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Thursday, November 21, 2024

#त्यागराज_मन्दिर : यहां देवी पार्वती को मिली थी शाप से मुक्ति

गवान शिव को समर्पित त्यागराज स्वामी मन्दिर (Tyagaraja Swami Temple) तमिलनाडु के कुम्भकोणम के पास तिरुवरूर (थिरुवरूर) शहर में स्थित है। यहां एक शिव लिंगम भगवान का प्रतिनिधित्व करता है और उसे वन्मि गनाथर के रूप में पूजा जाता है। उनकी मूर्ति की दैनिक पूजा की जाती हैजिसे मरागाथा लिंगम कहा जाता है। हालांकि श्री वाल्मीकनाथ स्वामी इस मन्दिर के प्रमुख देवता हैं लेकिन मन्दिर का नाम त्यागराज है। भगवान त्यागराज भगवान शिव, देवी श्री उमा और भगवान विष्णु द्वारा बनाई गयी भगवान सुब्रमण्यम की समग्र छविश्री सोमस्कन्द के रूप में हैं। यह शैव परम्परा के सबसे पवित्र मन्दिरों में से एक है। यह निश्चित रूप से लगभग 1300 साल पहले अस्तित्व में था।

किंवदन्ती है कि भगवान विष्णु ने देवी पार्वती को श्राप से मुक्त करने के लिए श्री सोमस्कन्द की रचना की और देवी पार्वती ने उनकी पूजा करके शाप से मुक्ति पाई। मुख्य पीठासीन देवता श्री सोमस्कन्द के रूप में श्री त्यागराजर हैं। उनकी पत्नी पार्वती को कोंडी के रूप में देखा जाता है।

तीस एकड़ भूमि पर विस्तृत त्यागराज मन्दिर मन्दिर (Tyagaraja Temple) को देश के सबसे बड़े मन्दिरों में से एक माना जाता है। यह तमिलनाडु का सबसे बड़ा रथ शैली का मन्दिर है। राज्य सरकार का हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ बन्दोबस्ती विभाग मन्दिर के प्रशासन का प्रभारी है। तिरुवरूर कर्नाटक संगीत की त्रिमूर्ति श्यामा शास्त्री, त्यागराज और मुथुस्वामी दीक्षित का घर भी है।

त्यागराज मन्दिर से जुड़ी किंवदन्ती (Legend related to Tyagaraja Temple)

किंवदन्ती के अनुसार मुचुकुन्द नामक एक चोल राजा को देवराज इन्द्र से वरदान मिला तो उसने लेटे हुए भगवान विष्णु की छाती पर विश्राम करते हुए त्यागराज स्वामी की एक मूर्ति प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। राजा को गुमराह करने के लिए इन्द्र ने छह अन्य मूर्तियां बनवाईं लेकिन राजा ने इस स्थान (तिरुवरूर) पर सही मूर्ति चुनी। अन्य छह मूर्तियां थिरु नल्लारु, थिरु नागाई, थिरु कारायिल, थिरु वैमूर, थिरु कोलिली और थिरु मरैकाडु में स्थापित की गयीं। इन सात क्षेत्रों को “सप्त विडंग” क्षेत्र कहा जाता है।

त्यागराज मन्दिर का इतिहास (History of Tyagaraja Temple)

ऐसा माना जाता है कि पल्लवों ने सबसे पहले सातवीं शताब्दी में इस मन्दिर की स्थापना की थी और इसका समकालीन इतिहास मध्यकालीन चोलों के समय तक जाता है। त्यागराज मन्दिर (Tyagaraja Temple) की उत्तर और पश्चिम की दीवारों पर राजेन्द्र चोल प्रथम (1012-1044) के 20वें वर्ष का एक शिलालेख मिला है जिस पर भगवान विधिविन्दकर या त्यागराज को दिए गये आभूषणों और लैम्पों सहित अन्य उपहारों की सूची है। इसमें यह भी दर्ज है कि मन्दिर का निर्माण राजेन्द्र चोल प्रथम के शासनकाल में अनुक्कियार परवई नंगैयार द्वारा पत्थरों से किया गया था।

ऐसा प्रतीत होता है कि यह मन्दिर परिसर राजराजा चोल द्वारा तन्जावुर में बनवाए गये विशाल बृहदेश्वर मन्दिर के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। कुलोथुंगा चोल तृतीय अन्तिम चोल राजा था जिसने मन्दिर के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह 13वीं शताब्दी ईसवी के आरम्भिक काल की बात है। वर्तमान चिनाई संरचना नौवीं शताब्दी में चोल राजवंश के दौरान बनाई गयी थी। अन्य दक्षिण भारतीय मन्दिरों की तरह इस मन्दिर से भी आक्रमणों का इतिहास जुड़ा हुआ है। दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी के समय से इस मन्दिर पर लगातार आक्रमण होते रहे। इस मन्दिर पर फ्रांसीसियों ने भी हमले किये थे। बाद में, विजयनगर के राजाओं और मराठा सरदारों ने मन्दिर का गौरव बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मन्दिर परिसर के भीतर कला और स्थापत्य चमत्कारों को प्रोत्साहित किया।

