जन्मोत्सव विशेष : श्री कल्कि अवतार
@sanatanyatraशास्त्रों में वर्णित है श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह अवतार होना तय है पइसलिए यह शुभ तिथि कल्कि जयंती को उत्सव रूप में मनाया जाता है। कल्कि अवतार के जन्म समय ग्रहों की जो स्थिति होगी उसके बारे में दक्षिण भारतीय ज्योतिषियों की गणना के अनुसार जब चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में गोचर करेगा। गुरू स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा।
कलियुग का प्रामाणिक वर्णन
हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थ भविष्य पुराण में
कलयुग के विषय में जो प्रामाणिक वर्णन है उसके अनुसार कलियुग की आयु कुल 4,32,000 वर्ष की है जिनमें से (दिनांक 9 अप्रैल 2024 तक) 5,125 वर्ष बीत चुके हैं। अतः अभी भी कलियुग की बहुत आयु शेष है। वर्तमान में (दिनांक 9 अप्रैल 2024 से) कलियुग संवत् 5126 चल रहा है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नये विक्रम संवत्सर के साथ ही नया कलियुग संवत्सर(वर्ष) प्रारम्भ होता है।
मान्यता है कि प्रत्येक युग के चार चरण होते हैं। कलियुग के भी चार चरण हैं। कलियुग का एक चरण 1,08,000 वर्ष का होता है।कलियुग के प्रथम चरण में कलि मिश्रित सतयुग अभी चल रहा है। दूसरे चरण में कलि मिश्रित त्रेता, तीसरे चरण में कलि मिश्रित द्वापर तथा चतुर्थ चरण में कलि मिश्रित कलियुग का समागम होगा।
इस प्रकार चौथे चरण में घोर कलियुग का स्वरूप देखने में आयेगा। सब लोग पशुवत् आचरण करते दिखाई पड़ेंगे और धर्म से च्युत होकर नष्ट हो जायेंगे। धर्म-कर्म भी गोपनीयता के कारण लुप्त हो जायेगा। कारण सभी भौतिकता मे डूबे रहेंगे और आध्यात्मिक चेतना किसी में न रहेगी. जिससे प्रामाणिक ज्ञान का अभाव हो जायेगा। घोर कलि के वातावरण के प्रभाव से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में तमान्ध छा जायेगा। तब सप्तशती के अनुसार- “निशामयं तदुत्पत्तिं” के आधार पर कल्कि अवतार लेकर मां पुनः विलुप्त धर्म के प्रकाश को लाकर तमान्ध को दूर करेंगी। परंतु वह समय अभी बहुत दूर है।
युग परिवर्तनकारी भगवान श्री कल्कि के अवतार का संभावित समय कलियुग के अंतिम चरण में बताया गया है इसका प्रयोजन विश्वकल्याण है। पुराणकथाओं के अनुसार कलियुग में पाप की सीमा पार होने पर विश्व में दुष्टों के संहार के लिये कल्कि अवतार प्रकट होगा। कल्कि अवतार कलियुग के अन्त के लिये होगा।
भगवान का यह अवतार ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से भी जाना जायेगा। श्रीमद्भागवतमहापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं विस्तार से वर्णित है। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि “सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में कल्कि उनके घर में जन्म लेंगे और अल्पायु में ही वेदादि शास्त्रों का पाठ करके महापण्डित हो जाएँगे। बाद में वे जीवों के दुःख से कातर हो महादेव की उपासना करके अस्त्रविद्या प्राप्त करेंगे जिनका विवाह बृहद्रथ की पुत्री पद्मादेवी के साथ होगा।“
वह देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी कराल करवाल (तलवार) से दुष्टों का संहार करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा।”
सम्भल ग्राम मुख्यस्य ब्राह्मणस्यमहात्मनः भवनेविष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति।।
भगवान श्री कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। उनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के नाम के होंगे। याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी – लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। उनके पुत्र होंगे – जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक।
