भानुमति ने कुनबा जोड़ा,कैसे बनी यह कहावत,पढ़ें रोचक जानकारी
भानुमति ! कहीं की ईंट कहीं के रोडे को इकठ्ठा कर अपना कुनबा बना लेने वाली भानुमति। किसी जादुई पिटारे की स्वामिनी भानुमति। दुर्योधन, कर्ण तथा अर्जुन के साथ अनोखे सम्बन्ध बनाने वाली भानुमति। कौन थी ये महिला, जिसके नाम के मुहावरे उससे ज्यादा प्रसिद्ध हैं ? उसके बारे में विस्तार से जानने के लिए महाभारत काल में यात्रा करनी पड़ेगी, जहां उसके बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध है।
.प्राचीन काल में भारत के महाजनपदों में से एक था कंबोज। जिसका क्षेत्र आधुनिक पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मिलता था। उस समय कंबोज पर राजा चन्द्रवर्मा का राज था। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम था भानुमति। उसके रूप और गुणों के सामने स्वर्ग की अप्सराएं भी कहीं नहीं ठहरती थीं। उसके विवाह योग्य होने पर राजा चंद्र्वर्मा ने भानुमति के विवाह के लिए स्वयंबर का आयोजन किया। भानुमति ना सिर्फ बहुत रूपवान थी, अत्यंत बुद्धिमती होने के साथ-साथ वह शारीरिक रूप से भी अति बलिष्ठ थी। इन्हीं गुणों की ख्याति सुन उसके स्वयंबर में दुर्योधन, कर्ण, जरासंध, शिशुपाल जैसे पराक्रमी, वीर और ख्यातिप्रद राजा उससे विवाह की अभिलाषा लेकर आये थे।
.जब स्वयंवर स्थल पर भानुमति पूरे श्रृंगार के साथ आई तो वहां उपस्थित सभी राजाओं के मुंह खुले के खुले रह गए। ऐसा अप्रितम सौन्दर्य ना किसी ने देखा था ना किसी ने सोचा था। जब दुर्योधन की दृष्टि भानुमति पर पड़ी तो उसका मन मचल उठा और उसने ठान लिया कि भानुमति से वही विवाह करेगा। परंतु भानुमति को दुर्योधन पसंद नहीं था। इसीलिए वह वरमाला ले उससे आगे बढ़ गयी। यह देख दुर्योधन अत्यंत क्रोधित हो गया और भानुमति को पकड कर बलपूर्वक उससे माला अपने गले में डलवा ली। वहां उपस्थित बाकी राजाओं में आक्रोश फ़ैल गया तथा उन्होंने इस बात का विरोध किया तो दुर्योधन ने सभी योद्धाओं को कर्ण से युद्ध करने की चुनौती दे डाली ! कुछ ने युद्ध की चुनौती स्वीकार की भी तो उन्हें कर्ण ने पलक झपकते ही हरा दिया। उसके इस शौर्य से भानुमति भी बहुत प्रभावित हुई। इसी कारण विवाहोपरांत हस्तिनापुर आने पर उसे कर्ण के साथ समय व्यतीत करना बहुत भाता था।
भानुमति को हस्तिनापुर ले आने के बाद दुर्योधन ने भानुमति के अपहरण को यह कह कर, अप ने आप को सही ठहराया, कि भीष्म पितामह भी अपने सौतेले भाइयों के लिए अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण करके ले आए थे। इस तर्क से भानुमति भी मान गई और दोनों ने विवाह कर लिया। इनके लक्ष्मण तथा लक्ष्मणा नामक एक पुत्र तथा एक पुत्री हुई। कालांतर से लक्ष्मणा ने कृष्ण पुत्र साम्ब से भाग कर विवाह कर लिया और लक्ष्मण युद्ध में अभिमन्यु द्वारा मारा गया। फिर भी भानुमति ने युद्ध में दुर्योधन की मृत्यु के बाद अर्जुन से विवाह कर लिया था।
दुर्योधन की मृत्यु के बाद भानुमति के सामने उसके दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी थी। भानुमति को लगने लगा था कि समाज में दुर्योधन के बच्चों को हमेशा अपमान सहना पड़ेगा। जब श्रीकृष्ण को भानुमति की इस दुविधा के बारे में पता चला, तो उन्होंने भानुमति को अर्जुन से विवाह करने का मार्ग सुझाया। श्रीकृष्ण ने कहा कि अर्जुन की पत्नी बनने से भानुमति को भी समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा और दोनों बच्चों को भी कोई समस्या नहीं आएगी। यह बात मानकर भानुमति ने अर्जुन के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया। जिसे अर्जुन ने श्रीकृष्ण के कहने पर मान लिया।
भानुमति की पहचान केवल अर्जुन या दुर्योधन की पत्नी होने तक सीमित नहीं थी बल्कि भानुमति को उसके स्वभाव और व्यक्तित्व के लिए भी महान माना जाता है। सबसे पहली बात तो यह कही जाती है कि भानुमति ने खुद दुर्योधन को नहीं चुना था बल्कि दुर्योधन ने जबरदस्ती भानुमति से विवाह किया, इसलिए उसके चुनाव पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। दूसरी बात यह है कि भानुमति को दूरदर्शी महिला माना जाता है, जिसने कौरवों और पांडव वंश के बीच युद्ध की सम्भावना को हमेशा के लिए खत्म कर दिया था क्योंकि अर्जुन से विवाह करने के बाद कौरवों का नाम भी पांडव से जुड़ गया था।
भानुमती ! जिसने दुर्योधन को पति नहीं चुनना चाहा था। स्वयंवर के समय वह किसी और को वरमाला पहनाना चाहती थी। पर उसे विवास हो कर दुर्योधन से विवाह करना पड़ा। भले ही बाद में वह राजी हो गयी हो। स्वयंवर के समय हुए युद्ध में वह कर्ण से भी प्रभावित थी। हस्तिनापुर आने के बाद उसे कर्ण के साथ समय व्यतीत करना पसंद था। फिर महाभारत युद्ध के पश्चात दुर्योधन की मृत्यु के उपरांत उसने अर्जुन से विवाह कर लिया।
समय, परिस्थियों और अवसरवादिता के चलते, समयानुसार दुर्योधन, कर्ण, अर्जुन के साथ अनोखे सम्बन्ध बना बार-बार अपने अलग-अलग कुनबे गढने के कारण से ही शायद यह कहावत चलन में आई ………..”कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” !