भगवान श्री वराह जी के प्राकट्योत्सव की कथा
हिन्दू धर्म में वराह जयंती भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर साल बड़े ही उत्साह से मनाई जाती है। इस दिन धरती माता को जलमग्न होने से बचाकर उनकी रक्षा करने वाले श्री हरि विष्णु के दशावतार में तृतीय अवतार भगवान श्री वराह जी के प्राकट्योत्सव पर भगवान विष्णु के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती। साथ ही भक्त उपवास एवं व्रत का पालन करते हुए भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा करते हैं।
वराह जयंती हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान विष्णु के वराह अवतार को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण करके पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाला था।
भगवान श्री वराह जी के प्राकट्योत्सव की कथा—
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने के लिए वराह रूप में अवतार लिया था। पुरातन समय में एक बार हिरण्याक्ष ने ब्रह्मदेव को कठिन तप करने के बाद प्रसन्न कर लिया। उसके कठिन तप से ब्रह्मा जी बहुत खुश हुए और प्रकट हुए। हिरण्याक्ष ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसे युद्ध में कोई भी आदमी, भगवान या जानवर परास्त न कर सके और इन तीनों में से कोई भी उसकी मृत्यु न कर सके। हिरण्याक्ष की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया और वहां से चले गए।
वरदान मिलते ही हिरण्याक्ष को घमंड आ गया और धरती पर आतंक का कारण बन गया। सभी उसके प्रकोप से डरने लगे। धरती पर उपस्थित मानव इतने परेशान हो गए कि वे भगवान से प्रार्थना करने लगे कि उन्हें कैसे भी हिरण्याक्ष से बचाएं। एक बार जब हिरण्याक्ष ने धरती को उठाकर समुद्र के नीचे पाताल लोक में छिपा दिया। इससे देवता भी परेशान हो गए थे। जब ब्रह्मा जी सो रहे थे तो हिरण्याक्ष ने उनके पास से वेंदों को भी चुराकर अपने पास रख लिया था।
अत्यंत बलशाली और अपने घमंड से प्रेरित हरिण्याक्ष का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता गया। इसके बाद चिंतित देवी-देवताओं ने कहा कि हरिण्याक्ष ने जो ब्रह्मा जी वरदान मांगा है उसमें सभी जानवरों का नाम लिया है लेकिन उसने सूअर यानी वराह का नाम नहीं लिया था। जिसके बाद भगवान विष्णु ब्रह्मदेव की नाक से वराह रूप में प्रकट हो गए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। इसके बाद सभी देवी देवताओं के आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। उन्होंने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।
जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा. दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्ध्यान हो गए।
कहा जाता है कि वराह जयंती के दिन वराह अवतार की इस कथा को पढ़ने और सुनने से लोगों को पुण्य फल की प्राप्ति होती है और इंसान को सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।