कल्कि भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य एवं ज्योतिमय होता है। उनके स्परूप की कल्पना उनके परम अनुग्रह से ही की जा सकती है। भगवान श्री कल्कि अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक हैं। शक्ति पुरूषोत्तम भगवान श्री कल्कि अद्वितीय हैं। भगवान श्री कल्कि दुग्ध वर्ण अर्थात् श्वेत अश्व पर सवार हैं। अश्व का नाम देवदत्त है। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। भगवान पीले वस्त्र धारण किये हैं। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि सुशोभित है। भगवान पूर्वाभिमुख व अश्व दक्षिणामुख है। भगवान श्री कल्कि के वामांग में लक्ष्मी (पद्मा) और दाएं भाग में वैष्णवी (रमा) विराजमान हैं। पद्मा भगवान की स्वरूपा शक्ति और रमा भगवान की संहारिणी शक्ति हैं। भगवान के हाथों में प्रमुख रूप से नन्दक व रत्नत्सरू नामक खड्ग (तलवार) है। शांग नामक धनुष और कुमौदिकी नामक गदा है। भगवान कल्कि के हाथ में पाञ्चजन्य नाम का शंख है। भगवान के रथ अत्यन्त सुन्दर व विशाल हैं। रथ का नाम जयत्र व गारूड़ी है। सारथी का नाम दारूक है। भगवान सर्वदेवमय व सर्ववेदमय हैं। सब उनकी विराट स्वरूप की परिधि में हैं। भगवान के शरीर से परम दिव्य गंध उत्पन्न होती है जिसके प्रभाव से संसार का वातावरण पावन हो जाता है।
सम्भल
कल्कि अवतार के कलियुग में हिन्दुस्तान के सम्भल में होने पर सभी हिन्दू सहमत हैं परन्तु सम्भल कहाँ है इसमें अनेक मतभेद हैं। कुछ विद्वान सम्भल को उड़ीसा, हिमालय, पंजाब, बंगाल और शंकरपुर में मानते हैं। कुछ सम्भल को चीन के गोभी मरूस्थल में मानते हैं जहाँ मनुष्य पहुँच ही नहीं सकता। कुछ वृन्दावन में मानते हैं। कुछ सम्भल को मुरादाबाद (उ0प्र0) जिले में मानते हैं जहाँ कल्कि अवतार मन्दिर भी है।
कल्कि जयंती के दिन निम्न अनुष्ठान किये जाते है-
कल्कि जयंती के त्यौहार पर, लोग पूरे दिन उपवास रखते हैं। लोग भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विभिन्न मंत्रों का जप करते हैं जैसे नारायण मंत्र, विष्णु सहस्रनाम और अन्य मन्त्रों का 108 बार जाप। उपवास प्रारम्भ करते हुए श्रद्धालु बीज मंत्र का जाप करते हैं और उसके बाद पूजा करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को पानी के साथ-साथ पंचमृत से भी धोया जाता है। भगवान विष्णु के विभिन्न नामों का जप किया जाता है।कल्कि जयंती के दिन ब्राह्मणों को भोजन दान करना महत्वपूर्ण है।
श्रीकल्कि भगवान की पंचोपचार पूजा विधि–
श्रीकल्कि जयन्ती के दिन आराधक को चाहिए कि वह स्वच्छ होकर सायंकाल को पूजागृह में उपस्थित हो। दुर्गाजी का विग्रह, श्रीयंत्र, पारद शिवलिंग, भगवान नारायण का विग्रह/मूर्ति/चित्र या शालग्राम (इनमें जो कुछ उपलब्ध हो) अपने सामने रखे। उसमें श्रीकल्कि भगवान के उपस्थित होने की भावना करके निम्न संक्षिप्त विधि से श्रीकल्कि भगवान का पूजन करे-
आचमन, पवित्रीकरण, शिखाबंधन, प्राणायाम करके श्री कल्कि जी के पूजन का संकल्प करे।
“ॐश्रीगणेश-विष्णु-शिव-दुर्गा-सूर्येभ्यो नमः” से पंचदेवों को नमस्कार कर पुष्पार्पण करे।
‘ॐ ऐं स्त्रौं कलि-दर्पघ्न्यै नमः’ व ‘ॐ ऐं वैं कलि-कल्मष-नाशिन्यै नमः’ मंत्र से दुर्गा माँ को नमस्कार कर पुष्प अर्पित करे। तब श्री कल्कि भगवान का ध्यान करे-
भगवान कल्कि का ध्यान–
ध्याये नील-हयारूढ़ं, श्वेतोष्णीष-विराजितम्।
महा-मुद्राढ्य-हस्तं च, कौस्तुभोद्दाम-कण्ठकम्॥
मर्दयन्तं म्लेच्छ-गणं, क्रोध-पूरित-लोचनम्।
अन्तर्हितैर्देव-मुनि-गन्धर्वै-संस्तुतं हरिम्॥१॥
