Tranding
Thursday, November 21, 2024
#शारदीय नवरात्रि 2024 ,#नवरात्र, #नवरात्रि ,#navratra, #muhurt,#नवरात्रि ,#चन्द्रघण्टा,#Navrati2024,

शारदीय नवरात्र : तीसरे रूप माँ चन्द्रघंटा देवी की कथा एवं पूजनविधि

मां चंद्रघंटा जी को समर्पित शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा करते हैं। मां का तीसरा स्वरूप – मां चंद्रघंटा परम शांतिदायक और कल्याणकारी हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी आराधना की जाती है। माना जाता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा और भक्ति करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के तीसरे दिन जो भी भक्त, मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना करता है, उसे मां की असीम कृपा प्राप्त होती है।

मां चंद्रघंटा का स्वरूप : धर्म शास्त्रों के अनुसार, मां चंद्रघंटा ने राक्षसों के संहार के लिए अवतार लिया था। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों देवों की शक्तियां समाहित हैं। ये अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, धनुष व गदा धारण करती हैं। इनके माथे पर घंटे के आकार में अर्धचंद्र विराजमान है। इसलिए ये ‘चंद्रघंटा’ कहलाती हैं। भक्तों के लिए माता का यह स्वरूप सौम्य और शांत है। आइए अब जानते हैं, मां चंद्रघंटा की पूजन विधि के बारे में:-

ऐसे करें मां के तीसरे स्वरूप की पूजा विधि…माँ चंद्रघण्टा श्री माँ दुर्गा का तृतीय रूप है, जिनकी पूजा आराधना नवरात्रि के तीसरे दिन करने का विधान होता होता है। सर्वप्रथम, जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर, पूजा के स्थान पर गंगाजल छिड़कें और मां चंद्रघंटा की आराधना करें। फिर मां चंद्रघंटा का ध्यान करें और उनके समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित कर, माता रानी को अक्षत, सिंदूर, पुष्प आदि चीजें अर्पित करें और “उं देवी चंद्रघंटायै नम:” मंत्र का जाप करें। इसके बाद मां को प्रसाद के रूप में फल और केसर-दूध से बनी मिठाइयां या खीर का भोग लगाकर, उनकी आरती करें। नवरात्रि के हर दिन, नियम से दुर्गा चालीसा और दुर्गा आरती करें। पूजा के पश्चात की गई गलती के लिए क्षमा याचना करें।

प्रिय भोग
मां चंद्रघंटा की पूजा के समय सफेद, भूरा या स्वर्ण रंग का वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन मां को दूध से बने मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा को शहद भी बहुत प्रिय है।

मां चन्द्रघंटा स्तोत्र:

ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ

मान्यता है कि इस स्तोत्र से मां चंद्रघंटा की स्तुति करने से मां प्रसन्न होती हैं और अपना आशीर्वाद सदैव अपने भक्तों पर बनाये रखती हैं।

चंद्रघण्टा का मंत्र

माँ की स्तुति के अनेक मंत्र दुर्गा सप्तशती के मानक ग्रंथ में है। उनके रूप लावण्य सहित उनकी प्रतिमा का वर्णन व उनके मंत्रों का वर्णन यथा स्थान प्राप्त होता रहता है। माता चंद्रघण्टा की पूजा विधि-विधान व श्रद्धा भाव से करना चाहिए।

देविप्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

ध्यान मंत्र

पिण्डजप्रवरारूपा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्रयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

अर्थात- मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दस हाथों में शस्त्र आदि हैं।

माता चंद्रघण्टा की कथा

माँ चन्द्रघण्टा असुरों के विनाश हेतु माँ दुर्गा के तृतीय रूप में अवतरित होती है। जो भयंकर दैत्य सेनाओं का संहार करके देवताओं को उनका भाग दिलाती है। भक्तों को वांछित फल दिलाने वाली हैं। आप सम्पूर्ण जगत की पीड़ा का नाश करने वाली है। जिससे समस्त शात्रों का ज्ञान होता है, वह मेधा शक्ति आप ही हैं।

दुर्गा भव सागर से उतारने वाली भी आप ही है। आपका मुख मंद मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है, तो भी उसे देखकर महिषासुर को क्रोध हुआ और सहसा उसने उस पर प्रहार कर दिया, यह बड़े आश्चर्य की बात है।

जब देवी का वही मुख क्रोध से युक्त होने पर उदयकाल के चन्द्रमा की भांति लाल और तनी हुई भौहों के कारण विकराल हो उठा, तब उसे देखकर जो महिषासुर के प्राण तुरंत निकल गये, यह उससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात है, क्योंकि क्रोध में भरे हुए यमराज को देखकर भला कौन जीवित रह सकता है। देवि! आप प्रसन्न हों।

परमात्मस्वरूपा आपके प्रसन्न होने पर जगत् का अभ्युदय होता है और क्रोध में भर जाने पर आप तत्काल ही कितने कुलों का सर्वनाश कर डालती हैं, यह बात अभी अनुभव में आई है क्योंकि महिषासुर की यह विशाल सेना क्षण भर में आपके कोप से नष्ट हो गयी है।

कहते है कि देवी चन्द्रघण्टा ने राक्षस समूहों का संहार करने के लिए जैसे ही धनुष की टंकार को धरा व गगन में गुजा दिया वैसे ही माँ के वाहन सिंह ने भी दहाडऩा आरम्भ कर दिया और माता फिर घण्टे के शब्द से उस ध्वनि को और बढ़ा दिया, जिससे धनुष की टंकार, सिंह की दहाड़ और घण्टे की ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाएं गूँज उठी। उस भयंकर शब्द व अपने प्रताप से वह दैत्य समूहों का संहार कर विजय हुई।

चंद्रघण्टा महात्म्य

माँ चंद्रघण्टा के महात्म्य को दुर्गा सप्तशती में कई स्थानों पर वर्णित किया गया है। माँ की कांति स्वर्णिम है तथा सिंह के ऊपर सवार होती हैं। माँ प्रचण्ड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि तुम्हारी जय हो! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो, अर्थात् माँ दुर्गा के तृतीय रूप चंद्रघण्टा को बारंबार प्रणाम है।

कहने का अभिप्राय है कि माता चन्द्रघण्टा जो कि माँ दुर्गा का ही रूप है। जिसके व्रत अनुष्ठान व पूजन से वांछित फलों की प्राप्त होती है। रोग, पीड़ाओं सहित कई तरह के दर्द दूर होते हैं। अत: यत्न पूर्वक नवरात्रि के पावन पर्व पर माता की अर्चना करनी चाहिए।

नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

प्रेम से बोलिये जय माता दी 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हमारी टीम

संस्थापक-सम्पादक : विशाल गुप्ता
प्रबन्ध सम्पादक : अनुवन्दना माहेश्वरी
सलाहकार सम्पादक : गजेन्द्र त्रिपाठी
ज्वाइंट एडिटर : आलोक शंखधर
RNI Title Code : UPBIL05206

error: Content is protected !!