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Thursday, November 14, 2024

यदि घर में अलक्ष्मी या दरिद्रा का वास है तो कभी ना करे ये कार्य

यदि घर में अलक्ष्मी या दरिद्रा का वास है तो अप्रत्यक्ष सरूप से कभी ना करे ये कार्य… जानिए कौनसे—-

१. दिन में तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने वाला रोगी और दरिद्र हो जाता है।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण)

२. सूने तथा निर्जन घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। देव मन्दिर और श्मशान में भी नहीं सोना चाहिए।। (मनुस्मृति)

३. किसी सोए हुए मनुष्य को अचानक नहीं जगाना चाहिए।। (विष्णुस्मृति)

४. स्वस्थ मनुष्य को आयुरक्षा हेतु ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए (देवी भागवत) और बिल्कुल अँधेरे कमरे में नहीं सोना चाहिए।।(पद्मपुराण)

५. भीगे पैर से नहीं सोना चाहिए। सूखे पैर से सोने से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति होती है (अत्रिस्मृति) और टूटी खाट पर तथा जूठे मुँह सोना भी वर्जित है।।(महाभारत)

६. पूर्व की ओर सिर करके सोने से विद्या, पश्चिम की ओर सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता, उत्तर की ओर सिर करके सोने से हानि, विमारी अथवा मृत्यु तथा दक्षिण की ओर सिर करके सोने से धन व आयु की प्राप्ति होती है।।(आचारमय़ूख)

७. दिन में कभी नहीं सोना चाहिए। परन्तु प्रबल धूप के दिन दोपहर के समय 48 मिनट के लिए सोया जा सकता है। दिन में सोने से रोग घेरते हैं तथा आयु का क्षरण होता है दिन में तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने वाला रोगी और दरिद्र हो जाता है।। (ब्रह्मवैवर्तपुराण)

८. दक्षिण दिशा में पाँव करके कभी नहीं सोना चाहिए, क्योकि वंहा यम और दुष्ट देवों का निवास रहता है, कान में हवा भरती है, मस्तिष्क में रक्त का संचार कम हो जाता है और स्मृति- भ्रंश, मौत व असंख्य बीमारियाँ होती है हृदय पर हाथ रखकर, छत के पाट या बीम के नीचे और पाँव पर पाँव चढ़ाकर निद्रा न लें।

९. शय्या पर बैठकर खाना- पीना अशुभ है।सोते- सोते पढ़ना नहीं चाहिए। ऐसा करने से नेत्र- ज्योति घटती है।

१०. ललाट पर तिलक लगाकर सोना अशुभ है। इसलिये सोते समय तिलक हटा देना उचित है।।

११. उल्टा सोये भोगी, सीधा सोये योगी, दांऐं सोये रोगी, बाऐं सोये निरोगी आयुर्वेद में ‘वामकुक्षि’ की बात आती हैं। बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं।।

१२. सोते व उठते वक्त कितने संख्यक गायत्री मंन्त्र गुने जाए, इस बारे में नियम है “सोता सात, उठता आठ”। सोते वक्त भय को दूर कर सुनिद्रा के लिए सात बार मंन्त्र गुनें और उठते वक्त आलस्य को दूर कर कर्म तत्पर होने के लिए आठ बार मंन्त्र गुनें।।

१३. शयन के समय मस्तक और पाँव की तरफ दीपक रखना नहीं चाहिए। दीपक बायीं या दायीं और कम से कम 5 हाथ दूर में रख सकते है द्वार के उंबरे/ देहरी/ थलेटी/ चौकट पर मस्तक रखकर नींद न लें।।

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