Bhramari Stotram : भ्रामरी स्तोत्रम् का पाठ कब और कैसे करें?
ज्योतिष शास्त्र में योगिनी दशायें काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। यह योगिनी दशायें आठ होती हैं। जिन्हें अष्ट योगिनियों कहते हैं अष्ट योगिनियों को नवग्रहों की माता कहा जाता है।उन आठ योगिनी महादशाओं में से एक है योगिनी भ्रामरी महादशा जोकि भौम (मंगल) ग्रह की माता है। इनकी उपासना करने मंगल की दशा से उत्पन्न दुख और कष्टों का निवारण होता है। यह स्तोत्र समस्त सिद्धियों का प्रवर्तक है। महर्षि भारद्वाज के द्वारा ‘सूतसंहिता’ में वर्णित भ्रामरी स्तोत्रम्-
भ्रामरी स्तोत्रम्
स्तोत्र पाठ-
द्विभुजा भ्रामरी श्यामा वर-खट्वांग-धारिणी।
भ्रममाणा दशामध्ये विद्रुमाभा त्रिलोचना ॥
रक्ताम्बरा रक्तवर्णा रक्तमाल्यानुलेपना ।
रक्तनेत्रनखा रक्तरसना रक्तदन्तिका ॥
भ्रमहन्त्री भक्तिलभ्या मनसोद्वेगकारिणी ।
योगिनीवृन्दमध्यस्था भौममाता यशश्विनी ॥
भयदा भयहा दुर्गाऽखीभ्रमणदायिनी ।
द्विसहस्र विभेदेन ज्योतिश्चक्रनिवासिनी ॥
कालिका कामदा काली कमनीय भुजेक्षणा।
कान्तावासिनी कान्ता घृतोदधिनिवासिनी ॥
माक्षिकोदधि संमग्ना यवपर्वतगामिनी।
शर्करा गिररिसल्लीना कृशरान्नविभोजिनी ॥
खेटा खेटानुगा साध्वी खेटपीड़ा विभंजनी ।
फलश्रुति-
इतिते कथितं स्तोत्रं सर्वसिद्धि प्रवर्तकम् ।
यस्याऽनुष्ठानमात्रेण नश्यते खेटजं भयम् ॥
योगिनीजं दशादोषं नश्यतेऽत्र न संशयः ।
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं न मिथ्यावादिनोवयम् ॥
भ्रामरी स्तोत्रम् का पाठ कैसे करें?
भ्रामरी महादशा और अंतर्दशा के समय भ्रामरी स्तोत्रम् (Bhramari Stotram) का नियमित पाठ करने और भ्रामरी मंत्र का जाप करने से साधक को भौम ग्रह के प्रभाव से होने वाले कष्टो से मुक्ति मिलती है। साधक पर उनका दुष्प्रभाव नही होता।
- नियमित रूप से प्रात:काल उठते ही धरती को प्रणाम करें।
- स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ मन से योगिनी भ्रामरी का ध्यान करें।
- फिर पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ भ्रामरी स्तोत्रम् (Bhramari Stotram) का पाठ करें।
- अपनी भूल और गलतियों के लिये क्षमा माँगें और फिर उनसे अपना मनोरथ निवेदन करें।