(अर्थात् नीले घोड़े पर सवार, श्वेत मुकुट(पगड़ी) से देदीप्यमान ‘महा-मुद्रा’ अर्थात् भ्रू-मध्य की ओर देखने की मुद्रा में मुट्ठी बाँधे हुए हाथों की विशेष मुद्रावाले और कौस्तुभ-मणि के समान विशाल एवं चमकीली गर्दन वाले कल्कि-अवतार भगवान् विष्णु का मैं ध्यान करता हूँ। जो क्रोध-पूर्ण आंखों से दुष्ट लोगों पर प्रहार करने में तल्लीन हैं और सर्वकल्याण हेतु जिनकी गुप्तरूप से देव-मुनि-गन्धर्व स्तुति कर रहे हैं।)
कल्पावसाने निखिलैः खुरैः स्वैः, सङ्घट्टयामास निमेष-मात्रात्।
यस्तेजसा निर्दहतीति भीमो, विश्वात्मकं तं तुरगं भजामः॥२॥
(अर्थात् युगों की समाप्ति पर, जिन्होंने अपने खुरों के तीक्ष्ण प्रहार से सम्पूर्ण विश्व को विदीर्ण कर दिया ओर जिनके तेज से विश्व जल उठा, मैं उन तीव्र-गामी अश्वों अर्थात् तीक्ष्ण मन-विचार वाले कल्कि-अवतार भगवान् विष्णु को प्रणाम करता हूँ।)
म्लेच्छ-निवहनिधने कलयसि करवालम्।
धूमकेतुमिव किमपि करालम्॥
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे॥३॥
(अर्थात् जो म्लेच्छसमूह का [भूमण्डल की शान्ति भंग करने वालों का] नाश करने के लिये धूमकेतु के समान अत्यंत भयंकर तलवार चलाते हैं, ऐसे कल्किरूपधारी आप जगत्पति भगवान् केशव की जय हो।)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
(यह कहकर भगवान को पुष्प अर्पित करे)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्रीकल्किने समर्पयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को चन्दन का तिलक करे)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
हं आकाशात्मकं पुष्पं श्रीकल्किने समर्पयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को पुष्प अर्पित करे)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
यं वाय्वात्मकं धूपं श्रीकल्किने आघ्रापयामि नमः।
(यह कहकर धूप जलाकर वातावरण सुगंधित करते हुए धूप द्वारा भगवान की आरती करे)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
रं वह्न्यात्मकं दीपं श्रीकल्किने दर्शयामि नमः।
(यह कहकर भगवान की दीप से आरती करे)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं श्रीकल्किने निवेदयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को उत्तम नैवेद्य अर्पित करे)
ॐ श्रीकल्कि अवताराय नम:॥
सं सर्वात्मकं सर्वोपचाराणि श्रीकल्किने समर्पयामि नमः।
(यह कहकर भगवान को पुष्पार्पण करके प्रदक्षिणा आदि समस्त उपचार समर्पित करने की भावना करे)
‘श्रीकल्कि अवतार’ नाम मन्त्र की साधना विधि
भगवती श्री दुर्गा से उद्भूत विश्व के संरक्षक भगवान विष्णु का दसवाँ अवतार ‘श्रीकल्कि-अवतार’ है। इनकी प्रसन्नता पाने के लिए षडक्षर-“श्रीकल्कि”-नाम-मन्त्र-साधना की जा सकती है जिसका उत्तम माहात्म्य है। भगवती दुर्गा से उद्भूत श्री-कल्कि-विग्रह भगवान् विष्णु के नाम मन्त्रजप से कलियुग में पापियों, दुष्टों के कपटपूर्ण कार्यों एवं आतङ्क से रक्षा होती है।
करन्यास–
कं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
कं तर्जनीभ्यां स्वाहा।
ल्किं मध्यमाभ्यां वषट्।
नं अनामिकाभ्या हुम्।
नं कनिष्ठाभ्यां वषट्।
मं करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।
षडङ्गन्यास–
कं हृदयाय नमः।
कं शिरसे स्वाहा।
ल्किं शिखायै वषट्
नं कवचाय हुम्।
नं नेत्रत्रयाय वौषट्।
मं अस्त्राय फट्।
ध्यान–
ध्याये नील-हयारूढ़ं, श्वेतोष्णीष-विराजितम्।
महा-मुद्राढ्य-हस्तं च, कौस्तुभोद्दाम-कण्ठकम्॥
मर्दयन्तं म्लेच्छ-गणं, क्रोध-पूरित-लोचनम्।
अन्तर्हितैर्देव-मुनि-गन्धर्वै-संस्तुतं हरिम्॥
अर्थात् नीले घोड़े पर सवार, श्वेत मुकुट से देदीप्यमान ‘महा-मुद्रा’ अर्थात् भ्रू-मध्य की ओर देखने की मुद्रा में मुट्ठी बाँधे हुए हाथों की विशेष मुद्रावाले और कौस्तुभ-मणि के समान विशाल एवं चमकीली गर्दन वाले कल्कि-अवतार भगवान् विष्णु का मैं ध्यान करता हूँ। जो क्रोध-पूर्ण आंखों से दुष्ट लोगों पर प्रहार करने में तल्लीन हैं और सर्वकल्याण हेतु जिनकी गुप्तरूप से देव-मुनि-गन्धर्व स्तुति कर रहे हैं।
