पापांकुशा एकादशी व्रत कथा एवं महत्व
@sanatanyatra:पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस एकादशी पर भगवान ‘पद्मनाभ’ की पूजा की जाती है। पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम ‘पापांकुशा एकादशी’ हुआ है। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है। इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है।
व्रत पूजन विधि– इस एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू करना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की शेषशय्या पर विराजित प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथा संभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। संभव न हो तो व्रती एक समय फलाहार कर सकता है। इसके बाद भगवान ‘पद्मनाभ’ की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। यदि व्रत करने वाला पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवाया जा सकता है।
भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत का पान करे। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ का जप एवं उनकी कथा सुनें। रात्रि को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो शयन करना चाहिए और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त लेना चाहिए। इस प्रकार पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।
व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि “आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है और इस अवसर पर किसकी पूजा होती है एवं इस व्रत का क्या लाभ है?”
युधिष्ठिर की मधुर वाणी को सुनकर गुणातीत श्रीकृष्ण भगवान बोले- “आश्विन शुक्ल एकादशी ‘पापांकुशा’ के नाम से जानी जाती है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पाप का निरोध करती है अर्थात उनसे रक्षा करती है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य को अर्थ, मोक्ष और काम इन तीनों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है, उसके सारे संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रती को सुबह स्नान करके विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनके नाम से व्रत और पूजन करना चाहिए। व्रती को रात्रि में जागरण करना चाहिए। जो भक्ति पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं, उनका जीवन सुखमय होता है और वह भोगों मे लिप्त नहीं होता।
श्रीकृष्ण कहते हैं, जो इस पापांकुशा एकदशी का व्रत रखते हैं, वे भक्त कमल के समान होते हैं जो संसार रूपी माया के भवर में भी पाप से अछूते रहते हैं। कलिकाल में जो भक्त इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें वही पुण्य प्राप्त होता है, जो सतयुग में कठोर तपस्या करने वाले ऋषियों को मिलता था। इस एकादशी व्रत का जो व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि से अनुष्ठान करते हैं, वे न केवल अपने लिए पुण्य संचय करते हैं, बल्कि उनके पुण्य से मातृगण व पितृगण भी पाप मुक्त हो जाते हैं। इस एकादशी का व्रत करके व्रती को द्वादशी के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दान देना चाहिए।”
पापांकुशा एकादशी महत्त्व
पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को उत्तम दान व दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल फलाहार ही लिया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व हलका रहता है। इस एकादशी के व्रत रहने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जनहितकारी निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, जल, अन्न, छत्र, उपानह आदि का दान करना चाहिए।