शरीर भारी हो जाता है। बैठे-बैठे सांस फूलने लगती है। इससे बचने के लिए हमें हमारी गाइड ने एक गोली ‘‘डायनॉक्स’’ दी। रात्रि वहीं विश्राम किया तो सुबह तक शरीर ने वहां के वातावरण के साथ सामन्जस्य बैठा लिया था। सुबह हुई और हम निकल पड़े पवित्र मानसरोवर की यात्रा पर।

kailash from rakshas taal @sanatanyatra
kailash from rakshas taal @sanatanyatra

पहले राक्षस ताल से पड़ा पाला

मन में पवित्र मानसरोवर को देखने, उसमें गोता लगाने का संकल्प था, जिसकी परीक्षा वहां का -2 डिग्री का तापमान ले रहा था। हालांकि हमें वहां लग्जरी कोच बस मिली थी, इसके बावजूद मौसम का पूरा असर दीख रहा था। मानसरोवर की ओर बढ़ते हुए हमें एक जगह रोका गया। यह एक बड़ा सा सरोवर था लेकिन वहां की अनुभूति कुछ अलग थी। फिर गाइड ने बताया कि यह राक्षस ताल है। नाम सुनते ही अनुभूति सत्य प्रतीत होने लगी। वहां का पानी खारा था और जबर्दस्त निगेटिव एनर्जी महसूस हुई थी। अच्छा तब लगा जब यहां से पवित्र कैलाश के प्रथम दर्शन हुए। टकलाकोट से यहां पहुंचने में बस से हमें एक घण्टे का समय लगा।

बताते हैं कि कैलाश पर राक्षसराज रावण ने घोर तप किया था। इससे पूर्व उसने इसी ताल में स्नान किया था। यहां की निगेटिविटी का असर यह हुआ कि उसने तपस्या पूर्ण होने पर भगवान शिव से वरदान में उनकी पत्नी यानि माता पार्वती को ही मांग लिया।

इस कथा से इतर इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं। वैज्ञानिक मानते हैं 225 किलोमीटर क्षेत्र में फैले और 150 फुट गहरे इस ताल में अनेक विषाक्त गैसें मिली हुई हैं। इसी के कारण इस जल में कोई जलीय जीव या वनस्पति नहीं पनप पाती है।
राक्षस ताल से कैलाश की झलक देखी तो निगेटिविटी खत्म होकर मन-मस्तिष्क नयी ऊर्जा से लबरेज हो चुका था। चारों ओर बर्फीली चोटियां, दूर तक फैला सरोवर एक अलौकिक दृश्य उत्पन्न कर रहे थे। यहां से फिर यात्रा शुरू हुई पवित्र मानसरोवर की ओर। करीब 45 मिनट की यात्रा के बाद हम पवित्र मानसरोवर पहुंच चुके थे।

at mansarovar @sanatanyatra
bath at mansarovar @sanatanyatra

मानसरोवर पर दिव्यानुभूति

मानसरोवर पर सकारात्मक ऊर्जा का अविरल प्रवाह, किसी शीशे की तरह साफ जलराशि से लबालब सरोवर किसी को भी मंत्रमुग्ध करके स्वयं से बांध लेता है। पवित्र मानसरोवर के किनारे कुछ देर एकांत में बैठकर जो अनुभूति हुई वह शब्दातीत है। प्रतीत हुआ कि मानो जन्म सफल हो गया। इसके लिए महादेव का कोटि-कोटि आभार। तभी गाइड की आवाज ने तंद्रा भंग की। वहीं स्टे के लिए कॉटेज बने हुए हैं। रास्ते में एक जैन मठ भी मिला और कुछ अस्थायी आश्रय गृह भी बने थे। रास्ते में कुछ तिब्बती दण्डवत यात्रा करते दिखे। उनका साहस देखकर उन्हें मानसिक प्रणाम निवेदित किया। यहां हम दोपहर करीब डेढ़ बजे पहुंचे थे। वहीं भोजन किया और तीन बजे फिर चल दिये। हालांकि यहां स्नान और पूजन की हार्दिक इच्छा थी लेकिन समयाभाव के चलते उस समय पूर्ण नहीं हो सकी। अलबत्ता मानसरोवर जैसे निर्जन स्थान जहां तापमान माइनस में रहता हो। सफेद पक्षियों जिन्हें वहां के लोग ‘‘सी गर्ल’’ कहते हैं, ने मन में कौतुहल उत्पन्न कर दिया।