त्यागराज मन्दिर की वास्तुकला (Architecture of Tyagaraja Temple)

इस मन्दिर में नौ प्रवेश द्वार हैं जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। सबसे ऊंचा पूर्वी गोपुरम है जिसमें चार मंजिलें हैं और इसकी ऊंचाई 30 मीटर है। परिसर में दो मुख्य मन्दिर वनमिगानाथर और त्यागराजार को समर्पित हैं। पहला पुराना है और इसका नाम पुतरू या एन्थिल से मिला है जो मुख्य मन्दिर में लिंगम की जगह लेता है। सातवीं शताब्दी के कवि-सन्त अप्पार ने अपने भजनों में मुख्य देवता का वर्णन “पुत्रित्रुकोण्डन” (वह जो एन्थिल में रहते हैं) के रूप में किया है। श्री अंजनेय मन्दिर राजगोपुरम प्रवेश द्वार पर है। श्री धर्मशास्त्र में मां कमलाम्बिका के मन्दिर के आन्तरिक प्राकारम (गलियारे) में विनायक के साथ एक मन्दिर है।

परिसर में कई मन्दिर हैं। इनमें से प्रमुख हैं त्यागराजर (वीथि विदंगर) और नीलोथबलमबल (एलियांकोथाई)। अन्य प्रमुख मन्दिरों में अनन्थीश्वरर, असलेश्वरर, नीलोथबलमबल, अडागेश्वरर, अन्नामालीश्वरर, वरुणेश्वरर और कमलाम्बल शामिल हैं। मन्दिर की एक अनूठी विशेषता है भगवान शिव के वाहन नन्दी की खड़ी अवस्था में प्रतिमा जो पीठासीन देवता के सामने है।

त्यागराज मन्दिर (Tyagaraja Temple) में कई हॉल हैं जिनमें से छह प्रमुख हैं। भक्त कांची हॉल मूसुकुन्था नन्दी की छवि के बाईं ओर है जहां पंगुनी उथिरम उत्सव के बाद श्री त्यागराज की उत्सव मूर्ति आती है। श्री चन्द्रशेखर और देवी सेकरी अम्मन की उत्सव मूर्तिया तिरुवाधिराई उत्सव के दौरान ऊजल हॉल में पहुंचती हैं। यह हॉल कबाथा कांची हॉल के सामने है। थुलापारा हॉल को इसका नाम उस किंवदन्ती से मिला है जिसके अनुसार राजा मुचुकुन्द ने तिरुवरुर की त्यागराज मूर्ति को एक प्लेट में और बाकी मूर्तियों (देवराज इन्द्र से प्राप्त) को दूसरी प्लेट में रखा था। पुराण हॉल मन्दिर के उत्तरी भाग में है। राजनारायण हॉल एक सार्वजनिक हॉल है। राजेन्द्र चोल या सब्बाथी हॉल में मन्दिर का संग्रहालय है। मन्दिर के खम्भों और दीवारों पर जटिल नक्काशी है।

त्यागरपाज मन्दिर (Tyagaraja Temple) परिसर श्री चक्र का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें सात घेरे श्री चक्र की सात परतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। परिसर में एक विशेष बिन्दु है जहां से सात गोपुरम देखे जा सकते हैं। मन्दिर से जुड़ा तीर्थम कमलालयम तीर्थम है जिसे भारत का सबसे बड़ा मन्दिर टैंक माना जाता है। मन्दिर परिसर में सात प्राकारम (गलियारे), 100 से अधिक मन्दिर और 86 विनायक मूर्तियां हैं।

त्यागराज मन्दिर का महत्व (Importance of Tyagaraja Temple)

ऐसा माना जाता है कि त्यागराज मन्दिर (Tyagaraja Temple) में भारत में सबसे अधिक सन्निधि (मन्दिर) हैं। यहां सभी नौ ग्रह (नवग्रह) या ग्रह देवता एक सीधी रेखा में दक्षिण की ओर स्थित हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ने उन्हें श्राप से मुक्ति दिलाई थी और इसलिए उन्होंने त्यागराज की पूजा की।

त्यागराज मन्दिर से जुड़े अनुष्ठान और त्योहार (Rituals and festivals related to Tyagaraja Temple)

