दंडवत प्रणाम महिलाओं को वर्जित क्यों?
पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरस्थ्तथा।
मनसा वचसा दृष्टया प्रणामोऽष्टाङ्ग मुच्यते।।
@sanatanyatra:अष्टांग यानी दंडवत प्रणाम को हाथ, पैर, घुटना, छाती, मस्तक, मन, वचन और आंख से किया हुआ माना जाता है।
दंडवत प्रणाम को महिलाओं के लिए वर्जित माना गया है क्योंकि अष्टांग या दंडवत प्रणाम करते समय महिलाओं का वक्ष और गर्भ धरती के संपर्क में आते हैं।
ऐसा माना जाता है कि महिला के गर्भ में जीवन का आरंभ होता है और महिला का वक्ष उस शिशु का पोषण करता है इसलिए महिलाओं का दंडवत प्रणाम करना अच्छा नहीं माना गया है।
ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्।
वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।’
अर्थात् ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ (पुस्तक) एवं स्त्रियों का वक्षस्थल (स्तन) यदि सीधे भूमि (बिना आसन) का स्पर्श करते हैं तो पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है। इस असहनीय भार को सहने के कारण वह इस भार को डालने वाले से उसकी श्री (अष्ट-लक्ष्मियों) का हरण कर लेती है।
अत: शास्त्र के इस निर्देशानुसार स्त्रियों को दंडवत प्रणाम कभी नहीं करना चाहिए। स्त्रियों को दंडवत प्रणाम के स्थान पर घुटनों के बल बैठकर अपना मस्तक भूमि से लगाकर ही प्रणाम करना चाहिए एवं शंख, शालिग्राम भगवान को, धर्मग्रंथ (पुस्तक) को सदैव उनके यथोचित आसन पर ही विराजमान कराना चाहिए