अब यात्रा थोड़ी लम्बी थी। पवित्र मानसरोवर की परिक्रमा करनी थी जो करीब 75 से 80 किलोमीटर की थी। इसे बस या टैक्सी से ही किया जा सकता है। इस परिक्रमा के बीच हमें अनेक स्थानों पर पवित्र मानसरोवर के विभिन्न कोणों से दर्शन के रोका गया। इस पूरी परिक्रमा में तीन घण्टे से कुछ ज्यादा समय लगा। परिक्रमा से लौटकर पुनः मानसरोवर के तट पर बैठे तो आनन्द कई गुणा बढ़ा चुका था। थकान स्वयं जाती रही। मानसरोवर का शांत जल और सामने आदि देव महादेव का निवास कैलाश, एक अलौकिक अनुभव करा रहा था।

रात्रि विश्राम और अत्यधिक कम ऑक्सीजन

रात्रि भोजन किया और वहीं कॉटेज में विश्राम किया। रात में सर्दी और अधिक बढ़ गयी। ऑक्सीजन का स्तर न्यूनतम हो गया था। सांस लेने में थोड़ी कठिनाई होने लगी थी, लेकिन गाइड अत्यंत कुशल प्रशिक्षित थीं। वह सबका ऑक्सीजन स्तर माप रही थी। आवश्यकतानुसार लोगों को ऑक्सीजन सिलेण्डर भी मुहैया थे।

दो विकल्प : घोड़ा या पैदल

अगले दिन सुबह पवित्र कैलाश की ओर चलना था। यहीं हमसे पूछा गया कि बस के छोड़ने के बाद आगे की यात्रा पैदल करेंगे या घोड़ा लेंगे। यहीं बुक करना होगा। आगे की यात्रा के लिए एक घोड़े का किराया 30 हजार रूपये था। इसके बाद सुबह करीब साढ़े आठ बजे बस से धारचून पहुंचे। धारचून समुद्र तल से 4600 मीटर यानि करीब 15000 फुट की ऊंचाई पर है। मानसरोवर से धारचून पहुंचने में बस ने दो घण्टे का समय लिया।

Yamdwar@sanatanyatra
Yamdwar @sanatanyatra

…तो यमदूत नहीं शिवगण आते हैं लेने

धारचून में होटल हिमालया में ठहरे। यहां से जीप द्वारा लगभग 10 किलोमीटर दूर ‘यमद्वार’ पहुंचते हैं। यमद्वार से ही घोड़ा और याक मिलते हैं। यमद्वार एक द्वार है, जिससे गुजर कर कैलाश की ओर बढ़ने की मान्यता है। कहते हैं कि तीन परिक्रमा करके इस ‘‘यमद्वार’’ से गुजरे तो अंत समय में यमदूत नहीं भगवान शिव के गण प्राणी को लेने आते हैं। अर्थात यह मोक्ष का द्वार है।

