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Thursday, November 21, 2024
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पापमोचनी एकादशी 2024 : जानते हैं व्रत कथा ,पूजा विधि और पारण का समय

प्रतिवर्ष यह एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर पड़ती है, जिसे पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं, जो कि जन्म-जन्मांतर में किए गए सारे पाप नष्ट करने में सक्षम हैं। मान्यतानुसार पापमोचनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष मिलता है। यह पापमोचनी एकादशी शाप से उद्धार करनेवाली तथा सब पापों का क्षय करनेवाली है। इसका व्रत करनेवाले ब्रह्महत्या, सुवर्ण की चोरी, सुरापान या संसार में कहे जानेवाले बड़े-बड़े पापों से भी मुक्त हो जाते है ।

आइए यहां जानते हैं पापमोचनी एकादशी पूजा विधि और पारण का समय-

इस वर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी तिथि का प्रारंभ-* 04 अप्रैल 2024, दिन गुरुवार को 07:44 ए एम से हो रहा है तथा एकादशी तिथि की समाप्ति दिन शुक्रवार, 05 अप्रैल, 2024 को 04:58 ए एम पर होगी। उदयातिथि के अनुसार 05 अप्रैल को पापमोचनी एकादशी मनाई जाएगी।

एकादशी पारण/ व्रत तोड़ने का समय-* 05 अप्रैल 12:43 पी एम से 03:07 पी एम तक।

गौण एकादशी पारण या व्रत तोड़ने का समय-* 06 अप्रैल को 05:32 ए एम से 07:56 ए एम तक।

पूजा विधि 2024:-

– चैत्र मास के कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्‍नान के बाद पीले वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्‍प लें।

– घर के मंदिर में पूजा करने से पहले वेदी बनाकर 7 अनाज उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा आदि रखें।

– वेदी के ऊपर कलश की स्‍थापना करें और उसमें आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं।

– अब भगवान श्री विष्‍णु की मूर्ति या तस्‍वीर स्थापित करें और पीले फूल, ऋतु फल और तुलसी दल समर्पित करें।

– फिर धूप-दीप से विष्‍णु की आरती उतारें।

– शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें।

– इस दिन रात्रि शयन न करें, बल्‍कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।

– द्वादशी तिथि पर पारण से पहले ब्राह्मण तथा असहाय को भोजन कराएं, तथा दान-दक्षिणा दें। – तत्पश्चात स्वयं पारण करें।

व्रत कथा

प्राचीनकाल में च्यवन ऋषि थे जिनके पुत्र मेधावी सदैव ध्यान में लीन रहते थे और कठोर जीवन जीते थे। इससे देवराज इंद्र असुरक्षित महसूस करने लगे और उनका ध्यान भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा।

मंजुघोषा के कारण मेधावी सांसारिक सुखों में डूब गये। कई वर्षों बाद, मंजुघोषा ने वापस जाने की अनुमति माँगी। तब मेधावी को अपने पतन का भान हुआ। क्रोध में आकर उन्होंने उसे पृथ्वी पर सबसे कुरूप स्त्री बनने का श्राप दे दिया।

मेधावी अपने पिता के पास लौट आए और उनसे मदद माँगी। ऋषि च्यवन ने उन्हें और मंजुघोषा को पापमोचनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा जिसके प्रताप से उन दोनों को अपने पापों/श्राप से मुक्ति मिल गई और श्री विष्णु की कृपा प्राप्त हुई।जय श्री हरि

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