Tranding
Friday, September 20, 2024
@SANATANYATRA, #AparaEkadashi, #AparaEkadashi2024 ,#Ekadashi ,#ekadashi2024, #ekadashivrat, #fasting ,#hindu ,#SANATANYATRA, #shrikrishna, #अपराएकादशी ,#सनातनयात्रा

Apara Ekadashi 2024: अपरा एकादशी व्रत कथा,जानें महत्त्व

@SANATANYATRA :ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी मनाई जाती है। इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति को अपार धन की प्राप्ति होती है। इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। अपरा एकादशी का मतलब होता है अपार पुण्य। मान्यताओं के इस दिन विष्णु जी की पूजा करने से व्यक्ति के दुखों का अंत होता है और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

पद्मपुराण में बताया गया है कि अपरा एकादशी के व्रत से व्यक्ति को वर्तमान जीवन में चली आ रही आर्थिक परेशानियों से राहत मिलती है।
पंचांग के अनुसार अपरा एकादशी का शुभारंभ 2 जून 2024 की सुबह 5 बजकर 4 मिनट पर होगा। इसका समापन 3 जून 2024 की रात 2 बजकर 41 मिनट पर है। उदया तिथि के अनुसार इस साल अपरा एकादशी का व्रत 2 जून को रखा जाएगा।

कथा माहात्म्य –

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?

भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।

जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।

यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।

कथा –

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य को पापों मुक्ति मिलती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हमारी टीम

संस्थापक-सम्पादक : विशाल गुप्ता
प्रबन्ध सम्पादक : अनुवन्दना माहेश्वरी
सलाहकार सम्पादक : गजेन्द्र त्रिपाठी
ज्वाइंट एडिटर : आलोक शंखधर
RNI Title Code : UPBIL05206

error: Content is protected !!