श्रीकल्कि भगवान की मानस पूजा-
लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य समर्पयामि नमः।
हं आकाशात्मकं पुष्पं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य समर्पयामि नमः।
यं वाय्वात्मकं धूपं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य आघ्रापयामि नमः।
रं वह्न्यात्मकं दीपं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य दर्शयामि नमः।
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य निवेदयामि नमः।
सं सर्वात्मकं सर्वोपचाराणि श्रीकल्किने मनसापरिकल्प्य समर्पयामि नमः।
श्रीकल्कि भगवान का मन्त्र
॥ कं कल्किने नम: ॥ (६ अक्षर)
निष्काम(कामना रहित) भाव से श्री कल्कि अवतार जयन्ती तिथि को या अन्य दिन भी श्रीकल्कि भगवान के उपरोक्त षडक्षर मन्त्र का अधिकाधिक मानस जप करना चाहिए। यदि सकाम भाव से जप करे तो माला द्वारा किया जाना चाहिये और उसका हवन, तर्पण, मार्जन आदि करके पुरश्चरण करना चाहिए।
विशेष-‘ॐ ऐं स्त्रौं कलि-दर्पघ्न्यै नमः’, ‘ॐ ऐं वैं कलि-कल्मष-नाशिन्यै नमः’ इस प्रकार भगवती दुर्गा का स्मरण करते हुए भगवान् कल्कि के नाम-मन्त्र का जप करने से जप में विशेष सफलता प्राप्त होती है। प्रत्येक चतुर्युगी/पर्याय(चार युगों का एक चक्र) में कलियुग का समापन करने के लिए व जगत के कल्याण के लिए श्रीब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिका व श्रीमहासरस्वती-महालक्ष्मी-महाकाली स्वरूपिणी दुर्गा माँ ही भगवान श्रीकल्कि के अवतार रूप में प्रादुर्भूत होती हैं। श्रीहरि नारायण के अधर्मनाशक अवतार श्री कल्कि भगवान को “कल्कि जयन्ती पर” हमारा अनेकों बार प्रणाम।
कल्कि मंत्र जप
कल्कि महामंत्र ‘’जय कल्कि जय जगत्पते,पदमापति जय रमापते ’ ’में दो बार भगवान विष्णु और दो बार लक्ष्मी जी का नाम आता हैं। भगवान विष्णु पालक होने के कारण घर व्यापार में व्यवस्था देते हैं और लक्ष्मी जी धन-वैभवता प्रदान करते हैं। कल्कि मंत्र ’जय कल्कि जय जगत्पते, पदमापति जय रमापते ’ का जाप जीवन की इन परस्तिथियों में करे। अनुभव द्वारा जीवन में मार्ग दर्शन पाने के लिए,
पूर्व जन्मों के कर्मो का क़र्ज़ उतारने के लिए।
अपने जीवन में मंगल और तेज बढ़ाने के लिए।
सभी देवी देवता की कृपा पाने के लिए।
प्रार्थना :हे कल्कि भगवान, मैंने जो आपके महामंत्र का जाप किया, इससे अर्जित संपूर्ण फल मैं आपको समर्पित करती हूँ, इसे स्वीकार करे, अपने अवतार कार्य में खर्च करे। भूमि का भार उतारे।
धर्म,गौ, ब्राह्मणो, सज्जनो, छोटे बच्चे जो आपका काम कर रहे हैं या करेंगे, गर्भ में स्तिथ जो बच्चें आपका काम करेंगे उनकी रक्षा करे।शीघ्र प्रकट हो कलियुग का नाश करे, सतयुग की स्थापना करे। अपनी परेशानी कहे और बोले, मुझे स्वस्थ शरीर, सुखी-भाव, राजा-रानियों की तरह वैभवता पूर्वक रहते हुए आपके साहित्य-प्रचार-प्राकट्य का अति-विशिष्ट कार्य करना हैं।
कल्कि बीज मंत्र-‘ॐ कोंग कल्कि देवाय नमः’
कल्कि बीज मंत्र प्रयोग-
कल्कि मंत्र ’ॐ कोंग कल्कि देवाय नमः’ का जाप जीवन की इन परस्तिथियों में करे- जब काम नहीं बन रहे हो, मौत पीछा नहीं छोड़ रही हो, धर्म के प्रति अपनी आस्था बढ़ाने के लिए।
कल्कि स्वास्थ्य मंत्र-“हक् अनीह निष्कलंक गौरंडा: दुष्टहा: नाशनम् पापहा’’
कल्कि स्वास्थ्य मंत्र प्रयोगकल्कि मंत्र ’‘हक् अनीह निष्कलंक गौरंडा: दुष्टहा: नाशनम् पापहा’’ का जाप जीवन की इन परस्तिथियों में करे:
संपूर्ण स्वास्थ्य पाने के लिए.असाध्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए.अपने अंदर के किसी डर से छुटकारा पाने के लिए।
पं देवशर्मा