भ्रामरी योगिनी दशा में अन्य दशाओं का फल
ज्योतिष शास्त्र में योगिनी दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। योगिनी दशाएं स्वयं भगवान शिव के द्वारा बनाई हुई हैं एवं जातक के जीवन को प्रभावित करती हैं। ज्योतिष शास्त्र में योगिनी दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है।वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुल 8 प्रकार के योगिनी दशों को परिभाषित किया गया है। इन दशों के नाम हैं — मंगला, पिंगला, धन्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्ध और संकटा। आइये अब जानते हैं भ्रामरी योगिनी दशा में अन्य दशाओं का फल
भ्रामरी दशा योगिनि दशा में चौथे स्थान पर आती है।यह मंगल की दशा होती है। मंगल से प्रभावित इस दशा में व्यक्ति के भीतर पराक्रम एवं परिश्रम द्वारा समाज में अपना स्थान अर्जित करने की कोशिश में प्रयासरत रहता है।यह दशा व्यक्ति को भटकाव की स्थिति भी अधिक देती है।व्यक्ति कार्य व व्यर्थ कामों की वजह से भ्रमण में लगा रहता है। परिवार से दूर निर्थक भटकाव की स्थिति का उसे सामना करना पड़ता है।
मंगल अग्नि तत्व एवं क्रूर ग्रह होने से व्यक्ति के भीतर भी इन गुणों को देखा जा सकता है।इस कारण उसमें क्रोद्ध एवं आक्रामक व्यवहार का आगमन हो सकता है। बात बत पर बहस या जिद्दीपन आ सकता है। यह दशा व्यक्ति को मान हानि, पदभंग जैसी स्थिति में खडा़ कर सकती है। कार्य में स्थानांतरण या न चाहते हुए भी स्थान से अलग होना पड़ सकता है। जातक अपनी समझदारी से अपने साहस एवं कौशल द्वारा अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के प्रयास में लगा रहता है।
यदि जातक शांत एवं सूझबूझ से काम ले तो वह सरकार से सम्मान एवं अपनी सफलता को सुनिश्चित कर सकता है। कुछ विद्वानों के अनुसार भ्रामरी दशा घर परिवर के सुख में कमी करने वाली होती है।. लेकिन मेहनत एवं कडे़ संघर्ष द्वारा व्यक्ति धनी मानी व्यक्तियों की कृपा से लाभ प्राप्त करने में काफी हद तक सफल होता है। यदि जातक धैर्य व संतुलन से काम ले तो वह उचित फलों को पाने में सफल भी होता है।
मंगला दशा में व्यक्ति के कई मांगलिक कार्य भी संपन्न हो सकते हैं इस दौरान व्यक्ति अपने नए संबंधों की ओर झुकाव महसूस कर सकता है। जातक में जल्दबाजी बहुत हो सकती है।बिना सोचे समझे कुछ अनचाहे फैसले भी वह ले सकता है, जिस कारण उसे परेशानियों का सामना भी करना पडे़। ऎसे समय में चाहिए की वह अपनी सोच को विस्तृत करे ओर सभी पहलुओं पर विचार करते हुए किसी फैसले पर पहुंचे। ऎसा करने से वह अपनी कई परेशानियों पर काबू पाने में सफल हो सकता है और दशा के फलों को सहने योग्य स्वयं को बना सकता है।
व्यक्ति की कुण्डली के योग दशाओं में जाकर फल देते है। किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर अनेक योग बन रहे हैं लेकिन फिर भी वह व्यक्ति साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहा है।तो समझ जाना चाहिए। की उस व्यक्ति को योगों से जुडे ग्रहों की दशाएं अभी तक नहीं मिली है। यदि व्यक्ति को उचित दशाएं सही समय पर मिल जाती है यो उस व्यक्ति को जीवन में सरलता से सफलता के दर्शन हो जाते है। क्योकी यह दशाओं का ही खेल है की व्यक्ति फल प्रदान करने में सहायक होता है।
भ्रामरी योगिनी दशा में अन्य दशाओं का फल
भ्रामरी योगिनी दशा में पहली अंतर दशा भ्रामरी की ही होती है। इस दशा समय के दौरान व्यक्ति के लिए समय काफी कठिन रहता है।व्यक्ति को किसी न किसी कारण से भय बना रहता है। व्यक्ति को प्रोपर्टी से संबंधित परेशानी झेलनी पड़ती है।
भ्रामरी में भद्रिका की अंतरदशा आने पर यात्राओं का योग बनता है। दोस्तों के साथ मिलकर कुछ नए काम किए जाते हैं।राज्य की ओर से लाभ मिलेगा।
भ्रामरी में उल्का की अंतरदशा आने पर व्यक्ति को स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। अपने सगे संबंधियों को कष्ट होता है।
भ्रामरी में सिद्धा दशा आने पर लम्बी चली आ रही परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है। रुके हुए काम आगे बढ़ते हैं।किसी पुराने रोग से मुक्ति भी इस दशा के दौरान मिल सकती है।
भ्रामरी में संकटा दशा का होना मारक का कार्य करता है।व्यक्ति को अचानक से किसी दुर्घटना या अप्रिय समाचार सुनना पड़ सकता है।
भ्रामरी में मंगला दशा का आरंभ राज्य की ओर से सुख देने वाला होगा।मान सम्मान बढ़ेगा। नौकरी में बदलाव और पद प्राप्ति हो सकती है।
भ्रामरी दशा में पिंगला की अंतरदशा हो तो हाथ पैरों और मुख के रोगों में वृद्धि हो सकती है।पशुओं एवं वाहन से भय बना रहता है।चानक से कोई दुर्घटना होने की संभावना भी अधिक रहती ।
भ्रामरी दशा में धान्या अंतरदशा का होना रोगों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। व्यक्ति को धीरे धीरे वस्तुओं की प्राप्ति होती है।सुख और संपन्नता का जीवन भी मिलता है।अपने वरिष्ठ लोगों से स्नेह भी मिलता है।