त्यागराज मन्दिर (Tyagaraja Temple) के कैलेण्डर में बारह वार्षिक त्योहार हैं। शैव समुदाय से आने वाले पुजारियों द्वारा त्योहारों के दौरान और प्रतिदिन भी पूजा की जाती है। प्रतिदिन छह अनुष्ठान किये जाते हैं। पहला अनुष्ठान सुबह 05.30 बजे शुरू होता है। दूसरा अनुष्ठान प्रातः 08:00 बजे, तीसरा प्रातः 10:00 बजे, चौथा सायंकाल 06:00 बजे, पांचवां सायंकाल 07:00 बजे और अन्तिमरात्रि 08:00 बजे। ऐसा माना जाता है कि सायराक्षय के दौरान सायंकाल 06:00 बजे श्री त्यागराज की पूजा के लिए सभी 33 कोटि देवता उपस्थित रहते हैं। इसके अलावा सोमवारम (सोमवार), शुक्रावरम (शुक्रवार) और पाक्षिक अनुष्ठान (प्रदोषम) जैसे साप्ताहिक अनुष्ठान भी हैं। तिरुवरुर में सयाराक्षै में भाग लेना और फिर चिदम्बरम में अर्ध जमम पूजा में भाग लेना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

श्री त्यागराज की मूर्ति को फूलों और कपड़े के टुकड़े से इस तरह ढका जाता है कि केवल उनका और अम्मान का चेहरा ही देखा जा सके। देवता के पैर साल में दो बार प्रदर्शित किये जाते हैं। बाकी समय इन्हें फूलों से ढका जाता है। उनका और देवी पार्वती का दाहिना पैर मार्गाज़ी महीने में आरुद्र दर्शन के दिन प्रदर्शित किया जाता है जबकि दोनों का बायां पैर पंगुनी उथिरम के दिन प्रदर्शित किया जाता है।

त्यागराज मन्दिर (Tyagaraja Temple) में मासिक त्योहार भी मनाए जाते हैं। इनमें अमावस्या (अमावस्या का दिन), कृतिगई, पूर्णिमा (पूर्णिमा का दिन) और चतुर्थी शामिल हैं। चोल राजा कुलोथुंगा चोल ने यहां कई अनुष्ठान ओर त्योहार आरम्भ कराए थे जिनमें से कुछ को आज भी मनाया जाता। अप्रैल-मई (तमिल में चिथिराई माह) में मन्दिर का वार्षिक रथ उत्सव मनाया जाता है। यह रथ एशिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा है। इसका वजन 300 टन और ऊंचाई 29 मीटर है। रथ उत्सव के दौरान यह मन्दिर के आसपास की चार मुख्य सड़कों पर जाता है। इस आयोजन में लाखों लोग शामिल होते हैं। त्यागराज मन्दिर अजपा थानम यानी बिना मन्त्रोच्चार के नृत्य के लिए प्रसिद्ध है जो स्वयं देवताओं द्वारा किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जुलूस में ले जाने पर सभी सात त्यागराज मूर्तियां नृत्य करती हैं। जुलूस में देवता के वाहक वे लोग ही होते हैं जो वास्तव में नृत्य करते हैं। चेन्नई के वल्लुवर कोट्टम में सन्त तिरुवल्लुवर के स्मारक का डिजाइन त्यागराज मन्दिर के रथ से प्रेरित है। यहां मनाए जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण त्योहारों में मार्गाज़ी तिरुवाधिराई, आदि पुरम, पंगुनी उथिरम,  वसन्त उत्सवम्, चिथिराई, पोंगल और दीपावली शामिल हैं।

त्यागराज मन्दिर में दर्शन-पूजन का समय (Timings of darshan and worship in Tyagaraja Temple)

  • प्रातः 05.00 बजे से अपराह्न 12.00 बजे।
  • शाम 04.00 बजे से रात्रि 09.00 बजे।

तिरुवरूर में दर्शनीय स्थान (Places to visit in Thiruvarur)

वडुवूर पक्षी अभयारण्य, उदयमार्थण्डपुरम पक्षी अभयारण्य, मुथुपेट्टई मैंग्रोव वन, अलंगुडी, कूथानुर, मन्नारगुडी, एन्कन, वलंगइमन. मुथुपेट्टई दरगाह।

ऐसे पहुंचें त्यागराज मन्दिर (How to reach Tyagaraja Temple)

वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा त्रिची इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 119 किलोमीटर पड़ता है। पुडुचेरी एयरपोर्ट मन्दिर से करीब 166 जबकि चेन्नई इण्टरनेशनल एयरपोर्ट लगभग 314 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग : तिरुवरूर जंक्शन से त्यागराज मन्दिर बमुश्कल दो किलोमीटर दूर है। चेन्नई, एर्नाकुलम, चेंगलपट्टु, शिवगंगा, मुम्बई, कन्याकुमारी, कोकराझार आदि से यहां के लिए ट्रेन सेवा है।

सड़क मार्ग : तिरुवरूर शहर तमिलनाडु के लगभग सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां सार्वजनिक और निजी बस चलती हैं। टैम्पो अथवा टैक्सी भी कर सकते हैं।

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