भलेई:मां भद्रकाली का प्राचीन मंदिर जहां माता की मूर्ति को आता है पसीना
भलेईsanatanyatra.in :देवलोक हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा में स्थापित भलेई माता मंदिर अत्यंत प्राचीन और अनेकों रहस्यों के कारण लोकप्रिय हैं। भलेई माता मंदिर, देवी भद्रकाली को समर्पित है।यह मंदिर पवित्र धाम होने के साथ साथ बेहद प्राचीन है, जो अपनी सुंदरता और आस्था के लिए देश भर में प्रसिद्ध है।
यह मंदिर हिमांचल प्रदेश के चंबा जिलांतर्गत सालूनी तहसील के भलेई नामक स्थान पर स्थित है… जो समुंद्रतल से लगभग 3,800 फीट की ऊंचाई पर है। सालूनी तहसील मुख्यालय से इस मंदिर की दूरी लगभग 35 किमी है।ये मंदिर डलहौजी से करीब 38 किलोमीटर की दूरी पर है।
मां भद्रकाली का इतिहास
भलेई माता के इस पवित्र मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है इसका निर्माण चंबा के राजा प्रताप सिंह ने करवाया था।जो कि अत्यंत धार्मिक राजा के रूप में विख्यात थे। राजा द्वारा निर्मित कई धार्मिक भवनों में से एक मां भद्रकाली मंदिर,कहा जाता हैं कि मां भलेई नामक स्थान पर स्वयंभू प्रकट हुई। मां नेराजा प्रतापसिंह को स्वप्न में दर्शन दिया… देवी ने राजा को बताया कि मैं भलेई नामक गाँव के इस विशिष्ट स्थान पर प्रकट हुई हूं… यथाशीघ्र भरण में मेरा मंदिर स्थापित करवाया जाए, जो वर्तमान मंदिर स्थान से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है।
भक्तों! इसके बाद राजा प्रताप सिंह और उनके अधिकारीगण, देवी की मूर्ति खोजकर मंदिर बनाने के उद्देश्य से, देवी की मूर्ति को चंबा ले जाने लगे भलेई एक रमणीक स्थान देख, राजा देवी की मूर्ति को भूमि पर रखकर, वहीं विश्राम करने लगे… विश्राम के पश्चात जब राजा मूर्ति को चंबा ले जाने के लिए जमीन से उठाने लगे, लेकिन इसमें वे सफल नहीं हो पाए, लाख जतन करने के बाद भी मूर्ति जमीन से हिली नहीं… फिर मां भलेई ने उसी रात राजा के स्वप्न में आई और कहा कि मेरा मंदिर यहीं स्थापित किया जाए, राजा ने देवी की आज्ञा मानकर… जहां मूर्ति थी वहीं पर मंदिर बनवा दिया।
देवी की मूर्ति को आता है पसीना :
माना जाता है कि मां जब प्रसन्न होती हैं तो प्रतिमा से पसीना निकलता है। पसीना निकलने का यह भी अर्थ है कि मां से मांगी गई मुराद पूरी होगी।इस मंदिर में देवी माता की जो मूर्ति लगी है, उसे पसीना आता है। जिस वक्त देवी की मूर्ति को पसीना आता है, उस वक्त वहां जितने भी भक्त मौजूद रहते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं ऐसा ही एक मंदिर हैं जो ऊंची ठंडी पहाड़ियों पर स्थित होने के बावजूद भी यहां भगवान की प्रतिमा को पसीना आता हो। ऐसा क्यों होता है इसके बारे में अब तक कोई पता नहीं लगा पाया है।
वास्तुकला
हजारों साल पहले बने इस मंदिर की वास्तुकला को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है ये इतना खूबसूरत है। भलेई माता की चतुर्भुजी मूर्ति काले पत्थर से बनी हुई है और ये खुद से प्रकट हुई थी। माता के बाएं हाथ में खप्पर और दाएं हाथ में त्रिशूल है। मंदिर के मुख्य दरबार पर उड़ीसा के कलाकारों की कारीगरी का शानदार नमूना देखा जा सकता है।
यहां पहुंचने के लिए
भलेई गांव डलहौजी से 35 किमी दूर है। डलहौजी के लिए दिल्ली, जम्मू, अमृतसर, पठानकोट और गगल (धर्मशाला) तक हवाई मार्ग व उससे आगे बस अथवा टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए पठानकोट तक ट्रेन की सुविधा भी है। पठानकोट से डलहौजी की दूरी 82 किलोमीटर है। दिल्ली से 564 किमी., चंडीगढ़ से 325 किलोमीटर, पठानकोट से 82 किलोमीटर तथा कांगड़ा एयरपोर्ट से 120 किलोमीटर की दूरी पर है।