हमने भी यमद्वार की परिक्रमा की और बाद में द्वार से गुजरे। यमद्वार के दूसरी ओर हमारे बैठने के लिए घोडा़ और सामान लादने के लिए याक हमें मिल गये। यहां से कैलाश के दर्शन और स्पष्ट होने लगे थे। घोड़े पर बैठकर यात्रा शुरू हुई तो अनुभव हुआ कि घोड़ा लेने का निर्णय सही था। दुर्गम रास्ते, वर्फ से पूरी तरह ढके पहाड़ों के बीच 14 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके हम पहले पड़ाव 15,500 फुट की ऊंचाई पर दीरापुक पहुंचे। यहां पहुंचते-पहुंचते शाम हो चुकी थी। यहीं पर पहले से बुक होटल में भोजन और रात्रि विश्राम किया। हां रास्ते में खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। अपने पास रखा भोजन, चॉकलेट या ड्राईफ्रूट ही खाने होते हैं।

… -10 डिग्री और लौट गये कुछ लोग

दीरापुक में सर्दी और बढ़ जाती है तो ऑक्सीजन का स्तर और अधिक कम हो जाता है। ऐसे में सांस के रोगी या जरा भी अस्वस्थ होने की स्थिति में हालत एकदम बिगड़ सकती है। हमारे दल में एक स्पेनिश युगल भी शामिल हुआ था। तबियत बिगड़ने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा। उन्हें इमरजेन्सी में एयर एम्बुलेन्स से वापस भेजा गया। ये लोग पैदल चल रहे थे। तापमान यकायक बहुत गिर गया। तेज बर्फ गिरने लगी थी। यहां तापमान -10 डिग्री पर आ गया था।

… और स्वर्णिम हो गया कैलास

यहां रात्रि विश्राम के बाद जब सुबह 7 बजकर 15 मिनट पर सूर्योदय हुआ तो सूर्य देव की केसरिया वर्ण रश्मियां जब ‘चांदी की चादर’ से ढके कैलाश पर पड़ीं तो रजत कैलाश स्वर्णिम कैलाश में परिवर्तित हो गया। लगभग एक घण्टे बाद गोल्डन कैलाश फिर शनै-शनै दूधिया कैलाश हो गया। यह दृश्य मंत्रमुग्ध कर गया। लोग जड़वत बस, कभी कैलाश को तो कभी सूर्य नारायण को प्रणाम करते। हमने महादेव को मानसिक प्रणाम कर हार्दिक आभार व्यक्त किया कि प्रभु आपने कैलाश रूप दर्शन का मनोरथ पूर्ण किया।
कैलाश के सामने नन्दी पर्वत और थोड़ा पहले अष्टपद पर्वत के दर्शन भी हुए। सभी जानते ही हैं कि नन्दी तो भगवान के सामने रहते ही हैं। वे भी यहा पर्वत रूप में साक्षात विराजमान हैं। अष्टपद पर्वत वह पर्वत है, जहां पहुंचकर ब्रह्मलीन होने की परम्परा जैन तीर्थंकरों ने शुरू की। साथ ही प्रत्येक संन्यासी की इच्छा यहीं शरीर छोड़ने की रहती है।

नो इण्डियन्स आर एलाउड

यहां से हमें आगे 22 किलोमीटर दूर जुलथुलपुक पहुंचना था, जो कि कैलाश दर्शन का निर्धारित स्टेशन माना जाता है। लेकिन हमें बताया गया कि यहां मौसम अत्यधिक खराब हो गया है। बर्फवारी बहुत ज्यादा हो रही है। ऐसे में कहा गया- ‘नो इण्डियंस आर एलाउड’’ यानि भारतीयों को आगे जाने की अनुमति नहीं है। वहां से आगे केवल नेपाली शेरपाओं को जाने दिया जा रहा था।

