जाने सनातन हिन्दू धर्म में पंच महायज्ञ अर्थ एवं महत्ता
सनातन हिन्दू धर्म में मानव जीवन का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति है। इन चारों की प्राप्ति तभी संभव है, जब वैदिक विधान से पंच महायज्ञों को नित्य किया जाये। इन महायज्ञों के करने से ही मनुष्य का जीवन, परिवार, समाज शुद्ध, सदाचारी और सुखी रहता है।
पंच महायज्ञ सनातन हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण बताये गए हैं। धर्मशास्त्रों ने भी हर गृहस्थ को प्रतिदिन पंच महायज्ञ करने के लिए कहा है। नियमित रूप से इन पंच यज्ञों को करने से सुख-समृद्धि व जीवन में प्रसन्नता बनी रहती है। सनातन हिन्दू धर्म में यह पांच महायज्ञ हैं:
‘अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र यज्ञस्तु तर्पणं |
होमोदैवो बलिर्भौतो न्रयज्ञो अतिथि पूजनं।।
ब्रह्मयज्ञ – अध्यन, अध्यापन का नाम ब्रह्मयज्ञ। ब्रह्मयज्ञ का अर्थ वेदों और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन स्वयं करना और दूसरों को करवाना यही ब्रह्मयज्ञ है। गायत्री मंत्र से भी ब्रह्मयज्ञ पूर्ण होता है।
पितृयज्ञ – अन्न अथवा जलके द्वारा नित्य नैमितिक पितरों के तर्पण करने का नाम पितृयज्ञ।पितृयज्ञ का अर्थ है तर्पण, पिण्डदान और श्राद्ध। प्रतिदिन माता-पिता, गुरु अन्य आश्रित सम्बन्धियों की सेवा एवं उनकी संतुष्टी का ठीक-ठीक प्रबन्ध करना ही पितृयज्ञ है।
देवयज्ञ – देवताओं को लक्ष्य करके होम करनेका नाम देवयज्ञ।देवयज्ञ का अर्थ देवताओं का पूजन, होम व हवन है।घर में नित्य देवी-देवताओं का नियमित पूजन, यज्ञ व हवन होने से देवता प्रसन्न होते हैं
भूतयज्ञ – पशु पक्षी आदि को अन्न आदि दान करने का नाम भूतयज्ञ।भूतयज्ञ अर्थात अपने अन्न मे से दूसरे प्राणियों के लिए कुछ भाग अर्पित करना। इस यज्ञ का विधान इसलिये बनाया गया है कि हम भविष्य में कहीं भी किसी भी योनि में उत्पन्न हो, हमें व अन्य सभी जीवात्माओं व प्राणियों को इस यज्ञ के द्वारा पोषण प्राप्त होता रहे। कुत्ता, चींटी, कौआ, गरीब आदि।
नरयज्ञ – अतिथि सेवा का नाम नरयज्ञ है।नरयज्ञ अर्थात अतिथि का प्रेम और आदर से सत्कार करना, उसे भोजन कराना और सेवा करना। अतिथियज्ञ को नृयज्ञ अथवा अतिथियज्ञ भी कहते हैं। (मनुस्मृति)