वास्तविकता में दीरापुक से जुलथुलपुक के रास्ते में डॉलमेल के पास लगभग 5600 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर नीचे आना होता है, इसी को कैलाश परिक्रमा कहते हैं जो नहीं कर सके। दीरापुक के जुलथुलपुक के बीच तापमान और गिरकर -10 से और गिरता हुआ -15 हो चुका था।

 on the way of kailash @sanatanyatra
on the way of kailash @sanatanyatra

… नयी ऊर्जा के साथ वापसी

जुलथुलपुक नहीं जा पाने की कसक थी लेकिन कैलाश दर्शन की अनुभूति ने मन में कोई क्लेश, क्षोभ रहने नहीं दिया था। मन-मस्तिष्क से लेकर आत्मा तक अभिभूत थी अपने आराध्य के निवास स्थल के साक्षात दर्शन कर। फिर एक विचार कौंधा कि मानसरोवर में भी स्नान हो जाता तो यात्रा पूर्ण हो जाती। कैलाश को प्रणाम किया और हम लौटकर वापस धारचेन आ गये।

महादेव ने पूर्ण की मनोकामना

धारचेन में विश्राम करके अगले दिन सुबह हम मानसरोवर पहुंचे। सोमवार का दिन था और तिथि अमावस्या अर्थात सोमवती अमावस्या के पवित्र दिन हम पवित्र मानसरोवर पर थे। वहां तापमान कम तो था लेकिन ऐसा नहीं जिससे गुजर कर हम आये थे।

मानसरोवर सामने था, फिर मन कहां मानने वाला था? बस, कपड़े उतारे और महादेव का नाम लेकर उतर गये पवित्र जल में। महादेव शिव को फिर प्रणाम किया। हृदय से धन्यवाद दिया और डुबकी लगाकर बाहर निकले। वहीं नेपाल के एक पुरोहित जी भेंट हो गयी। फिर क्या था सोने पर सुहागा। उनके बात की तो वह पूजा कराने को राजी हो गये। उन्होंने मानसरोवर के तट पर विधि-विधान से यज्ञ सम्पन्न कराया और दक्षिणा मात्र 850 युआन यानि करीब दस हजार रुपये ली। अब मन को संतोष हुआ।
हमें लगा कि अब लौटने की बारी है। सोचा, थोड़ा भजन-कीर्तन करें लेकिन शायद महादेव बाबा का विचार कुछ और ही था। फिर रात्रि विश्राम के दौरान हुआ शब्दों से इतर, वर्णनातीत दिव्य अनुभव। अगली सुबह हम वापस नेपालगंज-लखनऊ होते हुए बरेली के लिए निकल पड़े।

… और ये वर्णनातीत अनुभव

रात्रि विश्राम यहीं मानसरोवर में बने कॉटेज में किया गया। यहां पूर्ण सूर्यास्त करीब दस बजे हुआ। रात में और सर्द हुआ मौसम लेकिन आंखों में नींद नहीं थी। हम प्रभु के आभार स्वरूप भजन-कीर्तन में लगे थे। नयी ऊर्जा, दिव्य अनुभूतियां मानों मानव जन्म सफल हो गया। देर रात एक बजे के बाद अधिकांश लोग निद्रा में थे। लेकिन एक दृश्य ने फिर नींद उड़ा दी। रात करीब तीन बजे आसमान से कुछ तारे टूटते से प्रतीत हुए। तेज रोशनी की किरण नीचे आयी मानसरोवर में नीचे तक गयी और वापस आसमान में लौट गयी। फिर एक श्वेत पक्षी आया, डुबकी मारी और उड़ गया। कहां गया, पता नहीं। यह सब कुछ ही क्षणों में घट गया, मानों एक सपना हो। मैं जड़वत – एकटक इस सबको देखता ही रह गया। इससे हुई अनूभूति-अनुभव को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। जो भी था, एक रहस्यात्मक रोमांच या शिव की शक्ति का साक्षात दर्शन। मुझे नहीं पता, मैं योगी नहीं हूं और न ही कोई सत्यान्वेषक। मैं तो बस एक सेवक हूं महादेव का, स्वयं की खोज में लगा एक प्राणी।… अंत में बस यही कहना है कि एक बार कैलास यात्रा पर जरूर जायें। हर-हर महादेव।

(कैलास यात्रा से लौटे ग्रामीण बैंक अधिकारी विनय शर्मा से बातचीत पर आधारित)

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